कर्दम जी ने देखा कि उनके यहाँ साक्षात् देवाधिदेव श्री हरिने ही अवतार लिया है, तो वे एकांत में उनके पास गए और उन्हें प्रणाम करके इस प्रकार कहने लगे। प्रभो! आपकी कृपा से मैं तीनों ऋणों से मुक्त हो गया हूँ और मेरे सभी मनोरथ पूर्ण हो चुके हैं। अब मैं सन्यास मार्ग को ग्रहण कर आपका चिंतन करते हुए शोकरहित होकर विचरूँगा। आप समस्त प्रजाओं के स्वामी हैं, अतएव इसके लिए मैं आपकी आज्ञा चाहता हूँ।