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स्वस्थवृत्त- स्वस्थ रहने का एक उत्कृष्ट विचार भाग XII

आहार निर्धारण

शरीर में स्थित त्रिदोषों में अनुचित आहार-विहार या देश-काल-ऋतु के कारण विषमता उत्पन्न हो जाती है तो वे धातुओं को दूषित कर उनमें भी विषमता उत्पन्न कर देते हैं। इससे शरीर में विकार या रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अनेक बार प्रज्ञापराध के कारण भी विविध प्रकार के रोगों की उत्पत्ति शरीर में हो जाती है। उनका उपचार या रोग निवृत्ति औषधि, लंघन उपवास आदि कर्म, मंत्र चिकित्सा आदि के द्वारा किया जाता है। क्योंकि मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी के रोग का, विकार का शमन करना ये दोनों कार्य धातुओं की समता पर निर्भर हैं।

धातु को सम रखने के उपाय चरक संहिता के शारीरस्थानम् अध्याय में बताए गए हैं:

देशकालात्मगुणविपरीतानां हि कर्मणामाहारविकाराणां च क्रियोपयोगः सम्यक्, सर्वातियोगसन्धारणम्, असन्धारणमु- दीर्णानां च गतिमतां, साहसानां च वर्जनं, स्वस्थवृत्तमेतावद्धातूनां साम्यानुग्रहार्थमुपदिश्यते।।

ऐसे खाद्य पदार्थों का चयन किया जाना चाहिए जिनमें ऐसे गुण हों जो देश, काल जैसे बाहरी कारकों से उत्पन्न गड़बड़ी को संतुलित कर सकें तथा जो शारीरिक घटकों के संतुलन को बनाए रखने के लिए उपयुक्त हों। यह स्वास्थ्य तथा कल्याण को बनाए रखने में सहायता करता है। खाद्य पदार्थों की श्रेष्ठता उनके समता बढ़ाने के गुणों से निर्धारित होती है। जो पदार्थ सत्व-गुण बढ़ाते हैं वो श्रेष्ठ माने जाते है। प्राण ऊर्जा देने तथा बढ़ाने वाले आहार तथा लघु (पचने में हल्के) पदार्थ श्रेष्ठ व सात्विक भोजन की श्रेणी में आते हैं।

उसी प्रकार गुरु (भारी) व तले हुए तथा अधिक मसाले वाले भोज्य पदार्थ रजोगुण को बढ़ाते हैं, ऐसे भोजन को राजसिक कहा जाता है। बासी, प्राणहीन, कृत्रिम पदार्थ, मांसाहार तथा कुछ विशेष पदार्थ जैसे प्याज, लहसुन, जर्सी गाय का दूध तमोगुण को बढ़ाते हैं, ऐसे भोजन को तामासिक कहा जाता है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने भी सत्रहवें अध्याय में भी सात्विक आहार, राजसिक आहार तथा तामासिक आहार की बात की है।

आयुः सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः। रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः ॥

कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः। आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः ॥

यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्‌। उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्‌

जो भोजन आयु को बढाने वाले, मन, बुद्धि को शुद्ध करने वाले, शरीर को स्वस्थ कर शक्ति देने वाले, सुख तथा संतोष को प्रदान करने वाले, रसयुक्त चिकना तथा मन को स्थिर रखने वाले तथा हृदय को भाने वाले होते हैं, ऐसे भोजन सतोगुणी मनुष्यों को प्रिय होते हैं। कड़वे, खट्टे, नमकीन, अत्यधिक गरम, चटपटे, रूखे, जलन उत्पन्न करने वाले भोजन रजोगुणी मनुष्यों को रुचिकर होते हैं, जो कि दुःख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले होते हैं। जो भोजन अधिक समय का रखा हुआ, स्वादहीन, दुर्गन्धयुक्त, सड़ा हुआ, अन्य के द्वारा झूठा किया हुआ तथा अपवित्र होता है, वह भोजन तमोगुणी मनुष्यों को प्रिय होता है।

आहार के प्रकार के साथ आहार के वर्ग भी होते हैं :

  1. शूकधान्य – Monocotyledons/Cereals
  2. शमीधान्य – Dicotyledon/Pulses
  3. मांस – Class of Meats
  4. शाक – Green Leafy Vegetables
  5. फल – Fruits
  6. हरित – Class of Fresh Condiments
  7. मद्य – Class of Alcohol
  8. जल – Class of Water
  9. गोरस – Class of Milk & its Products
  10. इक्षुविकार – Sugarcane & its Products
  11. कृतान्न – Class of Cooked Foods
  12. आहारोपयोगी – Class of Adjuvants of Foods

चरक के प्रसिद्ध आहार-सूत्र बताते हैं प्रत्येक वर्ग में कौन सा आहार-पदार्थ श्रेष्ठ है तथा कौन सा निकृष्ट है। आहार-पदार्थों की श्रेष्ठता कुछ इस प्रकार सूचित है :

  • जल में                अंतरिक्ष जल (वर्षा का जल) श्रेष्ठ है।
  • दूध में                  गाय का दूध                        श्रेष्ठ है।
  • दही में                 गाय का दही                       श्रेष्ठ है।
  • छाछ में                गाय की छाछ                     श्रेष्ठ है।
  • घी में                    गाय का घी                         श्रेष्ठ है।
  • फल में                 काले अंगूर                        श्रेष्ठ है।
  • अन्न में                 लाल चावल                       श्रेष्ठ हैं।
  • सब्जी में              जीवन्ती, परवल                 श्रेष्ठ है।
  • कंदमूल में           कोमल मूली                      श्रेष्ठ है।
  • तेल में                 तिल का तेल                     श्रेष्ठ है।
  • गुड़ में                 मटके का गुड़                   श्रेष्ठ है।
  • मुखवास में           लौंग (लविंग)                   श्रेष्ठ है।
  • पेय में                  दूध                                  श्रेष्ठ है।
  • दातुन में              करंज                               श्रेष्ठ है।
  • औषध में             शिलाजीत                         श्रेष्ठ है।

तथा

  • विहार में             ब्रह्मचर्य                          श्रेष्ठ है।

उसी प्रकार विशेष रूप से शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य बढ़ाने के लिये औषधियों की श्रेष्ठता को इस तरह सूचित किया है:

  • बुद्धि बढ़ाने में ब्राह्मी श्रेष्ठ है।
  • मेधा बढ़ाने में शंखावली श्रेष्ठ है।
  • स्मृति बढ़ाने में वच श्रेष्ठ है।
  • दृष्टि बढ़ाने में त्रिफला श्रेष्ठ है।
  • स्वर बढ़ाने में यशयष्टिमधु श्रेष्ठ है।
  • वर्ण बढ़ाने में सफेद दूर्वा श्रेष्ठ है।
  • बाल बढ़ाने में भृंगराज श्रेष्ठ है।
  • वजन बढ़ाने में अश्वगंधा श्रेष्ठ है।
  • आयुष्य बढ़ाने में आँवला श्रेष्ठ है।
  • बल बढ़ाने में माखन श्रेष्ठ है।
  • उत्साह बढ़ाने में गाय का दूध श्रेष्ठ है।
  • वीर्य बढ़ाने में कौंचा श्रेष्ठ है।
  • आरोग्य बढ़ाने में हरीतकी (हरड़) श्रेष्ठ है।
  • स्तन्य बढ़ाने में शतावरी श्रेष्ठ है।
  • स्थिरता बढ़ाने में व्यायाम श्रेष्ठ है।
  • रुचि बढ़ाने में सैन्धव (सेंधा नमक) श्रेष्ठ है।
  • वातघ्न (बढ़ी हुई वात या वायु का शमन करने वाला) द्रव्यों में तिल का तेल श्रेष्ठ है।
  • पितघ्न (बढ़े हुए पित्त का शमन करने वाला) द्रव्यों में घी श्रेष्ठ है।
  • कफघ्न (बड़े हुए कफ का शमन करने वाला) द्रव्यों में मधु यानि शहद श्रेष्ठ है।
  • जीवनीय द्रव्यों में दूध श्रेष्ठ है।
  • विरेचक  द्रव्यों में नसतिर श्रेष्ठ है।
  • स्निध द्रव्यों में तिल का तेल श्रेष्ठ है।
  • रसायन द्रव्यों में दूध – घी श्रेष्ठ है।
  •  वातवर्धक (वात बढ़ाने वाला) द्रव्यों में जामुन श्रेष्ठ है।
  • ज्वरघ्न (ज्वर का शमन करने वाला) द्रव्यों में लंघन श्रेष्ठ है।

सूचन: यदि आप यह लेख-श्रृखंला एक साथ पढ़ना चाहें तो यहाँ तो पढ़ सकते हैं.

Feature Image Credit: picxy.com

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