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जय सोमनाथ – भाग २: प्रभास पाटन का तीर्थ

प्रभास पाटन में सोमनाथ का मंदिर है और यहाँ मौजूद एक बाणस्तम्भ पर पत्थर पर उकेरी गयी संस्कृत उक्ति कहती है कि इस दिशा में सीधा चलने पर दक्षिणी ध्रुव पर भूमि मिलेगी। दक्षिणी ध्रुव से यहाँ तक सीधा समुद्र का पानी ही पानी है! संस्कृत जानने वालों को जलमार्गों की इतनी जानकारी क्यों थी पता नहीं। प्रभास पाटन गुजरात के इलाके में है और वहां के गाँधी जी तो मानते थे कि समुद्र यात्रा से धर्म भ्रष्ट हो जाता है! प्रभास पाटन का ये तीर्थ यानी सोमनाथ, सदियों से यहीं था। गाँधी जी के दौर में ये जीर्ण शीर्ण अवस्था में था। आमिर खुसरो के मुताबिक गुजराती मुहम्मडेन हज पर जाते समय यहाँ माथा टेककर जाते थे।

इस मंदिर को अंतिम बार जिन्दा पीर औरंगज़ेब ने तुड़वा डाला था। एक बार 1665 में तुड़वाने के बाद जब उसे लगा कि हिन्दुओं ने यहाँ फिर से पूजा शुरू कर दी है, तो उसने 1702 इसे पूरी तरह जमीन से उखाड़ फेंकने का फ़र्मान जारी किया। आजादी के वक्त के.एम. मुंशी जैसे नेताओं ने इस मंदिर के सम्बन्ध में गाँधी जी से बात की। गाँधी जी ने मंदिर फिर से बनाने की मंशा पर सहमती जताते हुए कहा कि इसे सरकारी खर्च से नहीं, जनता के पैसे से ही बनना चाहिए। पता नहीं उन्हें क्यों लगता था कि मंदिर बनाने के लिए सरकार पैसे देगी, भारत सरकार तो मंदिरों की संपत्ति असंवैधानिक रूप से लेती रही है!

इस मंदिर के पुनः निर्माण से जुड़ी दो रोचक कहानियां हैं। एक तो 1782-83 की है जब महातजी शिंदे ने लाहौर में महमूद शाह अब्दाली को हराया तो उससे वो इस मंदिर के दो चांदी के दरवाजे भी छीन लाये। सोमनाथ के पुजारियों ने उन दरवाजों को मंदिर में लगाने से इनकार कर दिया। सेना के सामने गायें हैं, इसलिए तीर मत चलाओ वाली मानसिकता शायद गयी नहीं थी। ये दोनों दरवाजे अब उज्जैन में हैं। एक तो महाकालेश्वर मंदिर में लगा है और दूसरा गोपाल मंदिर में। दूसरा किस्सा सन 1842 का है जब ब्रिटिश जूड लॉ ने सेना को अफगानिस्तान से गजनी के रास्ते लौटने का आदेश दिया।

उसका आदेश महमूद गजनी के मकबरे पर लगे दरवाजे उखाड़ लाने का था। जनरल विलियम नॉट की कमान में छठी जाट लाइट इन्फेंट्री ने हमला किया और महमूद गजनी के मकबरे से चन्दन के दरवाजे उखाड़ लाये। भारत पहुँचने पर पता चला कि दरवाजे भारतीय चन्दन के नहीं, बल्कि अफगानी देवदार के हैं। उनकी नक्काशी भी भारतीय नहीं लग रही थी, इसलिए वो दरवाजे असली नहीं हो सकते। लिहाजा ये नकली दरवाजे आगरा के किले में रखवा दिए गए और अब भी महमूद गजनवी की कब्र के दरवाजे वहीँ कहीं तहखाने में पड़े सड़ रहे होंगे। खैर रोचक कहानियों से आगे हालिया इतिहास में सोमनाथ मंदिर बनवाने पर फिर से वापस चलते हैं।

के.एम. मुंशी घोषित रूप से हिन्दुत्ववादी थे। उनके सख्त लहजे की वजह से और गाँधी वाली अहिंसा को न मानने के कारण वो कुछ साल कांग्रेस से बाहर भी गुजार आये थे। जाहिर है ऐसे सख्त प्रशासकों से राजेन्द्र बाबु और सरदार पटेल जैसे नेताओं की अच्छी बनती थी। सरदार पटेल जब 12 नवम्बर 1947 को जूनागढ़ की शांति-व्यवस्था की स्थिति के निरिक्षण के लिए आये तो उन्होंने मंदिर के पुनःनिर्माण का आदेश भी जारी कर दिया। थोड़े ही समय में सरदार पटेल और गाँधी, दोनों की मृत्यु हो चुकी थी। “जय सोमनाथ” जैसी किताबें लिखने वाले के.एम.मुंशी उस समय खाद्य मंत्री थे।

अक्टूबर 1950 में पुराने ढांचे को हटाया गया और वहां झाड़-झंखाड़ की तरह उग आई मस्जिद को भी वहां से कहीं दूर हटा दिया गया। सोमपुरा सलात कारीगरों की कलात्मकता का ये नमूना चालुक्य शैली के “कैलाश महामेरु प्रसाद” रूप में बना हुआ है। गुजरात के दक्षिणी तटों पर, सौराष्ट्र के प्रभास पाटन का ये तीर्थ मई 1951 से भारत की प्रतिष्ठा की पुनःस्थापना में लगा है। के.एम.मुंशी ने इस पुनीत कार्य के आरंभ के लिए राजेन्द्र बाबु (तब के राष्ट्रपति) को विशेष रूप से आमंत्रित किया था। कहते हैं, वो इस काम के लिए आये तो सरकारी खर्चे पर नहीं, खुद अपने खर्च पर गए थे।

मलेच्छों के आक्रमण का एक घाव तो भरा मगर अभी कई और घाव भरने बाकी हैं। हाँ ये जरूर कहा जा सकता है कि घावों पर मरहम रखते ही फूल फिर से खिलने लगे हैं। बुतशिकनों की छाती पर मूंग दलने के लिए दुनियां की सबसे ऊँची प्रतिमा उग आई है! अगली बार जब पूछा जाएगा कि पुरानी छोड़ो, ये बताओ कि स्वतंत्र भारत में क्या बना? तो हम कहेंगे थोड़ा पढ़कर क्यों नहीं आते मियां? विश्व कीर्तिमान ही देख लेते!

Feature Image credit: wikipedia.org

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