close logo

वरलक्ष्मी व्रतकथा

आज देवों के देव महादेव का निवासस्थल हिमालय भक्ति,श्रद्धा और समर्पण से सुसज्जित अलग ही शोभायमान हो रहा था। धवल हिम के आसन पर विराजमान शिव कभी नंदी को देख प्रसन्न होते तो कभी बाकी गणों को देख आह्लादित।
नारद मुनि भी स्वयं को ना रोक सके और नारायण नारायण के पश्चात् शिव भक्ति में लीन हो गए।

श्रावण मास की शोभा से संपूर्ण शिवालय जगमग था। कार्तिकेय और विनायक शिव के समीप बैठ इस अद्भुत रस से सराबोर हो रहे थे। मस्तक पर स्थापित माँ गंगा शीतल मंद स्मित लिए शिवमय हो रही थीं। प्रकृति ने भी स्वयं शिवस्वरूप रमा लिया था कि तभी माता पार्वती का प्रवेश होता है।

“अद्भुत! आह्लादकारी!…स्वामी क्या ही मनोरम दृश्य है।”  शैलपुत्री ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।

“आइए देवि! आप भी हमारे संग आनंदित हो लीजिए।” शिव ने न्योता दे दिया।

माँ दयालु हैं,तत्क्षण बोल उठीं,” स्वामी! क्या यह संभव नहीं कि संपूर्ण पृथ्वीलोक पर ही इस क्षण के समान ही प्रसन्नता एवं आत्मिक शांति की अनुभूति करें?”

शिव ज्ञानी होकर भी अज्ञानी बने,” देवी! कहिए क्या ऐच्छिक है?”

“प्रभु! संपूर्ण पृथ्वीलोक में सौभाग्य का वास किस प्रकार हो?” माता उत्साहित होकर बोलीं।

“इस हेतु वरलक्ष्मी व्रत का विधान है देवी।”

“वरलक्ष्मी व्रत?

स्वामी विस्तार पूर्वक इस कथा का श्रवण कराएँ एवं हम सभी की जिज्ञासा का समाधान करें।” माता उत्साहित होकर बोलीं।

“तो सुनिए देवि! वरलक्ष्मी कथा इस प्रकार है”

“प्राचीन काल की बात है। चारूमति नाम की एक अत्यंत ही धार्मिक और श्रद्धालु महिला थीं। घर परिवार की उचित सार संभाल करने के पश्चात् वे नित्य प्रति माँ वरद लक्ष्मी की पूजन में अपना अमूल्य समय व्यतीत करतीं।
व्यवहारकुशल चारूमति मनसा वाचा कर्मणा किसी को व्यथित नहीं करती थी।

एक रात चारूमति गहरी निद्रा में थीं कि तभी उन्होंने क्षीर के समान धवल,सोलह श्रृंगार से सज्जित, रक्तवर्णी वस्त्र से सुशोभित,कमल आसन पर विराजित देवि लक्ष्मी को देखा।

माँ ने मुस्कान के साथ कहा,”पुत्री! मैं प्रसन्न हूँ और तुम्हें वर देने की इच्छा रखती हूँ।सुख संपन्नता और सौभाग्य में उत्तरोत्तर वृद्धि हो,ऐसा वर देती हूँ।”

चारूमती ने करबद्ध निवेदन किया”हे माँ! मेरी बाकी बहनों, परिजनों और कुटुम्ब के सदस्यों के लिए भी यही वर देने की कृपा करें।”

माता लक्ष्मी ने उपाय बताते हुए कहा,” श्रावण मास की पूर्णिमा से पहले वाले शुक्रवार को संपूर्ण विधि विधान से मेरा व्रत करने,कथा का श्रवण करने से इसी प्रकार के सौभाग्य की प्राप्ति होगी।इसे स्त्री एवं पुरुष समान रूप से कर सकते हैं।”

चारूमती ने प्रसन्नता से माता को नमन किया।उसके नेत्र अश्रु से भर उठे और वह तत्काल अपने परिजनों एवं सखियों को सूचित करने हेतु दौड़ पड़ी।

पूर्णिमा से पूर्व शुक्र को दोनों पति-पत्नी ने व्रत का संकल्प लें पूजन आरंभ किया।

चटक लाल वस्त्र पर चावल बिछाकर कलश स्थापित किया,जिसे आम्रपर्ण से सुसज्जित कर माता लक्ष्मी और गणेश जी की प्रतिमा को संपूर्ण पूजन सामग्री से पूजित किया।

कई प्रकार के चावल,रसम,पायसम आदि का भोग लगा प्रसाद वितरित किया और इस प्रकार सुख सौभाग्य में वृद्धि की।”

वरलक्ष्मी व्रतकथा एवं पूजन विधान सुन माता पार्वती आह्लादित हो उठीं और शिव को नमन कर व्रत की तैयारी में व्यस्त हो गईं।

श्रावण मास में जहाँ संपूर्ण उत्तर भारत शिवमय हुआ रहता है। ‘बम भोले’ के जयकारों से आकाश गूंजायमान हो उठता है वहीं दक्षिण भारत में भी त्योहारों की श्रृंखला सी बनी रहती है।
अखंड सौभाग्य का सूचक वरलक्ष्मी पूजन इस वर्ष आज दिनाँक २० अगस्त को श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मनाया जा रहा।

इंडिक परिवार आप सबके सौभाग्य की कामना करता है।

Image credit: indianastrology

Disclaimer: The opinions expressed in this article belong to the author. Indic Today is neither responsible nor liable for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in the article.

Leave a Reply