संत ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी गीता के आरम्भ में गणेश प्रतिमा के गुणों का दार्शनिक वर्णन किया है, इसी वर्णन के आधार पर हमारे मन में निरंतर चलते द्वंद और दुविधाओं का निराकरण ढूंढने का प्रयास करती एक कथा।
शिव ने उद्दंड ब्रह्माजी को बोधपाठ पढ़ाने हेतु भैरव का आह्वान किया और विक्राल रुप धारण किए भैरव ने अपने नाखून से ब्रह्माजी का पांचवा अहंकारी मस्तक धड़ से अलग कर दिया।
इस कथा में शिव यम का अंत करते हैं। यहां यम एक पात्र मात्र नहीं हैं, यहां यम को काल के स्वरुप में प्रस्तुत किया गया है। काल का अंत होने का अर्थ है समय का अंत, समय का अंत मतलब जन्म, मृत्यु, जरा एवं व्याधि सब का अंत। सरल शब्दों में कहें तो शिव काल को समाप्त कर के अपने भक्तों के जन्म-मृत्यु का चक्र समाप्त कर देते हैं।
महात्मा गांधी से संबंधित हर स्मारक पर अक्सर पर्यटकों का तांता लगा रहता है और उसमें भी विदेश से आने वाले लोगों के लिए महात्मा सदैव ही आकर्षण का केन्द्र रहे हैं।
कैलाश पर्वत पर आह्लादक कर देने वाली ऋतु थी। अनन्त प्रतीक्षा के प्रतीक नंदी महाराज पर्वत की कंदराओं में विचरण कर रहे थे तभी बड़े धमाके से उस प्रदेश में कुछ आ गिरा। शान्त रमणीय स्थल पर अचानक हुए इस कोलाहल से आश्चर्यचकित नन्दी महाराज (नंदिकेश्वर) वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक बड़ा सा खेचरी यांत्रिक वाहन वहां पड़ा हुआ था और उसका चालक उसे वापस हवा में उड़ाने का निरर्थक प्रयास कर रहा था।
शैव सम्प्रदायों में लिङ्गार्चा का विशेष महत्त्व है। सामान्य जन के लिए स्वयम्भू लिङ्ग तथा ज्योतिर्लिंगों का दर्शन दुर्लभ है इसीलिए मानवसर्जित लिङ्गपूजा का प्रारम्भ हुआ। शिवालयों में स्थापित मानुष लिङ्गों के निर्माण, आकार तथा प्रतिष्ठा के भी विशेष विधान हैं।
शिव के सभी स्वरूपों में सबसे प्रचलित एवं प्रख्यात भी लिंग प्रतिमाएं ही हैं लेकिन जब हम लिंग प्रतिमाओं के विषय में ज्यादा गहराई से जानने का प्रयास करते हैं तब कुछ अद्भुत एवं रहस्यमय तथ्य हमारे सामने प्रस्तुत होते हैं।
महाभारत के इस महत्वपूर्ण उपदेश में हरिवंश से जुड़े कुछ प्रसंग देखते हैं। इनमें तीन लघुकथाएं हैं जो श्री कृष्ण, जरासंध, कालयवन, विश्वकर्मा और द्वारावती के बारे में हैं।
महाभारत का वर्णन कैसे आरंभ होता है? चलिए, शुरू से शुरू करते हैं – जनमेजय का सर्प-सत्र। इस सर्प यज्ञ का उद्देश्य तक्षक और उनके परिजनों का विनाश करना था। इस यज्ञ से संपूर्ण नागवंश के अस्तित्व का विनाश होने का भय था।
लेखक पौराणिक और ऐतिहासिक कथा संदर्भों के पार्श्व में सामयिक और दैनिक जीवन की समस्याओं का समाधान ढूँढने की कोशिश करती कहानियाँ लिखते हैं। उनके कुछ वृत्तांत उनकी अनवरत चलने वाली यात्राओं के भाग हैं। इसके अलावा उनकी रुचि लघुकथा, भारतीय मंदिर स्थापत्य और ललित कला से संबद्ध लेखन में भी है। उनकी शब्दावली में तत्सम शब्दों के अतिरिक्त गुजराती और मराठी का पुट भी होता है।लेखक पेशे से एक फ्रीलांस आइटी कंसलटेंट और डेटाबेस आर्किटेक्ट हैं।