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ज्ञानवापी हमारी है भाग – ३ – बेनी माधव मंदिर/औरंगज़ेब मस्जिद

बेनी माधव मंदिर/औरंगज़ेब मस्जिद

औरंगज़ेब मस्जिद, चित्र जेम्स प्रिन्सेप

फ़्रांसिसी यात्री टैवर्नियर ने १६३६ से १६६८ के बीच भारत में अनेक यात्राएँ की। बनारस यात्रा के उसके संस्मरणों से ज्ञात होता है कि उसने बेनी माधव मंदिर में भगवान विष्णु के दर्शन किए थे और वह सुबह की आरती में वहाँ सम्मिलित हुआ था। अपने दर्शन के अनुभवों के बारे में लिखते हुए वह कहता है कि, “जैसे ही मंदिर के पट खुले और पर्दे को हटाया गया, लोगों ने अपने देव मूर्ति के दर्शन कर उन्हें साष्टांग दंडवत प्रणाम किया। मंदिर के पुजारी जिनके हाथ में नौ दिये वाली थाल थी, उसे वह बार बार देव के सामने घुमा रहा था। लोगों द्वारा दिए फूल और प्रसाद को पुजारी देव के चरणों में छुआ कर उन्हें वापस कर रहा था।”

औरंगज़ेब के फ़रमान के बाद इस मंदिर को १६६९ में गिरा दिया गया। औरंगज़ेब ने बेनी माधव मंदिर के स्थान पर अपने नाम से औरंगज़ेब मस्जिद बनवाई, जिसमे बेनी माधव मंदिर के अवशेषों का उपयोग किया गया। इस मस्जिद की मीनारे उसने इतनी ऊँची बनवाई जिससे दूर से भी देखने पर बनारस में केवल मस्जिद की मीनारे ही देखी जा सकें। बनारस की पहचान को वह इन मीनारों से करवाना चाह रहा था, पर ये मीनारे प्रकृति के कोप से नहीं बच पायीं और तेज़ आंधी में एक दिन गिर पड़ीं। बनारस के पंचगंगा घाट पर आज भी यह मस्जिद दिख जाएगी, पर अब जो मीनारे हैं, वह बाद की बनाई हुईं हैं।

प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर

विश्वेश्वर मंदिर अब आलमगीरी मस्जिद

ये कह पाना कठिन है कि औरंगज़ेब ने जिस विश्वेश्वर मंदिर को तोड़ा, वह मानसिंह द्वारा बनवाया गया आदि विश्वेश्वर मंदिर था, या नारायण भट्ट और टोडरमल द्वारा बनवाया गया विश्वनाथ मंदिर। जहाँगीर नामा में जहाँगीर लिखता है कि बनारस में सबसे सुन्दर और भव्य मंदिर मानसिंह द्वारा बनवाया गया मंदिर है, जिसे उसने लाखों रूपये के ख़र्च से बनवाया है। मुग़ल मानसिंह द्वारा बनवाये जा रहे मंदिरों को देख कर मन ही मन कुढ़ते थे, और किसी भी तरह उन्हें तोड़ डालने की मंशा रखते थे। इतने भव्य मंदिर देखकर उन्हें अपनी दरिद्रता का अंदाज आता होगा, क्योंकि उन्होंने इतने वर्षों के साम्राज्य में ऐसे सुंदर धार्मिक स्थल अपने धर्म के लिए कभी नहीं बनवा पाए थे। औरंगज़ेब के समय उन्हें ये अवसर मिला और शरियत कानून के अनुसार उन्होंने नए मंदिर बनवाने पर प्रतिबंध लगवा दिया। बाद के दूसरे फ़रमान में औरंगज़ेब ने हिन्दू तीर्थ के सभी मंदिरों, वेद्शालाओं एवं ज्ञान के केन्द्रों को नष्ट करने का आदेश दिया। औरंगज़ेब के फ़रमान के अनुसार १६६९ में बनारस में बहुत से मंदिर और वेदों के केंद्र नष्ट कर दिए गए। जेम्स प्रिन्सेप जब भारत आये तब उन्होंने बनारस के मंदिरों के चित्र बनाये, उन चित्रों में बनारस के प्राचीन मंदिरों के अवशेष दिख पड़ते हैं। मुग़ल वास्तुकला जिसके चर्चे हमारे बुद्धिजीवी बढ़ चढ़कर करते हैं, उस वास्तुकला की छाप हमें बनारस में देखने को मिलती है। औरंगज़ेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर के अर्ध टूटे हुए ढाँचे पर जो मस्जिद बनाने का प्रयोग किया है, वही मुग़ल वास्तुकला का सबसे उत्तम उदाहरण है। आलमगीरी मस्जिद जिसका नामकरण औरंगज़ेब ने अपने नाम पर ही किया है, उसकी पश्चिम की दीवार से मंदिर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। १८३१ की जेम्स प्रिन्सेप की तस्वीर में आप उसे स्पष्ट देख सकते हैं। बनारस के लोगों ने आलमगीरी मस्जिद को कभी याद नहीं रखा, उनकी स्मृतियों में सदैव वह ज्ञानवापी मंदिर ही रहा, जहाँ भगवान शिव जल रूप में ज्ञान बनकर प्रकट हुए थे, और जिनके समीप ही विश्वेश्वर नाथ की शिवलिंग है।

ज्ञान कूप

स्कन्दपुराण के काशीखण्ड से ज्ञात होता है कि ईशान रूद्र ने विश्वेश्वर भगवान का अभिषेक करने हेतु, त्रिशूल से एक कूप का निर्माण किया था। भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि इस कूप से ज्ञान की जलधारा प्रकट होगी, उसमें शिव ही ज्ञान बनकर द्रवीभूत होंगे। औरंगज़ेब द्वारा मंदिर तोड़ दिए जाने के बाद भी इस मंदिर से जुडी आस्था समाप्त न हो सकी, और समय समय पर प्रयास होते रहे हैं मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए। ज्ञानकूप/ज्ञानवापी पर एक ऊँची छत है, जो पत्थर के ४० स्तंभो पर खड़ी है। उसका निर्माण १८२८ में ग्वालियर महाराज दौलत राव सिंधिया जी की पत्नी श्री बजाबाई ने करवाया है।

ज्ञान वापी, चित्र अर्नेस्ट हवेल

वर्तमान विश्वेश्वर मंदिर

वर्तमान विश्वेश्वर मंदिर का निर्माण पेशवा बाजीराव ने १७२१ में करवाया, और बाद में इस मंदिर का सौंदर्यीकरण का कार्य इंदौर की रानी अहिल्याबाई ने किया। महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर, चूड़ा और कलश के ताम्बे पर सोना मढ़वा दिया था। स्वर्णोंज्ज्वल चूड़ा पर त्रिशूल है, उसी के पार्श्व में सनातन धर्म की पताका उड़ती है । मंदिर के शिखर के नीचे ९ घंटे लगे हुए हैं, उनमें सबसे बड़ा घंटा नेपाल के राजा द्वारा दिया गया है। मंदिर के उत्तर में विश्वेश्वर जी की सभा है, जहाँ अनेक देव मूर्तियाँ विराज करती हैं। मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है, और हर हर महादेव , बम बम भोले की गूंज से पूरा काशी प्रतिध्वनित होता है। भक्तों के देव भगवान श्री विश्वनाथ गर्भगृह में प्रकाशमान हैं। जिस समय विश्वेश्वर की संध्या आरती होती है और जिस समय वेदध्वनी से हृदय हिलने लगता है, उस समय का दृश्य कैसा अपार्थिव रहता है। काशी का भूत भविष्य और वर्तमान सब शिव है।

*- हर हर महादेव -*

संदर्भ : –

  1. The Holy City (Benares) – Rajani Ranjan Sen
  2. Maasir I Alamgiri – Saqi Mustad Khan Translated by Sir Jadunath Sarkar
  3. हिंदी विश्वकोष (iv) – श्री नगेन्द्रनाथ वसु
  4. The Dynastic History of Northen India – H.C. Ray
  5. Downfall of Hindu India – C.V. Vaidya
  6. Benares The Sacred City (Sketches of Hindu Life And Religion) – E.B. Havell
  7. Benaras The Stronghold Of Hinduism – C. Phillips Cape
  8. Descriptive And Historical Account of North-Western Provinces Of India – F.H. Fisher & J.P. Hewett
  9. Description Of A View Of The Holy City Of Benares And The Sacred Ganges – Robert Burford
  10. Benares Illustrated In A Series Of Drawings – James Prinsep

कृपया इस श्रृंखला का पिछला भाग पढ़ने के लिए यहां ज्ञानवापी हमारी है भाग – २  क्लिक करें 

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