श्रावण मास की शोभा से संपूर्ण शिवालय जगमग था। कार्तिकेय और विनायक शिव के समीप बैठ इस अद्भुत रस से सराबोर हो रहे थे। मस्तक पर स्थापित माँ गंगा शीतल मंद स्मित लिए शिवमय हो रही थीं। प्रकृति ने भी स्वयं शिवस्वरूप रमा लिया था कि तभी माता पार्वती का प्रवेश होता है।
कथा प्रसंग जुड़ते रहेंगे, माध्यम परिवर्तित होते रहेंगे परंतु राम त्रेता से कलयुग के ‘आदिपुरुष’ थे,हैं और रहेंगे। गरिमा तिवारी बता रही हैं आपने, उनके और हमारे राम की भक्ति कथा।
आधुनिक पश्चिम में कला ‘व्यक्ति’ और ‘व्यक्तिगत नवीनता’ पर टिकी हुई है। इसे केवल व्यक्ति के नाम से ही जाना जाता है। आधुनिक कला में कलाकार ही सर्वोच्च है।
क्या आपने कभी जानने की चेष्टा की कि मूर्ति पर कलाकार के हस्ताक्षर कहाँ है? मंदिर पर वास्तुकार का नाम कहाँ है? कला में स्थित कलाकार कहाँ है? ये कुछ अज्ञात से प्रश्न हैं।
मानव सृष्टि के आदि में भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से नि:सृत अविनाशी योग अर्थात श्रीमद्भगवद्गीता जिसकी विस्तृत व्याख्या वेद और उपनिषद में है, उसी आदिशास्त्र को भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के प्रति पुनः प्रकाशित किया।
आइए ! इस दीपोत्सव की शुभ बेला में हम भी जलते दीपक के समान इन संदेशों को धारण कर अपने जीवन को अनंत प्रकाश से भर आनंद के सागर में अवगमन करें और अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को राष्ट्रहित में समर्पित करें।