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भारतीय ग्रंथों तथा पुराणों में देवी दुर्गा का वर्णन – भाग ४

पिछले अंकों में आप मेधा ऋषि द्वारा महाकाली (पहला अध्याय), महालक्ष्मी महिषासुरमर्दिनी (दूसरे से चौथे अध्याय तक), तथा विभिन्न दैत्यों, राक्षसों, दानवों के मध्य युद्धों का वर्णन पढ़ चुके। इस अंक में हम आपको महासरस्वती रूप की कथा, जिसका वर्णन मार्कंडेय पुराण के पांचवें से तेहरवें अध्याय में किया गया है, के बारे में बताने वाले हैं।
पूर्वकाल में शुम्भ तथा निशुम्भ नामक बलशाली असुर अहंकार के मद में चूर इंद्र से तीनों लोकों का राजपाट तथा यज्ञभाग छीन लेते हैं। शुम्भ तथा निशुम्भ सभी देवगणों को पराजित, अपमानित तथा अधिकारहीन कर स्वर्ग से निकाल देते हैं। शुम्भ तथा निशुम्भ सूर्य, चंद्रमा, कुबेर, यम तथा वरुण के अधिकारों का भी उपयोग करने लगते हैं। साथ ही वायु तथा अग्नि का कार्य भी दोनो करने लगते हैं।
इंद्र से रत्नभूत ऐरावत, पारिजात, उच्चैश्रवा घोड़ा ,ब्रह्माजी का हंसों से जुता हुआ विमान, कुबेर से महापद्म निधिसागर से किंजल्किनी माला, जो केसरों से सुशोभित रहती थी तथा जिसके कमल कभी कुम्हलाते नहीं थे, सभी कुछ अपने वश में कर लेता है। सुवर्ण की वर्षा करनेवाला वरुण का छत्र एवम् प्रजापति का रथ, वरुण का पाश तथा सागर स्थित भांति-भांति प्रकार के रत्न निशुम्भ अपने अधिकार में कर लेता है। इतना ही नहीं, अग्निदेव भी स्वत: शुद्ध किए हुए दो वस्त्र उसकी सेवामें अर्पित कर देते हैं।
शुम्भ तथा निशुम्भ से तिरस्कृत देवतागण अपराजिता देवी का स्मरण कर माँ जगदम्बा की शरण में जाते है तथा भगवती विष्णु माया की स्तुति में लीन हो जाते हैं। स्तुति से प्रसन्न हो, देवी पार्वती की कोशिकाओं से कौशिकी प्रकट हो देवगणों को दर्शन देती हैं।
तदनंतर, शुम्भ-निशुम्भ के भृत्य चंड-मुंड वहाँ भ्रमण करते हुए परम मनोहर रूप धारण करने वाली अम्बिका देवी को देख अचंभित हो जाते हैं। वे शीघ्रता से शुम्भ के पास पहुँच अपनी दिव्य कांति से हिमालय को प्रकाशित कर रही महायोगिनी के रूप का वर्णन करते हैं। चंड-मुंड के वचन सुन, शुम्भ उस रूपणि के दर्शन हेतु व्याकुल हो, महादैत्य सुग्रीव को दूत बनाकर देवी के पास भेजता है।
सुग्रीव देवी के समक्ष दैत्यराज शुम्भ का प्रस्ताव प्रस्तुत करता है। वह देवी के समक्ष घमंड से अपने स्वामी की प्रशंसा करते हुए कहता है कि,
“उसके स्वामी सम्पूर्ण देवताऒं को परास्त कर चुके हैं तथा वर्तमान में तीनों लोकों के परमेश्वर हैं। उनकी आज्ञा का कोई भी उल्लंघन नहीं कर सकता तथा सभी देवता एक स्वर से उनकी आज्ञा मानते हैं। त्रिलोकी उनके अधिकार में है साथ ही तीनों लोकों में जितने श्रेष्ठ रत्न हैं, वे सभी उनके अधिकार में हैं। देवराज इंद्र का वाहन ऐरावत, जो हाथियों में रत्नके समान है, क्षीर सागर का मंथन करने से जो अश्वरत्न उच्चैश्रवा प्रकट हुआ था, उसे देवताऒं ने मेरे स्वामी के पैरों पर पड़कर समर्पित किया है। सात ही जितने भी रत्नभूत पदार्थ, देवताऒं, गधर्वों तथा नागों के पास थे, वे सभी मेरे स्वामी के अधिकार में हैं।”
सुग्रीव घमंड पूर्वक आगे कहता है,
देवि! हमारे स्वामी तुम्हें संसार की स्त्रियों में रत्न मानते हैं। क्योंकि संसार के सभी रत्नों का उपभोग करनेवाले हमारे स्वामी ही हैं, अत:यह उनका आदेश है कि तुम हमारे स्वामी महापराक्रमी शुम्भ-निशुम्भ की दास बनना स्वीकार करो।”
दूत के इस प्रकार के वचन सुन कल्याणमयी जगतधारणी भगवती दुर्गादेवी मन-ही-मन गम्भीर भाव से मुस्कराती हैं तथा दूत को उत्तर देती हैं,
“हे दूत! तुम्हारे वचन सत्य हैं, इसमें तनिक भी मिथ्या नहीं है। शुम्भ तीनों लोकों का स्वामी है तथा
निशुम्भ भी उसी के समान पराक्रमी है किंतु इस विषयमें मैंने जो प्रतिज्ञा कर ली है, उससे कैसे पार पाऊं?”
दूत उत्सुक हो देवी भगवती से उनकी प्रतिज्ञा के बारे में जानने की इच्छा प्रकट करता है तब माँ भगवती कहती है,
“मेरी मात्र यही प्रतिज्ञा है कि जो भी मुझे युद्ध में पराजित करेगा,जो मे रे अभिमान को चूर पाए तथा संसार में जो मेरे समान बलवान होगा, वही मेरा स्वामी होगा। अतः आप अपने स्वामीजनो को यह सूचित करें कि यदि उन्हें मेरे सामीप्य की आवश्यकता है तो शुम्भ अथवा निशुम्भ स्वयं ही यहाँ पधारें तथा मुझे पराजित मेरा पाणिग्रहण कर लें।”
इस प्रकार उत्तर पा दूत सुग्रीव आश्चर्यचकित हो जाता है तथा क्रोधित हो कहता है,
“देवि! त्रिलोकों में कौन ऐसा पुरुष है,जो महाबलशाली, असुराज शुम्भ-निशुम्भ के समक्ष पल भी टिक सके। जिन दैत्यराज के समक्ष देवकुल भी युद्ध में विजयी नहीं हो सकता उनके समक्ष तुम स्त्रीमात्र हो युद्ध के बारे में कैसे विचार कर सकती हो? अतः मेरा यह सुझाव हैं कि तुम मेरे ही कहने मात्र से ही महादैत्य शुम्भ-निशुम्भ को अपना स्वामी मान लो और उन्हें युद्ध के लिए ना उकसाओ। ऐसा करने से तुम्हारे मान तथा गौरव की रक्षा होगी अन्यथा जब वे तुम्हारे केश पकड़कर घसीटेंगे, तुम्हारी समूची प्रतिष्ठा तथा गर्व का नाश हो जाएगा।

इस पर महा देवी क्या उत्तर देती हैं उसके लिए कल बांचना ना भूलियेगा।

सन्दर्भ-
https://www.symb-ol.org/app/download/11179828/Devi+Mahatmyam.pdf
an article by Anasuya Swain, Orissa Review.
https://www.louisianafolklife.org/LT/Articles_Essays/NavaratriStory.html
http://aranyadevi.com/aranyadevi/pdf/Durga_Saptashati.pdf
https://sanskritdocuments.org/doc_devii/durga700.html?lang=sa
https://lookoutandwonderland.com/shop/2020/3/30/nx26hcepfkuellv69balm6ebnigdzq
Puranic Encyclopedia: A Comprehensive Work with Special Reference

Devi Durga Mahatmya

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