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कहानी स्वतंत्रता से एक वर्ष पूर्व की – भाग १

“हिन्दू, मुसलमानों के उस ताण्डव नृत्य को देखेंगे

जो चंगेज़ खां या हलाकू ने भी नहीं किया था।“

– फिरोज़ खां नून

राजगोपालाचारीजी द्वारा एक सूत्र तैयार किया गया था, जिसमें भारत की सांप्रदायिक समस्या का हल ढूंढते हुए उन्होंने मुसलमानों की पाकिस्तान की मांग को स्वीकार कर लिया। कांग्रेस के कई नेताओं ने इसका विरोध किया, जिसके चलते उनमें और राजगोपालाचारी जी में मतभेद हुए। इस कारण से १९४३ में राजगोपालाचारी ने कांग्रेस और कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्यता से अपना त्यागपत्र दे दिया।

द्वितीय विश्व युद्ध के समय गांधी जी ने “भारत छोड़ो आन्दोलन” चलाया, जिसके आरंभ में ही गांधी जी सहित शीर्ष कांग्रेसी नेताओं को पकड़कर जेल में डाल दिया गया। जब विश्व युद्ध अपने अंतिम चरण में था, और अंग्रेजों को थोड़ी छुट मिली, तब जून १९४४ को उन्होंने गांधी जी को छोड़ दिया। जेल से बाहर निकलकर गांधी जी ने मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्नाह से “राजगोपालाचारी सूत्र” को लेकर चर्चा आरंभ की। कई दिनों तक गांधी जी ने प्रयास किया की जिन्नाह इस “सूत्र” के आधार पर समझौते के लिए तैयार हो जाये, पर जिन्नाह के साथ उनकी वार्ता असफ़ल रही।

महात्मा गांधी और मुहम्मद अली जिन्नाह की इस चर्चा के असफ़ल होने से जिन्नाह को ही अधिक लाभ हुआ, अब भारत विभाजन चर्चा का विषय बन चूका था। गांधीजी ने जिन्नाह को अधिक महत्व देकर मुसलमानों की दृष्टि में उसे एक बड़ा नेता बना दिया। मुस्लिम बहुमत वाले क्षेत्रों के नेताओं ने भी अब जिन्नाह के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया।

उधर ग्रेट ब्रिटेन में सत्ता परिवर्तन हुआ, और क्लेमेंट एटली का श्रमिक दल (लेबर पार्टी) भारी बहुमत से जीत गया। अपने चुनावी प्रचार के समय एटली ने कहा था कि, “ इंग्लैंड इस बात के लिए तैयार है कि भारत स्वतंत्र हो जाए, इंग्लैंड यह अवश्य चाहता है कि भारत उसके साथ रहे, पर यह निश्चय करने का अधिकार कि वह साथ रहेगा या एकदम अलग हो जायेगा, भारत को ही होगा।“

१९४५ के अंत में भारत में भी चुनाव हुए, जिसमें सामान्य स्थानों पर कांग्रेस और मुस्लिम बहुमत वाले स्थानों पर मुस्लिम लीग, बड़े दल बनकर उभरे। इन चुनावों से यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस का मुसलमानों में कोई विशेष प्रभाव नहीं है और मुसलमानों का वास्तविक प्रतिनिधित्व मुस्लिम लीग ही कर रही है।

सत्ता में आते ही क्लेमेंट एटली ने एक प्रतिनिधि मंत्री मंडल भारत भेजा, जिसका उद्देश्य एक नवीन वैधानिक रूपरेखा तैयार करना तथा केंद्र में एक अस्थायी सरकार की स्थापना करना था। इस मंत्रिमंडल में ब्रिटिश मंत्रिमंडल के तीन सदस्य – लार्ड पैथिक लोरेंस, सर स्टेफर्ड क्रिप्स और ए.वी. अलेक्जेंडर शामिल थे। यह मंत्री मंडल २४ मार्च १९४६ को दिल्ली पहुंचा। वाइसराय तथा सरकार के उच्च अधिकारीयों से चर्चा करने के बाद उन्होंने विभिन्न विचारधारा के प्रतिनिधियों से बातचीत आरंभ की।

शिमला में लंबी बैठकों के बाद भी ये प्रतिनिधि मंडल कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता कराने में सफ़ल न हो सका। तब इस प्रतिनिधि मंडल ने शिमला सम्मेलन को असफ़ल घोषित कर दिया और १६ मई १९४६ को अपनी योजना प्रकाशित कर दी जिसे “शिष्टमंत्री मंडल योजना” ( कैबिनेट मिशन) का नाम दिया गया। इस योजना को दो भागों में बांटा गया, एक दीर्घकालीन योजना और दूसरी तात्कालिक योजना।

दीर्घकालीन योजना में संविधान सभा का गठन कर एक संघ शासन व्यवस्था के निर्माण कार्य को रखा गया। इस योजना के अंतर्गत राजशासित राज्यों सहित ब्रिटिश भारत का एक संघ होगा जो विदेशी मामलों, प्रतिरक्षा और संचार का कार्य करेगा। प्रान्तों को यह स्वतंत्रता दी जाएगी कि वे चाहें तो स्वतंत्र रहें अथवा विधानसभाओं और कार्यकारिणियों के साथ मिलकर समूह गठित करें।

संविधान सभा का गठन इस प्रकार का होगा कि जिसमें प्रत्येक प्रान्त को अपनी १० लाख की जनसंख्या पर एक प्रतिनिधि चुनने का अधिकार होगा। मुस्लिम और सिख अपने प्रतिनिधि अलग अलग वोट देकर चुनेंगे, अन्य सभी इकठ्ठे ही वोट देकर प्रतिनिधि चुनेंगे।

सभी प्रान्तों को तीन समूहों में विभाजित किया गया। पहले समूह में मद्रास, बम्बई, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रान्त, बिहार और उड़ीसा को रखा गया, दुसरे में सिंध, बलूचिस्तान, उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त और पंजाब को रखा गया, तथा तीसरे समूह में बंगाल और असम को रखा गया। प्रतिनिधि मंडल का यह विचार था कि इस व्यवस्था से मुस्लिम अल्पमत की पूरी सुरक्षा होगी और लीग की सारी आशंकाएं निर्मूल हो जाएँगी।

तात्कालिक योजना के अंतर्गत उन्होंने सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों को आपसी सहयोग से अंतरिम सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा।

इस योजना में मंत्रिमंडल ने लीग की अलग पाकिस्तान की मांग को अस्वीकार कर दिया, पर प्रान्तों को जिस प्रकार से बांटा गया था, उसमें लीग को भविष्य में विभाजन के बीज दिख रहे थे। जितना पाकिस्तान लीग मांग रही थी, उससे कई अधिक, इस योजना में उसे मिलता दिख रहा था। इस योजना से सभी को संतुष्ट करने का प्रयास किया गया था, मुस्लिम लीग को संतुष्ट करने के लिए केंद्र को निर्बल रखा गया था और कांग्रेस की मांग को ध्यान में रखते हुए एक संघ स्थापित करने की व्यवस्था की गयी थी। संविधान सभा में जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व देकर संविधान सभा को लोकतंत्रीय बनाने का प्रयास किया गया था और इसे पूर्ण स्वतंत्रता और सभी अधिकार दिए गए थे।  इसमें अंतरिम सरकार की व्यवस्था करके सभी विभाग भारतियों को सौंपने को कहा गया।

मुस्लिम लीग ने संविधान सभा के गठन करने की योजना को स्वीकार कर लिया, कुछ त्रुटियों पर ध्यान दिलाकर कांग्रेस ने भी संविधान सभा वाली दीर्घकालीन योजना स्वीकार कर ली। पर अंतरिम सरकार बनाने को लेकर दोनों में मत भेद हुए, मुस्लिम लीग का मानना था कि पुरे भारत की मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिनिधित्व केवल मुस्लिम लीग ही कर सकती है। वाइसराय ने भी पत्र लिखकर कांग्रेस को किसी भी मुस्लिम प्रतिनिधि का नाम न देने से मना कर दिया, क्योंकि उसका चयन नहीं किया जा सकेगा। कांग्रेस ने इसका विरोध किया और अंतरिम सरकार बनाने वाली तत्कालीन योजना को अस्वीकार कर दिया।

(क्रमशः)

संदर्भ:

  • १) श्यामाप्रसाद मुकर्जी : लाइफ एंड टाइम्स , तथागत रॉय
  • २) जिन्नाह : इंडिया पार्टीशन इंडिपेंडेंस , जसवंत सिंह
  • ३) आत्मकथा : डॉ राजेंद्र प्रसाद
  • ४) खान अब्दुल गफ्फर खां : डी जी तेंदुलकर
  • ५) महात्मा गांधी : पूर्णाहुति , प्यारेलाल , हिंदी अनुवाद – रामनारायण चौधरी
  • ६) आधुनिक भारत : पंचशील प्रकाशन

 

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