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भारतीय ग्रंथों तथा पुराणों में देवी दुर्गा का वर्णन – भाग ६

पंचम अंक में हम आपको महासरस्वती रूप की कथा, जिसका वर्णन मार्कंडेय पुराण के पांचवें से तेहरवें अध्याय में किया गया है, का वर्णन कर रहे थे। आपने पढ़ा था कि जैसे ही सेनापति धूम्रलोचन माँ भगवती पर आक्रमण करने का प्रयास करता है, माँ अम्बिका “हुं” शब्द के उच्चारण मात्र से धूम्रलोचन को भस्म कर देती हैं।

यह कथा श्रीमार्कंडेय पुराण में, सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत, देवीमाहाम्य में छठे अध्याय में वर्णित थी। इस अंक में हम चंड-मुंड और महादेवी युद्ध का वर्णन पढने वाले हैं।

तदनंतर शुम्भ की आज्ञा पाकर चंड-मुंड आदि दैत्य, चतुरंगिनी सेना के साथ अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित हो युद्ध के लिए प्रस्थान करते हैं। गिरिराज हिमालय के सुवर्णमय शिखर पर अपने वाहन सिहंराज पर विराजित हो कर महादेवी सेना को अपनी ओर बढ़ता देख मंद-मंद मुस्कराती हैं।

उन्हें देखकर दैत्य लोग तत्परता से पकडने का उद्योग करने लगे। सभी असुर अपने अस्त्र-शस्त्र धारण कर युद्ध हेतु तत्पर हो जाते हैं। धनुष,तलवार आदि धारण किये असुरों की सेना जैसे ही महादेवी के समीप आती है माँ अम्बिका अपने रौद्र रूप, विकरालमुखी काली, में तलवार तथा पाश धारण किये, प्रकट होती हैं।

महाकाली सिंहचर्म वस्त्र तथा खट्वांग धारण कर नर-मुंडो की माला से विभूषित थीं। उनका मुख अत्यंत विशाल तथा जिव्हा लपलपाने के कारण वह भयावह प्रतीत होती थीं। रक्तिम नेत्र-कमल बाहर आने को व्याकुल प्रतीत होते थे। माँ अम्बिका अपनी भयंकर गर्जना से सम्पूर्ण दिशाऒं को गुंजा रही थीं।

सभी दैत्यों-महादैत्यों का वध करती हुई कालिका देवी अतिवेग से दैत्यों की उस सेना पर टूट पड़ीं।
महादेवी के उस रौद्र रूप को देख पार्श्व रक्षकों, अंकुशधारी महावतों, योद्धाऒं में हाहाकार छा गया।

सैनिकों, हाथियों, अश्वों, रथ तथा उनके सारथियों का भक्षण कर क्षणमात्र में माँ कालिका ने त्राहि-त्राहि मचा दी। महाकाली ने बलशाली एवं दुरात्मा दैत्यों की सम्पूर्ण सेना का नाश करने में किंचित मात्र का विलम्ब नहीं किया।

यह अपनी सेना का इस प्रकार से संहार देख अब चंड ने महाकाली पर आक्रमण कर दिया देवी की ऒर दौड़ा। महादैत्य मुंड ने भी युद्ध में तत्पर होते हुए अत्यंत भयंकर बाणों की वर्षा से महादेवी को आच्छादित कर दिया। किन्तु वह सभी अस्त्र-शस्त्रवे महादेवी के मुख में समाहित होते ऐसे प्रतीत हो रहे थे जिस प्रकार सूर्य की सहस्त्र किरणें महामेघों में प्रवेश कर रही हों।

महादैत्य चंड को अपने समीप पाकर देवी ने हुंकार गर्जन करते हुए उसके केश जकड़कर अपनी विशाल तलवार से उसका मस्तक विच्छेद कर डाला। चंड का वध देख, मुंड भी देवी की ओर झपटा। महादेवी ने चंड की भांति ही मुंड का भी क्षणमात्र में वध कर डाला।

महापराक्रमी चंड तथा मुंड को मृत देख शेष सेना भयभीत हो युद्ध स्थल को छोड़ देती है। तदनंतर महाकाली चंड तथा मुंड का मस्तक हाथ में ले माँ चंडिका के पास जाकर प्रचंड अट्टाहास करते हुए माँ चंडिका देवी को चंड तथा मुंड के संहार के बारे बताती है।

चंड-मुंड के संहार को देखकर कल्याणमयी देवी महाचंडी, देवी महाकाली को चामुंडा देवी के नाम से आशीर्वाद देती हैं। इस प्रकार, श्री मार्कंडेयपुराण में, सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत, देवीमाहाम्य में, ‘चंड-मुंड-वध’ नामक, सातवां अध्याय पूरा हुआ।

अगले अंक में हम आपके समक्ष लेकर आयेंगे रक्तबीज की कथा। हमसे जुड़े रहने के लिए आपका आभार…

सन्दर्भ-

  • https://www.symb-ol.org/app/download/11179828/Devi+Mahatmyam.pdf
    an article by Anasuya Swain, Orissa Review.
  • https://www.louisianafolklife.org/LT/Articles_Essays/NavaratriStory.html
  • http://aranyadevi.com/aranyadevi/pdf/Durga_Saptashati.pdf
  • https://sanskritdocuments.org/doc_devii/durga700.html?lang=sa
  • https://lookoutandwonderland.com/shop/2020/3/30/nx26hcepfkuellv69balm6ebnigdzq
  • Puranic Encyclopedia: A Comprehensive Work with Special Reference

Image credit: picxy

Devi Durga Mahatmya

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