ज्ञान परंपरा: प्राचीन भारत तथा महिला शिक्षा

24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर प्राचीन भारत में महिला शिक्षा की पुरोधा रही कुछ महान शिक्षिकाओं तथा उनके योगदान पर विनीत शर्मा द्वारा प्रस्तुत लेख।

ऋषिका शाण्डिली: गरुड़ का अहंकार तथा आत्मबोध

शाण्डिली की कृपा से उसके पंखों में अब अधिक शक्ति आ गई थी। उनका आशीर्वाद लेकर गरुड़ पुनः गुरुदक्षिणा के लिए घोड़ों की तलाश में गालव के साथ प्रस्थान कर गए।

जरत्कारु मुनि: (भाग-४) तप, संयम तथा आत्म सुधार

जरत्कारु जो तीर्थयात्रा में अपने पूर्वजों से मिलते हैं और वासुकि जो अपनी भगिनी को जरत्कारु से विवाह करने के लिए वर्षों से प्रतीक्षा कर रहे होते हैं, उसी आत्म सुधार के तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं।

जरत्कारु मुनि: (भाग-३) तप, संयम तथा आत्म सुधार

कठिन तपस्या के लिए विख्यात व कठोर ब्रह्मचारी ऋषि जरत्कारु की कथा के हिन्दू अनुवाद का तीसरा भाग लेकर आपके सामने प्रस्तुत हैं विनीत शर्मा

जरत्कारु मुनि: (भाग-२) तप, संयम तथा आत्म सुधार

जरत्कारु दुःख से स्तब्ध थे। उनका हृदय दु:ख से भर गया और गला रुंध आया, बोलने के लिए वे संघर्ष कर रहे थे। अब तक उन्हें अपने तपस्वी जीवन पर गर्व था और आज यहाँ वह अपने पूर्वजों के सामने थे और यह ज्ञान मिल रहा था

जरत्कारु मुनि: (भाग-१) तप, संयम तथा आत्म सुधार

ऋषि उग्रश्रवा ने ये कथा इसी स्थान पर अपने पिता लोमहर्षण से सुनी थी। आस्तिक का आख्यान सुनाने से पहले उनके पिता जरत्कारु की कथा सुनाई गई, जो इस लेख का केंद्र बिंदु हैं। जरत्कारु कठिन तपस्या के लिए विख्यात थे।