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स्वस्थवृत्त- स्वस्थ रहने का एक उत्कृष्ट विचार भाग XIII

आहार-तत्व

चरक संहिता के एक ही श्लोक में व्यक्ति के लिए आवश्यक सभी आहार तत्वों का निर्देश कर दिया गया है। यथा –

षष्टिकाञ्छालिमुद्गांश्च सैन्धवामलके यवान् आन्तरीक्षं पयः सर्पिर्जाङ्गलं मधु चाभ्यसेत्

तच्च नित्यं प्रयुञ्जीत स्वास्थ्यं येनानुवर्तते अजातानां विकाराणामनुत्पत्तिकरं च यत्।।

आधुनिक विज्ञान की भाषा के घटकों के रूप में समझने पर भी इन खाद्य पदार्थों में सभी आवश्यक पोशक तत्वों की प्राप्ति होती है :

  • षष्टिक शालि                                                                                                                           (60 दिन में पका हुआ  चावल )   = कार्बोहाइड्रेट (carbohydrate)
  • मुद्ग (मूँग)                                    = प्रोटीन (protein)
  • सैंधव (सेंधा नमक)                      = क्षार ( alkaline)
  • आमलक (आँवला)                      = विटामिन (सी)
  • यव (जौ, malt)                           = सेल्युलोज (cellulose)
  • आंतरीक्ष(जल)                             =  शुद्ध जल (जिसमें पृथ्वी का मिश्रण न हो) (water content)
  • दुग्ध, घृत (दूध, घी)                      =  मेद (good fat, stickiness)
  • मधु (शहद )                                =  शर्करा (glucose)

आहार तत्व के महत्व को समझते हुए आप यह कर सकते हैं :-

  • भैंस के दूध के स्थान पर गाय के दूध का सेवन करें।
  • भैंस के दूध के घी के स्थान पर गाय के घी का सेवन करें।
  • वनस्पति घी के स्थान पर शुद्ध घी का सेवन करें।
  • रिफाइंड ऑइल के स्थान पर मूंगफली के तेल का/ तिल के तेल का सेवन करें।                          (इसे समझने का बड़ा सरल सिद्धांत है – जिस पदार्थ को हम खाते हैं, उसी का तेल प्रयोग कर सकते हैं जैसे मूंगफली, तिल, सरसों हम खाते हैं तो उनका तेल हम प्रयोग कर सकते हैं। सूरजमुखी, करडी, ताड़ (palm), कपास आदि हम नहीं खाते हैं इसलिये इनका तेल भी प्रयोग नहीं करना चाहिए , ये शरीर में, धातु की विषमताएं बढ़ाते हैं तथा हानि करते हैं।)
  • चाय-कॉफी-कृत्रिम शीतल पेय के स्थान पर दूध-छाछ का सेवन करें।
  • तुअर (अरहर) के स्थान पर मूंग की दाल का सेवन करें।
  • आलू के स्थान पर सूरन/ जिमीकंद का सेवन करें।
  • लाल मिर्च के स्थान पर काली मिर्च का सेवन करें।
  • आम नमक के स्थान पर सैन्धव/सेंधा नमक का सेवन करें।
  • मांस-अंडे के स्थान पर कला का सेवन करें।
  • बाहर/बाजार के बने आहार के स्थान पर घर के आहार का सेवन करें।
  • कृत्रिम आहार के स्थान पर प्राकृतिक आहार का सेवन करें।

आहार तथा आहार-तत्व को लेकर कुछ भ्रांतियाँ, वहम 

  • रोग के समय पेट में जो पोषक आहार जाए उससे पोषण मिलता है – ऐसा मानना भ्रांति है, वहम है क्योंकि भोजन/आहार का पाचन हो तब ही तो पोषण मिलेगा। रोग में जठराग्नि मंद हो जाती है,। जठराग्नि की मंदता में खाया गया आहार पच नहीं पाता तथा शरीर को पोषण देने की बजाय रोग को पोषण देता है।
  • अधिक विटामिन खाने से आरोग्य प्राप्त होता है – यह भ्रांति है क्योंकि अधिक विटामिन भी कुछ रोगों को उत्पन्न करते हैं।
  • जीवाणु से ही सभी रोग फैलते हैं। यह सही नहीं है क्योंकि मंदाग्नि तथा मिथ्या /अपथ्य आहार ही मुख्य कारण हैं।
  • कच्चा आहार खाने से अधिक लाभ होता है ऐसा मानना एक भ्रांति है। कच्चा आहार पचने में भारी तथा जड़ होने से यह मंदाग्नि करके अजीर्ण करता है। पकी हुई, सुपाच्य तथा लघु (आसानी से पचने वाला)  करा हुआ भोजन खाने का अभ्यस्त हमारा शरीर कच्चे आहार को अनुकूल नहीं बना सकता।
  • रोगी या स्वस्थ व्यक्ति को अधिक पवन में रहना अच्छा है –  यह मान्यता सही नहीं है क्योंकि ऐसा करने वाले को वायु के रोग होते हैं तथा आयुष्य कम होता है। शुद्ध हवा वाला निर्वात स्थान ही अधिक पथ्य है।
  • अधिक प्रमाण में, ज्यादा मात्रा में हरी सब्जी-शाक खाने से आरोग्य बढ़ता है – ऐसा मानना भ्रांति है क्योंकि अधिक हरी सब्जी कब्ज़ करने वाली तथा नेत्र के रोग करने वाली होती है।
  • अधिक जल पीना सेहत के लिये अच्छा है – यह एक वहम है क्योंकि जैसे अधिक आहार, अधिक निद्रा हानिकारक है, वैसे ही अधिक जल पीना भी मंदाग्निजन्य सर्दी, जलोदर, अरुचि, सूजन, दस्त आदि रोग करता है।
  • जितना अधिक दूध-दही का सेवन करेंगे उतना अच्छा होता – ये भी एक कालांतर में आयी भ्रांति है। मात्रा से अधिक कुछ भी लेने पर तत्वों की अधिकता के कारण वह धातुओं में विषमता उत्पन्न करता है तथा शरीर की पाचन प्रणाली पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
  • अर्श, भगन्दर, कर्णपूय, अपेन्डिसाइटिस, पथरी आदि की सामान्य प्राथमिक अवस्था में भी ऑपरेशन एकमात्र उपाय है – ये मान्यता ठीक नहीं है। आयुर्वेद में ऐसे रोग सामान्य औषध, पथ्यापथ्य या लंघन जैसे क्रियाओं से मिट जाते हैं।
  • सदैव अधिक व्यायाम करने वाला स्वस्थ रहता है ऐसा मानना वहम है क्योंकि स्वस्थ, तंदुरुस्त व्यक्ति थोड़ा चले, घर का काम करे तो पाचन यथायोग्य होने से आनंद मिलने से स्फूर्ति बढ़ाने से तबीयत अच्छी हो जाती है।

(आयुर्वेद अर्धशक्ति (बलार्द्ध तक) व्यायाम करने का निर्देश देता है। व्यायाम करते हुए व्यक्ति के हृदय में स्थित वायु जब मुख को आने लगे, ये अर्धशक्ति समझना चाहिए। सुश्रुत के अनुसार इसके लक्षण हैं माथे पर, नासिका छिद्र में,शरीर संधि (जोड़ों) बगल आदि स्थानों में पसीना आने लगे, मुख सूख जाए, ये सभी अर्धशक्ति के लक्षण हैं।अति व्यायाम से अनेक रोग व दोष उत्पन्न होते हैं। विशेष रूप से जिम जाने वाले लोगों को इसका ध्यान रखना चाहिए।)

सूचन: यदि आप यह लेख-श्रृखंला एक साथ पढ़ना चाहें तो यहाँ तो पढ़ सकते हैं.

Feature Image Credit: istockphoto.com

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