स्वस्थवृत्त- स्वस्थ रहने का एक उत्कृष्ट विचार भाग II

आयुर्वेद रोग निवारण का नहीं, जीवन स्वस्थ रखने का विज्ञान है। चार पुरुषार्थ से सृष्टि का अस्तित्व है – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ! इनमें एक पुरुषार्थ – मोक्ष साध्य है तथा अन्य तीन अर्थात धर्म, अर्थ तथा काम इस चौथे पुरुषार्थ मोक्ष का साधन हैं। इन तीन पुरुषार्थों का साधन है आरोग्य ! तथा इस आरोग्य की प्राप्ति का साधन है ‘स्वस्थवृत्त’! ये स्वस्थवृत्त की संक्षिप्त व्याख्या है।

स्वस्थवृत्त- स्वस्थ रहने का एक उत्कृष्ट विचार भाग 1

इस शोधपत्र ‘स्वस्थवृत्त- स्वस्थ रहने का एक उत्कृष्ट विचार’ के माध्यम से इसी स्वस्थवृत्त को जानने तथा समझने के लिए विवेचना की गयी है।

वैदिक शिक्षा – भाग १: गुरुकुल के प्रकार

जहाँ गुरु के सानिध्य व सामीप्य में समन्वयात्मक ज्ञान मिले उस तपस्थली को आदर्श गुरुकुलम् कहा जाता है। ऐसे आदर्श व पूर्ण गुरुकुल ही समाज की सभी व्यवस्थाओं के लिए ऐसे उच्च सज्जनों का निर्माण करता है जिनसे सारा विश्व सीखता है।

सुता चली ससुराल! – भाग ४

परिवार, पीढ़ी और अंततः संस्कृति सहज और सुचारू रूप से कैसे चले? “सुता चली ससुराल” के अंतिम भाग में में चर्चा कर रही हैं

विवाह

सुता चली ससुराल! – भाग ३

स्त्री के अनेकों नाम में से ‘योषा’ और ‘मानिनी’ के क्या मायने हैं?  “सुता चली ससुराल” में चर्चा कर रही हैं अंशु दुबे

भारतीय विवाह

सुता चली ससुराल! – भाग १

विवाह करके लड़कियों को ही पति के घर क्यों जाना होता है ? “सुता चली ससुराल” लेखमाला के प्रथम भाग में इसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रही हैं अंशु दुबे।

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गर्भविज्ञान परिचय

सभी विज्ञानों का मूल विज्ञान – जिस पर पूरी मानव जाति का विकास आधारित है – वह गर्भविज्ञान है। व्यक्ति की योग्यता (potential) के सबसे अधिक विकास का काल गर्भकाल है। भारतीय ऋषियों ने गर्भ विज्ञान में बहुत चिरंतन सत्यों की प्राप्ति करी है।

आयुर्वेद की कथा – चतुर्थ भाग – वाग्भट्ट

वाग्भट्ट की गरिमा कलियुग के प्रमुख वैद्य के रूप में प्रदर्शित है। क्योंकि उन्होंने कलियुग में आहार-विहार के नियम-सिद्धांतों का पालन न करने के कारण होने वाले रोगों व उनके निदान पर मुख्य कार्य किया है।

आयुर्वेद की कथा – तृतीय भाग – सुश्रुत संहिता

सबसे पहले शल्य (सर्जरी) की बात महर्षि सुश्रुत ने करी थी। वेदों में जो जो विभाग हैं, उन्हें लेकर सुश्रुत ने एक परंपरा चलाई, जो सुश्रुत संहिता नाम से ग्रथित हुई।

आयुर्वेद की कथा – द्वितीय भाग – चरक संहिता

आयुर्वेद को जानने के लिए वृद्ध-त्रयी का अभ्यास अनिवार्य है – चरक संहिता, सुश्रुत संहिता तथा अष्टांग हृदयम्। इस भाग में जानिए चरक संहिता के बारे में।