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ज्ञानवापी हमारी है भाग -१

सूर्योदय के साथ ही मंदिरों से आती वेद ध्वनि और घंटियों के पवित्र स्वर गंगा घाट को जगाने लगते हैं। पण्डे यजमानों को तीर्थ का माहात्म्य सुनाते हैं और गंगा में श्रद्धा की डुबकी लगाते श्रद्धालु तीर्थ की महिमा को सनातन करते हैं। काशी के पवित्र तीर्थ जिनकी महिमा वेदों और पुराणों में हुई है, ऐसा ही मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करते हैं। सर्व प्रथम तीर्थ स्थल के रूप में काशी की महिमा का वर्णन महाभारत में मिलता है। पुलस्त्य ऋषि धर्मराज युधिष्ठिर जी से तीर्थों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वाराणसी तीर्थ जायें तो भगवान शिव की पूजा करें और कपिल कुंड में स्नान करें, उससे राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

             ततॊ वाराणसीं गत्वा अर्चयित्वा वृषध्वजम्।
कपिलाहृदे नरः स्नात्वा राजसूयमवाप्नुयात्।।

अविमुक्त तीर्थ में देवदेव महादेव के दर्शन मात्र से मनुष्य ब्रह्महत्या से मुक्त हो जाता है, ऐसा पुलस्त्य ऋषि धर्मराज से कहते हैं। यहाँ प्राणोत्सर्ग करके मनुष्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।

अविमुक्तं समासाद्य तीर्थसेवी कुरुद्वह।
दर्शनाद् देवदेवस्य मुच्यते ब्रह्महत्यया ।।

प्राणानुत्सृज्य तत्रैव मोक्षं प्राप्रोन्ति मानवः।

जाबालोपनिषत् से ज्ञात होता है कि अविमुक्त वाराणसी के मध्य में विराजमान है। ऋषि याज्ञवल्क्य जी कहते हैं कि अविमुक्त वरणा और नाशी के मध्य में विराजमान हैं।

वरणायां नाश्यां च मध्ये प्रतिष्ठित इति। (जाबालोपनिषद् – ३)

वरणा एवं नाशी के महत्व को समझाते हुए याज्ञवल्क्य जी कहते हैं

सर्वानिन्द्रियकृतान्दोषान्वारयतीति तेन वरणा भवति।

सर्वानिन्द्रियकृतान्पापान्नाशयतीति तेन नाशी भवतीति। (जाबालोपनिषद् – ३)

“समस्त इन्द्रियकृत दोषराशि का निवारण करने वाली को वरणा और समस्त इन्द्रियकृत पाप नाश करने वाली को नाशी कहते हैं।“

स्कन्दपुराण के काशी खंड में कथा मिलती है कि, “ईशान कोण के अधिपति रूद्र ईशान एक समय इस तीर्थ में आये, उन्होंने भगवान शिव के विशाल ज्योतिर्मय लिंग का दर्शन किया, जो सब ओर से प्रकाशपुंज द्वारा व्याप्त था। महालिंग को स्नान कराने की इच्छा से रुद्र ईशान ने लिंग से थोड़ी दुरी पर त्रिशूल द्वारा भूमि खनन कर एक कूप का निर्माण किया। उस कुंड से पृथ्वी की अपेक्षा दस गुणा जल निकला और उस जल से भूमंडल आवृत हुआ। उस समय रुद्र ईशान देव ने सहस्त्र कलश जल भर ज्योतिर्मय विश्वेश्वर रूपी महालिंग को स्नान कराया।

भगवान विश्वेश्वर ने रूद्र के प्रति प्रसन्न हो वर दिया कि, जो शिव शब्द का अर्थ विचारते हैं, वह उसका अर्थ ज्ञान बतलाते हैं। वही ज्ञान हमारी महिमा से यहाँ जल रूप में द्रवीभूत हुआ है। इसलिये यह तीर्थ ज्ञानोद नाम से विख्यात होगा।” इस तीर्थ के स्पर्श करने से सर्वपाप दूरीभूत होते हैं। फिर इसके स्पर्श और आचमन से अश्वमेघ तथा राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। ज्ञानस्वरुप हमीं यहाँ द्रवमूर्ति बन जीवगण की जड़ता विनाश और ज्ञान उपदेश करते हैं।”  (काशीखण्ड ३०/३२/३३)

शिवज्ञानमिति ब्रूयुः शिवशब्दार्थचिंतकाः ।
तच्च ज्ञानं द्रवीभूतमिह मे महिमोदयात् ।।
अतो ज्ञानोद नामैतत्तीर्थं त्रैलोक्यविश्रुतम् ।

शिव महापुराण में यह कूप “वापीजल” नाम से वर्णित हुआ है।

वापीजलं तु तत्रस्थं देवदेवस्य संनिधौ ।

 इन ग्रंथों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि अति प्राचीन युग में काशी एक जनपद थी और वहाँ वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ यज्ञ हुआ करते थे। काशी के तीर्थ स्थलों में वाराणसी और अविमुक्त तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन मिलता है। वरणा और नाशी नदी के मध्य के क्षेत्र को वाराणसी कहते हैं। वाराणसी के मध्य में है अविमुक्त तीर्थ जहाँ भगवान विश्वेश्वर लिंग रूप में स्थापित हैं। ईशान नाम के रूद्र ने यहाँ विश्वेश्वर तीर्थ की शिवलिंग को स्नान कराने की इच्छा से कूप का निर्माण किया। इस कूप से शिव के आशीर्वाद से जल ज्ञान रूप में द्रवीभूत हुआ। इसी ज्ञान कूप को वापीजल अथवा ज्ञानवापी के नाम से जाना जाता है। काशी क्षेत्र में वाराणसी तीर्थ है, उसके मध्य में अविमुक्त तीर्थ है जहाँ भगवान विश्वेश्वर लिंग रूप में हैं, और ज्ञान रूप में कूप से जल प्रकट हुआ है। इन ग्रंथों से हमें काशी के प्राचीन समय में तीर्थ स्थल होने के तथ्य प्राप्त होते हैं।

संदर्भ : –

  • The Holy City (Benares) – Rajani Ranjan Sen
  • Maasir I Alamgiri – Saqi Mustad Khan Translated by Sir Jadunath Sarkar
  • हिंदी विश्वकोष (iv) – श्री नगेन्द्रनाथ वसु
  • The Dynastic History of Northen India – H.C. Ray
  • Downfall of Hindu India – C.V. Vaidya
  • Benares The Sacred City (Sketches of Hindu Life And Religion) – E.B. Havell
  • Benaras The Stronghold Of Hinduism – C. Phillips Cape
  • Descriptive And Historical Account of North-Western Provinces Of India – F.H. Fisher & J.P. Hewett
  • Description Of A View Of The Holy City Of Benares And The Sacred Ganges – Robert Burford
  • Benares Illustrated In A Series Of Drawings – James Prinsep

    Feature Image Credit: wikipedia.org

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