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स्वस्थवृत्त- स्वस्थ रहने का एक उत्कृष्ट विचार भाग X

निष्कर्ष:-

उपर्युक्त दैनिकचर्या, रात्रिचर्या व ऋतुचर्या  की उपयोगिता को भौतिक तथा आध्यात्मिक दृष्टि से समझते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्तमान काल में भी यह सर्वथा प्रासंगिक है। आज भी व्यक्ति को आयु, आरोग्य तथा धन की अत्यधिक अपेक्षा है। जैसा कि सुश्रुत का भी कथन है कि इनको आचार-रहित मनुष्य नहीं प्राप्त कर सकता है। अतः प्राचीन दैनिक आचार-संहिता का महत्त्व सार्वकालिक व सार्वदेशिक है।

ये दैनिक आचार आज सिद्धान्त रूप में प्रासंगिक तो अवश्य हैं पर व्यवहार में पालन नहीं किए जाते क्योंकि लोगों के पास  समय का अभाव है तथा अत्यधिक व्यस्तता है। ध्यानपूर्वक देखा जाये तो पूर्वाह्न के सभी कार्य  लगभग दो घण्टे में सम्पन्न किये जा सकते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में जागरण से आज की व्यस्त परिस्थिति में भी उक्त कार्यों के लिए समय निकाला जा सकता है। इनमें से अधिकांश कर्तव्यों को आज किया भी जा रहा है किन्तु शास्त्रविधि के अनुसार नहीं। इसलिए मनुष्य पूर्णतः लाभान्वित नहीं हो पा रहा।

अतः निष्कर्ष में भावप्रकाश के मतानुसार यथासम्भव शास्त्रानुसार दिनचर्या, रात्रिचर्या तथा ऋतुचर्या का आचरण करने का प्रयास करना चाहिए जिससे मनुष्य सदा स्वस्थ रह सके। सामान्य धर्म, करदर्शन, दन्त-धावन, स्नान आदि पूर्वाह्न से लेकर रात्रिचर्या तक के नित्य कृत्यों को करने की शास्त्र-विधि की चर्चा द्वारा व्यक्तिगत स्वास्थ्य आदि लाभ सिद्ध होते हैं जिससे परोक्ष रूप में समाज भी लाभान्वित होता है।

तीसरा खंड – आधुनिक समय में पालनीय मूलभूत सिद्धांत

सदवृत्त की स्थापना के लिये क्या कोई उपाय है ?

आज के समय में कुछ मुख्य सिद्धांतों का पालन कर के तथा निषिद्ध बातों, कार्यों को ना करके हम सदवृत्त व स्वस्थवृत्त की पुनर्स्थापना का आरंभ कर सकते हैं।  दिनचर्या ऋतुचर्या के नियम के लाभ तथा न करने की हानि लगभग सभी मुख्य ग्रंथों व उनकी टीकाओं/व्याख्यायों में कही गयी है। इन नियमों को आहार-विहार-व्यवहार की तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है जिनका आज के समय में पालन हो तो हम स्वस्थ रह सकते हैं तथा रोगों से बच सकते हैं।

आज के समय में किन नियमों का पालन कर स्वस्थ रहा जा सकता है तथा स्वस्थवृत्त में रहा जा सकता है ?

आहार-विहार-व्यवहार के नियमों में विहार की चर्चा ऋतुचर्या के माध्यम से दूसरे खण्ड में तथा व्यवहार की चर्चा पहले तथा दूसरे खंड में ही सद्वृत्त के रूप में की गयी है। इस तीसरे खण्ड में मात्र आहार से संबंधित सिद्धांतों का विस्तार किया जा रहा है। आयुर्वेद ने स्वस्थ रहने के लिये आहार को औषधि से भी श्रेष्ठ बताया है। यह एक व्यापक तथा आवश्यक विषय है, इस शोधपत्र के अत्यधिक विस्तृत होने की आशंका के कारण यहाँ मात्र मुख्य सिद्धांतों तथा मूलभूल नियमों की ही चर्चा की जा रही है।

आयुर्वेद द्वारा बताये गए आहार के मूलभूत सिद्धांतों को पथ्यापथ्य, समता-विषमता, आहार तत्व व आहार विधि-विधान के माध्यम से जाना जा सकता है।

सूचन: यदि आप यह लेख-श्रृखंला एक साथ पढ़ना चाहें तो यहाँ तो पढ़ सकते हैं.

Feature Image Credit: istockphoto.com

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