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भारतीय ग्रंथों तथा पुराणों में देवी दुर्गा का वर्णन – भाग ७

पिछले अंक में आपने श्री मार्कंडेयपुराण में, सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत, देवीमाहाम्य में, “चंड-मुंड-वध” की कथा पढ़ी थी जिसका वर्णन सप्तम अध्याय में था।

चंड तथा मुंड नामक असुरों का वध तथा चतुरंगिनी सेना के सम्पूर्ण संहार का समचार प्राप्त होने पर असुरराज शुम्भ अत्यधित आश्चर्यचकित होता है और वह अपने राज्य के दैत्यों की शेष सेना के उदायुध नामक छियासी दैत्य-सेनापति तथा कम्बु नामक दैत्यों के चौरासी सेनानायक, को युद्ध हेतुकूच करने की आज्ञा देता है।

शुंभ आदेश देता है कि कालक, दौहृद, मौर्य तथा कालकेय असुर तथा पचास कोटि वीर्य कुल के तथा सौधौम्र-कुल के असुर सेनापति युद्ध हेतुप्रस्थान करें।
अत्यंत भयावह सहस्त्रवाहिनी सेना को युद्धभूमि में प्रविष्ट होता देख माँ चण्डिका अपने धनुष की टंकार से पृथ्वी तथा आकाश को गुंजा देती हैं। तदनंतर सिंहराज की दहाड़ तथा माँ अम्बिका के घंटे की ध्वनि से आकाश गुंजायमान हो जाता है।
उस तुमुल नाद को सुन दैत्यों की सेनायें चंडिका देवी, सिंहराज तथा देवी काली पर चहुँ ओर से आक्रमण आरंभ करती हैं।

युद्ध आरम्भ देख असुरों के विनाश तथा देवताओं के अभ्युदय हेतु ब्रह्मा, शिव, कार्तिकेय, विष्णु तथा इंद्र आदि देवों की शक्तियां, जो अत्यंत पराक्रम तथा बल से सम्पन्न थीं, अपने शरीरों से निकलकर उन्हीं के रूप में चंडिका देवी के सम्मुख प्रकट होती हैं।

सर्व प्रथम हंसयुक्त विमानपर विराजमान अक्षसूत्र तथा कमंडलु से सुशोभित, ब्रह्माजी की शक्ति उपस्थित हुई, जिसे ‘ब्रह्माणी’ कहते हैं। महादेवजी की शक्ति वृषभ पर आरूढ़ हो, हाथों में त्रिशूल धारण किए, महानाग का कंकण पहने, मस्तक में चंद्ररेखा से विभूषित हो वहाँ प्रकट होती है।

कार्तिकेयजी की शक्तिरूपा ‘जगदम्बिका’, उन्हीं का रूप धारण किए, श्रेष्ठ मयूर पर आरूढ़ हो, हाथ में शक्ति लिए, दैत्यों से युद्ध करने हेतु उपस्थित होती है।

इसी प्रकार भगवान विष्णु की शक्ति गरुड़ पर विराजमान हो, शंख, चक्र, गदा, शार्ङ्ग धनुष तथा खड्ग हाथ में लिए वहाँ प्रकट होती है।

अनुपम वाराह का रूप धारण करने वाले श्रीहरि की जो शक्ति है, वह भी वाराह-शरीर धारण करके, वहाँ उपस्थित होती है। नरसिंही शक्ति भी नृसिंहके समान शरीर धारण करके वहाँ आती है। इसी प्रकार इंद्र की शक्ति वज्र हाथ में लिए, गजराज ऐरावत पर विराजे उपस्थित होती है।

तदनंतर उन देव-शक्तियोंसे घिरे हुए महादेवजी ने चंडिका से इन असुरों का संहार करने की विनती करते हैं। महादेव की विनती सुन महाचंडी देवी के शरीर से अत्यंत भयानक तथा परम उग्र चंडिका-शक्ति प्रकट होती हैं।

अपराजिता देवी महादेवजी से प्रार्थना करती हैं कि वह शुम्भ-निशुम्भ के पास दूत बनकर जाएँ तथा मेरा एक सन्देश उन तक प्रेषित करें। महादेव गर्वीले दानव शुम्भ एवं निशुम्भ को यह चेतावनी दें कि यदि वह जीवित रहना चाहते हैं तो तुरंत पाताललोक की ओर प्रस्थान करें। यदि बल के घमंड में आकर वह युद्ध की अभिलाषा रखते हैं तो उनका स्वागत है।

दैत्य तथा असुर भगवान शिव के मुख से देवी के वचन सुनकर क्रोध में भर गए तथा जहाँ कात्यायनी विराजमान थीं उस और युद्ध हेतु कूच कर गए। दैत्यों द्वारा देवी के ऊपर बाण, शक्ति तथा ऋष्टि आदि अस्त्रों की वृष्टि को माँ चंडिका ने अपने धनुष द्वारा काट डाला। महाकाली ने अपने उग्र रूप में शत्रुऒं को शूलप्रहार से विदीर्ण किया तथा खट्वांग द्वारा उनका नाश कर डाला।

रणभूमि में जहाँ ब्रह्माणी कमंडलु का जल छिड़ककर, शत्रुओं का ओज तथा पराक्रम नष्ट कर रहीं थीं। वहीं माहेश्वरी ने त्रिशूल से तथा वैष्णवी ने चक्र से तथा अत्यंत क्रोध में भरी हुई कुमार कार्तिकेय की शक्ति ने शक्ति से दैत्यों का संहार आरम्भ कर दिया था।

इंद्रशक्ति के वज्र प्रहार से विदीर्ण हो सैकड़ों दानव रक्त की धारा बहाते हुए मृत हो चुके थे। वाराही शक्ति ने कितनों को अपनी थूथुन की मार से नष्ट कर डाला था। नारसिंही भी असुरों और दैत्यों को अपने नखों से विदीर्ण कर तथा सिंहनाद से दिशाऒं एवं आकाश को गुंजाती हुई युद्ध-क्षेत्र में विचर रहीं थी।

शिवदूती के प्रचंड अट्टाहास से भयभीत हो जब असुर पृथ्वी पर गिर पड़े तो उन्हें शिवदूती ने अपना ग्रास बना लिया।

असुरों सेनापतियों का मर्दन होते देख दैत्य अंत में सैनिक युद्ध स्थल से भाग खड़े होते हैं। इस प्रकार दैत्यों को युद्धभूमि से प्रस्थान करता देख रक्तबीज नामक महादैत्य युद्धभूमि में प्रवेश करता है। रक्तबीज को वरदान था कि जब भी उसकी बिंदु रक्त पृथ्वी पर गिरेगी, उस स्थान पर एक नवरक्तबीज का जन्म होगा।

महाअसुर रक्तबीज हाथ में गदा लेकर इंद्रशक्ति के साथ युद्ध करने लगा। ऐंद्री ने अपने वज्र से रक्तबीज पर वार किया तब वज्र से घायल होने पर उसके शरीर से रक्तधारा निकलने लगी किन्तु वरदान स्वर उस रक्तधारा से उसी के समकक्ष पराक्रमी योद्धा जन्म लेने लगे। युद्ध कौशल में वे सभी रक्तबीज के समान ही वीर्यवान, बलवान् तथा पराक्रमी थे।

ऐन्द्री द्वारा पुन: वज्र प्रहार पश्चात उसके घायल मस्तक से बह रहे रक्त द्वारा सहस्त्र रक्तबीजों ने जन्म ले लिया। इस प्रकार वैष्णवी ने युद्ध में रक्तबीज पर चक्र का प्रहार किया तथा कौमारी ने शक्ति से, वाराही ने खड्ग से तथा माहेश्वरी ने त्रिशूल से, महादैत्य रक्तबीज को घायल किया किन्तु शक्ति तथा शूल आदि से अनेक बार घायल होने पर जो उसके शरीर से रक्त की धारा धरती पर गिरी, उससे भी सैकड़ों असुर उत्पन्न होते जा रहे थे।

इस प्रकार उस महादैत्य के रक्त से प्रकट हुए, असुरों द्वारा सम्पूर्ण जगत् दैत्यमान होता जा रहा था। देवताऒं के मन में व्याप्त भय था देवगणों को उदास देख चंडिका ने काली को आदेश दिया कि अपना मुख विकराल करें तथा शस्त्रपात से गिरने वाले रक्त बिंदुओं तथा उनसे उपन्न होने वाले महादैत्यों का भक्षण करती जावें।

काली को आदेश दे चंडिका देवी अपने शूल से रक्तबीज पर प्रहार किया। तत्पश्चात काली ने अपने विकराल मुख में उसका रक्त ले लिया। रक्त गिरने से काली के मुख में जो महादैत्य पैदा हुए उनका भी काली ने भक्षण कर डाला। घायल रक्तबीज का रक्तपान करने में उन्हें क्षणमात्र भी न लगा।

इस प्रकार शस्त्रों के समुदाय से, आहत तथा रक्तहीन हुआ, महादैत्य रक्तबीज धराशायी हो गया और मृत्यु को प्राप्त हुआ।

इस प्रकार श्रीमार्कंडेय पुराण में, सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत, देवी माहाम्य में, रक्तबीज-वध नामक, आठवां अध्याय पूरा होता है।
अगले अंक में हम आपके समक्ष लेकर आयेंगे शुम्भ-निशुम्भ की कथा।

हमसे जुड़े रहने हेतुआपका आभार…

सन्दर्भ-
https://www.symb-ol.org/app/download/11179828/Devi+Mahatmyam.pdf
an article by Anasuya Swain, Orissa Review.
https://www.louisianafolklife.org/LT/Articles_Essays/NavaratriStory.html
http://aranyadevi.com/aranyadevi/pdf/Durga_Saptashati.pdf
https://sanskritdocuments.org/doc_devii/durga700.html?lang=sa
https://lookoutandwonderland.com/shop/2020/3/30/nx26hcepfkuellv69balm6ebnigdzq
Puranic Encyclopedia: A Comprehensive Work with Special Reference

Image description: The Goddess Ambika Leading the Eight Mother Goddesses in Battle Against the Demon Raktabija, Folio from a Devimahatmya (Glory of the Goddess)
Nepal, early 18th century
Manuscripts

Image credit: collections.lacma.org

Devi Durga Mahatmya

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