भगवद्गीता पढ़ने के इच्छुक लोग व्यापक रूप से ये अवरोध और प्रश्न अनुभव करते है। इन्हीं प्रश्नों का उत्तर देने के लिए इस लेख में भगवद्गीता अभ्यास की प्रभावी विधि पर प्रकाश डाला गया है।
यदि हम स्वस्थ रहना चाहते हैं तथा स्वस्थवृत्त की पुनर्स्थापना करना चाहते हैं, उसे फैलाना चाहते हैं तो व्यक्तिगत स्वास्थ्य के आयुर्वेद के कालातीत दिशा-निर्देशों के माध्यम से हम सभी को स्वस्थ रहना होगा।
आरोग्य बड़ा सुख है यह पिछले दो वर्ष के कोरोना प्रभावित काल में हमने भली-भांति अनुभव किया है। इसमें हमें स्वास्थ्य के दोनों पक्ष- निजी या व्यक्तिगत तथा सामाजिक – दोनों अच्छे से अनुभव करने को मिले।
जो व्यक्ति ऋतुसात्मय को, ऋतुओं के अनुसार आहार तथा व्यवहार में परिवर्तन के आदी होने के बारे में जानता है, तथा ऐसे व्यवहार का समय पर अभ्यास करता है, तथा जिसके आहार में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं, उसका बल तथा ऊर्जा-आभा बढ़ जाती है, तथा वह एक स्वस्थ, लंबा जीवन जीता है। ऋतु के अनुरूप आहार-विहार की चर्चा दूसरे खंड में ऋतुचर्या में की गयी है।
अकाल भोजन का हानिकारक प्रभाव तुरंत नहीं दिखता, वह धीरे-धीरे शरीर की धातुओं में तथा दोषों में विषमता उत्पन्न करता है। इसे एक प्रकार का धीमा विष भी कहा जा सकता है। इस अपथ्य का आजकल अधिक प्रभाव दिखता है।
स्वस्थ वृत्त को समझने के पश्चात अब उसके उन नियमों को जानना चाहिए जो त्रि-स्वास्थ्य की कुंजी हैं, चाबी हैं। दिनचर्या, रात्रिचर्या तथा ऋतुचर्या में वह सभी क्रियाएं निहित हैं जिनसे हम स्वस्थ रह सकते हैं।
स्वस्थ व्यक्ति दिनचर्या, रात्रिचर्या तथा ऋतुचर्या का उसी प्रकार पालन करें जिस प्रकार शास्त्रों में वर्णित किया गया है। इसका आचरण करने से मनुष्य सदा स्वस्थ रहता है, उसके विपरीत आचरण करने से रोग से ग्रस्त हो जाता है।
स्वस्थ व्यक्ति दिनचर्या, रात्रिचर्या तथा ऋतुचर्या का उसी प्रकार पालन करें जिस प्रकार शास्त्रों में वर्णित किया गया है। इसका आचरण करने से मनुष्य सदा स्वस्थ रहता है।
काम, क्रोध, लोभ, मोहादि मानसिक भाव हैं। इनका शमन/निग्रह करने के लिये सत्या बुद्धि होनी चाहिए तथा सत्या बुद्धि सदवृत्त पालन करने से विकसित होती है। क्रोध का विपरीत भाव क्षमा है तथा राग-द्वेष का विपरीत समता है। यह क्षमा तथा समता दस पालनीय धर्मों में से दो हैं। तो स्वस्थ वृत्त तथा सदवृत्त की स्थापना के लिये इन धर्मों का पालन आवश्यक है।
स्वस्थवृत्त के अंतर्गत स्थूल रूप से पालन किये जाने वाले नियम हैं परंतु सदवृत्त के अंतर्गत पालन किये जाने वाले धर्म हैं, आचरण हैं। ये प्रत्यक्ष रूप से मात्र ‘गुड टू हैव 4’ कर्तव्य लगते हैं, परंतु इनका लक्ष्य परोक्ष है।
अंशु अपने को एक सतत जिज्ञासु कहती हैं। वर्तमान में संस्कृति आर्य गुरुकुलम में शिष्य तथा शिक्षक हैं। दर्शन, वैदिक शिक्षा और आयुर्वेद गुरुकुल में शिक्षण के मुख्य विषय हैं। प्राप्त ज्ञान को साझा करने की मंशा से विभिन्न वैदिक विषयों पर लिखती हैं।भारतीय इतिहास और वैदिक ज्ञान के आधुनिक शास्त्रीय प्रयोग उनकी रुचि के विषय हैं।
फिनटेक, आईटी कंसल्टिंग के क्षेत्र में 20 वर्ष बिताने के बाद अब वैदिक ज्ञान, शिक्षा और शिक्षा पद्धति की साधना यात्रा पर निकल चुकी हैं।