श्री रामचंद्र, रघुकुल में दशरथ के पुत्र। सैंकड़ों वर्षों के संघर्ष के पश्चात भारत के आराध्य, आदर्श, मर्यादापुरुषोत्तम राम के मंदिर का अयोध्या में ५ अगस्त के शुभ दिन भूमिपूजन किया जायेगा और समाचार माध्यमों के अनुसार इस मंदिर में श्रीराम के साथ सीताजी, लक्ष्मणजी, मारुति, गणेशजी और भरत-शत्रुघ्न की प्रतिमाओं का भी स्थापन किया जायेगा।
(“यह लेख सर्वप्रथम प्रिय तृषार ने अपनी वेबसाइट भारत परिक्रमा पर 2 अगस्त 2020 को प्रकाशित किया था।”)
इस सुअवसर पर चलिए जानने का प्रयास करते हैं कि हमारे प्राचीन मंदिरों में राम-पंचायतन की प्रतिमाएं बनाने का शास्त्रोक्त विधान क्या है। भारतीय शिल्पशास्त्रों पर आधारित तालमान प्रमाण प्रतिमामानविज्ञान की पारम्परिक प्रणाली है। हिन्दू आगम ग्रन्थों और शिल्पशास्त्रों में देवी-देवताओं की मूर्तियों के विभिन्न अंगों/भागों के प्रमाणों का अत्यन्त विशद वर्णन मिलता है।
श्रीराम विष्णु के विविध अवतारों में से एक हैं। विष्णु अवतारों के तीन प्रभेद हैं, पूर्णावतार, आवेशावतार और अंशावतार। इनमें अंतर समझना एकदम आसान है, राम और कृष्ण पूर्णावतार हैं, परशुराम आवेशावतार हैं जिन्होंने रामावतार के पश्चात् अपनी शक्तियों का श्री राम में विलय किया और स्वयं महेंद्र पर्वत पर तपश्चर्यार्थ चले गए। कुछ ऋषि मुनियों को शंख, चक्र और श्रीवत्स जैसे विष्णु के अंशों का अवतार मन गया है। विष्णु के इन सभी अवतारों में ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति एवं विकास का रहस्य छिपा हुआ है। पूर्णावतार भगवान राम के प्रतिमा-समूह में श्री राम और सीताजी को लक्ष्मण, मारुति, भरत तथा शत्रुघ्न सहित दिखाया जाता है।
श्रीराम और सीताजी
मध्यम दस ताल श्रीराम प्रतिमा १२० अंगुल ऊँची बनायीं जाती है। राम विष्णु का मानव अवतार हैं इसलिए राम की प्रतिमा हमेशा द्विभुज होनी चाहिए, वैदिक देवताओं की भांति बहुभुज नहीं। त्रिभंग या अभंग मुद्रा में एक हाथ में धनुष और दूसरे हाथ में बाण लिए राम की श्यामवर्णी मूर्ति को लाल या गुलाबी वस्त्रों से सुशोभित करने का विधान है। त्रिभंग मुद्रा में प्रतिमा घुटनों, कमर और गर्दन के हिस्सों से बल खायी होती है और इसी वजह से त्रिभंग प्रतिमाएं आकर्षक लगती हैं। अभंग मुद्रा में प्रतिमा का कमर का हिस्सा थोड़ा सा बल खाया होने के कारण एक पैर आगे की ओर बढ़ा होता है।
श्रीरामजी के दक्षिण (दाहिने) भाग में नवार्ध (९-१/२) ताल मान में माता सीता की प्रतिमा स्थापित की जाती है। स्वर्णिम वर्ण की सीता प्रतिमा को हरित वस्त्रों से अलंकृत किया जाता है। सीता के दाएं हाथ में नीलोत्पल का पुष्प होता यही और उन्होंने करण्ड मुकुट धारण किया होता है। अमूमन देवी प्रतिमाओं को टोकरी जैसे आकर वाले करण्ड मुकुट से सुशोभित किया जाता है। इस मुकुट के निचले हिस्से में रत्न जड़े होते हैं। किरीट मुकुट की तुलना में यह मुकुट छोटा होता है।
एक अलिखित नियम के अनुसार जब राम सीताजी के साथ होते हैं तब उन्हें प्रसन्न मुद्रा में ही दिखाया जाना चाहिए।
लक्ष्मण एवं हनुमानजी
राम के वाम हस्त पर लक्ष्मण की दस ताल मान और ११६ अंगुल ऊँची प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस अंगुल प्रमाण को समझना इतना कठिन नहीं है। सीताजी की प्रतिमा राम के कंधे तक ऊँची होती है तो लक्ष्मण जी की प्रतिमा राम के कानों तक ऊँची होती है। पीतवर्णी लक्ष्मण प्रतिमा को श्याम वस्त्रों से विभूषित किया जाता है। लक्ष्मण जी को बलराम की ही तरह शेषावतार कहा गया है और रसप्रद बात यह भी है कि रामावतार में शेष छोटे भाई थे तो कृष्णावतार में वो विष्णु के बड़े भाई थे।
राम, सीताजी और लक्ष्मण की प्रतिमाएं समान्तर रेखा में होती हैं और उनसे थोड़े आगे रामभक्त हनुमान की सप्त ताल मान ८४ अंगुल ऊँची प्रतिमा होती है। मारुति प्रतिमा को रामजी के वक्ष भाग से ऊँचा नहीं बनाया जाना चाहिए। हनुमान प्रतिमा को दास्य भाव में दो हाथ जोड़े नमस्कार मुद्रा में दिखाया जाता है। कुछेक प्रतिमाओं में हनुमानजी एक हाथ अपने चेहरे के निकट रखे भी दिखाए गए हैं। मारुति प्रतिमा को भी करण्ड मुकुट पहनाया जाता है।
शत्रुघ्न और भरत
विष्णुधर्मोत्तर पुराण जैसे कुछ ग्रंथों में भरत और शत्रुघ्न की प्रतिमाओं के नियम भी लिखे गए हैं। श्याम वर्णी और लाल वस्त्रों में सज्ज भरत प्रतिमा को ढाल और तलवार के साथ दिखाया जाता है लेकिन कुछ प्रतिमाओं में भरत को धनुष और बाण धारण किये भी बताया जाता है। भरतजी की कुछ विशिष्ट प्रतिमाओं में वो मस्तक पर रामजी की पादुकाओं को धारण किये भक्त स्वरुप में दिखाए जाते हैं।
शत्रुघ्न की प्रतिमा के लक्षण लक्ष्मण प्रतिमा से भिन्न नहीं है। रसप्रद बात यह है की भरत और शत्रुघ्न की प्रतिमाओं की पहचान स्वरुप उनके मुकुट पर शंख और चक्र उकेरे जाते हैं। इसका रहस्य यह है की राम विष्णु के अवतार हैं लक्ष्मण आदिशेष के अवतार है यह तो सभी को ज्ञात है लेकिन ज्यादातर लोगों इस बात से अज्ञात होंगे कि भरत शंख और शत्रुघ्न चक्र के अवतार हैं।
जय श्री राम
“विशेष आभार: तृषार के सभी मित्रों और पाठकों का यही मानना है कि अगर तृषार पुनः लिख सकते तो इस समय हम सभी को अपनी लेखनी से चमत्कृत कर रहे होते। उनके पास हम सब सभी के लिए बहुत कुछ था। वर्तमान में चल रही कई दुविधाओं का भी तर्कसंगत समाधान वो दे सकते थे। उन्हीं को स्मरण करते हुए उन्हीं का यह लेख जो उन्होंने मूर्ति विधान पर लिखा था, पुनः प्रस्तुत किया जा रहा है।” भारत परिक्रमा पर प्रकाशित इस लेख में तकनीकी कारणों से कुछ छवियां दृश्यमान नहीं थी। हम अपने साथी लेखक प्रदीप जी का भी धन्यवाद व्यक्त करना चाहेंगे जिन्होंने अपना मूल्यवान समय निकाल कर उन छवियों को दोबारा इस लेख में जोड़ा है।
Image Credit: Elements of Hindu Iconography, T.A. Gopinatha Rao
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