महाभारत का युद्ध समाप्त हो जाने के बाद भी पितामह भीष्म की मृत्यु नहीं हुई थी। अपने इच्छा मृत्यु के वरदान का उपयोग उन्होंने सूर्य के उत्तरायण में जाने तक ठहरने के लिए किया। युद्ध के उपरांत के इस काल में पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को राजनीति सहित कई विषयों पर बहुत कुछ सिखाया था और उनकी ये चर्चाएँ महाभारत के शांति पर्व एवं अनुशासन पर्व का हिस्सा हैं। इसी हिस्से में पितामह भीष्म दुखों के उत्पन्न होने, उनके कारणों के बारे में भी युधिष्ठिर को बताते हैं। उन्होंने दुखों के चौदह मुख्य कारण बताये हैं
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महाभारत के शिक्षाप्रद हिस्सों की बात करें तो दुःख और उनके कारण वाला ये हिस्सा भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
- दुःख का एक कारण घर (परिवार और स्वजनों) से दूर रहना हो सकता है।
- दुःख का दूसरा कारण मित्रों-सम्बन्धियों द्वारा त्याग दिया जाना हो सकता है।
- तीसरा कारण अच्छा करने पर भी प्रत्युत्तर में वैसा ही बर्ताव न मिलना या दुत्कारा जाना हो सकता है।
- चौथा कारण धनिक, समाज में सम्मानित व्यक्ति जो मानवीय गुणों में उतने अच्छे नहीं हैं, उनके द्वारा उचित सम्मान न दिया जाना होता है।
- पाँचवा कारण, शिक्षित, योग्य, या समर्थ होने पर भी जब सफलता या पारितोषिक उस हिसाब से न मिलें, तब दुःख होता है।
- छठा दुःख का कारण है जीविकोपार्जन के लिए उचित कौशल का न होना।
- सातवां कारण है आपकी अच्छाइयों, भले व्यवहार को कमजोरी समझकर, आपका फायदा उठाया जाना।
- जब किसी जानकार-ज्ञानी अथवा अधिक योग्य को कम योग्य लोग नीचा दिखाते हैं, तो भी दुःख होता है, और ये आठवां कारण है।
- नौवां कारण है किसी शत्रु का मित्र की भांति व्यवहार करके विश्वास जीतना और फिर छल करना।
- दसवां कारण है अपने बराबर के लोगों, सामान ज्ञान वाले लोगों, या तथाकथित विद्वानों के बराबर जानकारी-विद्या होने पर भी उनके द्वारा सम्मान न दिया जाना।
- ग्यारहवां है धन अथवा अन्य स्रोतों, बुद्धि-कौशल न होने पर भी ऊँचे लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास और फिर असफल होने पर दुःख होना।
- बारहवां पारिवारिक मसलों से जुड़ा है जिसमें पुत्रों-दामादों द्वारा सम्मान न दिया जाना, परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा व्यक्ति के निर्णयों को गलत बताना दुःख का कारण होता है।
- तेरहवां दुःख का कारण अपने संचित धन या किसी आपदा-वृद्धावस्था के लिए जुटाई संपत्ति का चोरी होना, खोना या लूट लिया जाना है।
- चौदहवां कारण जो यहाँ बताया गया है, वो है किसी प्रिय जन का रूठ जाना।
डॉ प्रदीप आप्टे ने भंडारकर ओरिएण्टल इंस्टिट्यूट के लिए एक पाठ्यक्रम में इनकी चर्चा की थी।
(https://www.organiser.org/education/14-reasons-for-sadness-according-to-mahabharata-5961.html)
महाभारत के इस हिस्से में केवल सिद्धांत दिए हुए हैं। कई बार ऐसा होता है कि रूखे-सूखे सिद्धांत बता देने भर से बात पूरी तरह समझ में नहीं आती। संभवतः ये भी एक कारण रहा होगा, जिसकी वजह से महाभारत की रचना कथा के रूप में हुई और बाद में कई अलग-अलग पुराणों में कथाओं के माध्यम से वेदों-उपनिषदों आदि में आये सिद्धांतों को कथा के माध्यम से प्रसारित किया गया।
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