आरोग्य के सूत्र
वाराणसी के परमविद्वान आयुर्वेदाचार्य पंडित विश्वनाथ दातार शास्त्री जी ने आधुनिक काल की आवश्यकताओं के लिये आजीवन आयुर्वेद के अनेक ग्रंथों का संशोधन किया। उनके संशोधन उनके ऋषिपरंपरा आधारित गुरुकुल द्वारा उनके शिष्यों को दिए गए ज्ञान व ग्रंथों के रूप में सुरक्षित हैं। उनमें से सरल रूप से पालन करने योग्य व ध्यान रखने योग्य आरोग्य सूत्रों का एक संकलन इस प्रकार हैं :
व्यक्तिगत आरोग्य
- लाभानां श्रेष्ठमारोग्यम्। सर्व लाभ में, श्रेष्ठ लाभ आरोग्य का है।
- आमं हि सर्वरोगाणां मूलम्। ‘आम’ (कच्चा रस) ही सर्व रोगों का कारण है।
- लंघनं परमौषधम्। लंघन श्रेष्ठ औषध है।
- वावे मित्रवत् भाचरेत्। बढ़ी वायु में शरीर के साथ मित्र समान व्यवहार करे।
- पित्ते नामावृवत् आचरेत्। बढ़े पित्त में शरीर के साथ दामाद जैसा व्यवहार करें।
- कफे शत्रुवत् भाचरेत्। बढ़े कफ में शरीर के साथ शत्रु जैसा व्यवहार करना चाहिए।
- न वेगान् धारयेत् धीमान्। समझदार मनुष्य (शारीरिक) वेग को ना रोके।
- मनोवेगान विधारयेत्। मनके आवेगों को रोके।
- दक्षतीर्थात् शास्त्रार्थो द्रष्टकर्मा शुचिभिषग्। बुद्धिमान, व्यवस्थित शास्त्रज्ञान प्राप्त किया हुआ, अनुभवी, पवित्र वैद्य रोगीको रोगमुक्त कर सकता है।
- बहुगुणं बहुकल्पं संपन्नं योग्यमौषधम्। अनेक गुणोवाला, अनेक योजना कर सके ऐसा, अच्छा-सच्चा तथा योग्य रीतिसे दिया गया औषध परिणाम दे सकता है।
- विषमस्वस्थ वृत्तानामेवे रोगास्वथाड परे। नायन्ते नातुरस्वस्मात् स्वस्थवृत्तपरो भवेत् ॥ जो मनुष्य स्वस्थवृतके नियम अनुसार नही चलते, वे ही शारीरिक-मानसिक रोगोसे पीडित होते है इसलिए स्वस्थ रहने के लिये स्वस्थवृत के नियमो का पालन करे।
सामाजिक आरोग्य
सुखार्था: सर्वभूतानां मता: सर्वा: प्रवृत्तय:। सुखं च न विना धर्मात्तस्माद्धर्मपरो भवेत्।।
सभी प्राणियों की सभी प्रवृत्तियाँ सुख के लिये होती हैं तथा सुख बिना धर्म के नहीं मिलता, इसलिये मनीषी को धर्म पारायण होना चाहिए। आयुर्वेद का सुख आरोग्य है।
आरोग्य बड़ा सुख है यह पिछले दो वर्ष के कोरोना प्रभावित काल में हमने भली-भांति अनुभव किया है। इसमें हमें स्वास्थ्य के दोनों पक्ष- निजी या व्यक्तिगत तथा सामाजिक – दोनों अच्छे से अनुभव करने को मिले। समाज का स्वास्थ्य अच्छा नहीं होने से प्रत्येक व्यक्ति प्रत्यक्ष व परोक्ष दोनों रूप से प्रभावित हुआ, दुखी हुआ।
अतः सामाजिक स्वास्थ्य मात्र शासन का ही नहीं हम सभी का दायित्व है। इस वातावरण को हम निरंतर हानि पहुँचा रहे हैं। इसका संतुलन बिगाड़ रहे हैं। भाग्य से (पुन्य कर्मों के फल से) भारत में जन्म मिलता है जहाँ हमारे पास अपने त्रि-स्वास्थ्य को प्राप्त कर अपने पुरुषार्थ से अपना विकास करने का अवसर होता है। वह किसी झुग्गी बस्ती में जन्मे निर्धन तथा किसी श्रेष्ठी के घर में चाँदी की चम्मच लेकर जन्मे साधन सम्पन्न व्यक्ति, दोनों को मिलता है।
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