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श्राद्ध

जब मैं बृहत्तर भारत की बात करता हूँ उसमें केवल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश नहीं आता। उसमें आता है अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, म्यांमार, लाओस, थाईलैंड, कम्बोडिया, वियतनाम से मलेशिया, इंडोनेशिया तक.. और यह सब कोई कोरी कल्पना नहीं है बल्कि इतिहास के पन्नों में इस बृहत्तर हिन्दूराष्ट्र अखण्ड भारत की सांस्कृतिक चेतना आज तक भी पूरी तरह नहीं सोई है। और इस सांस्कृतिक एकात्मता की एक अद्वितीय पहचान है

श्राद्ध”

श्राद्ध सनातन धर्म और सनातन धर्म से निकले बौद्ध धर्म का भी आज तक एक अमिट अंग है। उपर बताए गये सभी देशों और जहाँ तक सनातन धर्म का प्रभाव रहा वहां आज तक पूर्वजों की तृप्ति के लिए लगभग समान रीतियों से श्राद्ध किया जाता है, जिसमें खासकर बौद्ध देशों को देखकर तो विस्मयमिश्रित गर्व होता है और चिंता भी कि शास्त्रों के श्रेष्ठ सिद्धान्त व सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एकतासूत्र श्राद्ध के विषय में भारत में ही आज दुष्प्रचार किया जाता है।

चीन व ताइवान में श्राद्ध

चीन का प्रत्येक परिवार पूर्वजों की पूजा करता था। वे पितरों का तर्पण प्रतिदिन करते थे। पूर्वजों की स्मृति में गायन, नृत्य, भोजन आयोजित करते थे। चीनी मान्यता है कि मृत्यु के बाद दिव्य आत्माएं वायुमंडल से अपनी सन्तानों की संकट के समय सहायता करती हैं, और असंतुष्ट आत्माएं प्रेत बनकर कष्ट देती हैं। प्राचीन शांग वंश के समय से ही सम्राट को देवपुत्र माना जाता था। वह वर्ष में एक बार दैवीय वस्त्र पहनकर पृथ्वी व आकाश के देवताओं को बलि अर्पित करता था, व पितरों के मंदिर बनाए जाते थे। पितरों को धूप, दीप, चढ़ाए जाते थे।

चीन में पूर्वजों का श्राद्ध करते लोग

चीनी कैलेंडर के सातवें महीने के 15 दिन पितृपक्ष की भांति मनाए जाते हैं। चीन के बौद्ध और ताओ अपने पूर्वजों के लिए कुर्सियां खाली छोडकर शाकाहारी भोजन निवेदित करते हैं। ईसापूर्व 1500 के शांग साम्राज्य से ही यह परंपरा चीन में चली आ रही है। लोग अपने 7 पीढ़ी तक के पूर्वजों का स्मरण करते हैं और बौद्ध भिक्षुओं को चावल भेंट करते हैं। माना जाता है सारे पितर नर्क या स्वर्ग से धरती पर 15 दिन के लिए आते हैं। अंतिम दिन ‘घोस्ट डे’ के रूप में मनाया जाता है, उस दिन वे अपने घरों के सामने अगरबत्ती जलाते हैं और नदियों में दीपक प्रवाहित करते हैं ताकि पितरों को विदा कर सकें। महायान बौद्ध ग्रन्थ के उल्लंबन सूत्र के अनुसार मुद्गलयायन को बुद्ध ने उपदेश दिया था कि चावल के पिंड अर्पित करके तुम अपनी माँ को प्रेतयोनि से मुक्त करो।

इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया में

यहाँ भी श्राद्ध घोस्ट फेस्टिवल के रूप में साल के सातवें महीने में मनाया जाता है और लोग बौद्ध मन्दिरों में जाकर पितरों के लिए दान करते हैं।

घोस्ट फेस्टिवल

वियतनाम व जापान में श्राद्ध में

वियतनाम में तेतत्रुंग न्गुयेन नाम के इस पर्व पर लोग पितरो के लिए पक्षियों, मछलियों और गरीबों को भोजन कराते हैं। वे पितरों के सम्मान में अलग से भोजन निकालते हैं।

वियतनाम में श्राद्ध

जापान में साल के सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन चुगेन नाम का पर्व मनाया जाता है जिस दिन जापानी लोग पितरों को उपहार अर्पित करते थे परन्तु अब इस दिन लोग सभी वरिष्ठों को उपहार देते हैं। कुछ जापानी समुदाय बॉन पर्व मनाते हैं जिस दिन लोग अपने पितरों के निवास पर जाकर श्रद्धांजली अर्पित करते हैं।

 कम्बोडिया व लाओस में श्राद्ध

पितृपर्व या पिक्म बेन नाम का पर्व कम्बोडिया में सितम्बर अक्तूबर में पड़ता है और तीन दिन की छुट्टी होती है। कम्बोडिया में मान्यता है कि राजा यम प्रेतों के लिए यम का द्वार खोल देते हैं, उनमें कुछ मुक्त हो जाते हैं कुछ वापिस नर्क आ जाते हैं। कम्बोडियाई लोग बौद्ध भिक्षुओं को भोज कराते हैं और चावल के पिण्डों का दान करते हैं। सात पीढ़ियों तक के पितरों की तृप्ति के लिए बौद्ध भिक्षु पाली के सुत्तों के अखण्डपाठ करते हैं।

कम्बोडिया लाओस में श्राद्ध के उपलक्ष्य में बौद्ध भिक्षुओं को भोजन

श्रीलंका, थाईलैंड व म्यांमार में

श्रीलंका में पितृपक्ष मटकादान्य (mataka dānēs or matakadānaya) नाम से मनाया जाता है और श्राद्ध तर्पण को उल्लंबन या सेगाकी कहते हैं जिसमें चावल के पिण्ड और जल प्रेत आत्माओं के लिए अर्पित करते हैं। बाकि परंपरा कम्बोडिया जैसे होती है। म्यांमार में भी बौद्धभिक्षुओं को पूर्वजों के निमित्त दान दिया जाता है।

श्रीलंका में उल्लंबन श्राद्ध पर्व

थाईलैंड में भी कम्बोडिया की तरह पितृपक्ष मनाया जाता है और अंतिम दिन सतथाई नाम से जाना जाता है जिसके अगले दिन से 9 दिवसीय शरद पर्व आता है। इसमें नवरात्र की तरह पूर्ण शाकाहारी रहना होता है।

जैसे हमारे यहाँ साल के सातवें महीने अश्विन में पितृपक्ष पड़ता है वैसे ही इन अधिकांश देशों में पितृपक्ष या पितृ सम्बन्धित ये पर्व साल के सातवें महीने में पड़ते हैं। सभी जगह पितृपर्व सम्बन्धी ज्यादातर मान्यताएं और परम्पराएं भी लगभग समान हैं। इन देशों में अन्य पर्व भी हिन्दू त्यौहारों से समानता रखते हैं। यह सब जानकर भी कौन नहीं मानेगा कि यह सब देश एक सांस्कृतिक सूत्र में जुड़े रहे हैं और वह सूत्र है “सनातन”..

Feature Image Credit: indiatimes.com

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