हम आज जिसे हिंदी कह रहे हैं वो तोड़-मरोड़ कर बनाई हुई ,सहज रूप में बोलने वाली एक नयी भाषा है जिसे आज की पीढ़ी “नयी हिंदी” कहती है। आज अगर देखा जाए तो राजभाषा हिंदी की तीन मुख्य शैलियाँ चलन में हैं। पहली बोलचाल वाली हिंदी, दूसरी लेखकों की हिंदी, और अंत में परिष्कृत, शुद्ध और तत्सम भाव वाली हिंदी।
आप अगर पुरोधाओं की सुनेंगे तो वो एक पल में इस “नयी वाली हिंदी” को कूड़ा करार देते हुए खारिज कर देंगे। उनका मानना है भाषा निर्बाध होनी चाहिए किन्तु शुद्ध भाषा के होने से ही आप को विद्वान का दर्जा मिलेगा। आप उनको ये दलील देते हुए भी सुन सकते हैं कि हिंदी जैसी समृद्ध भाषा में किसी और भाषा के शब्दों का अतिक्रमण अनुचित है और ये “तथाकथित लेखकों” के भाषा ज्ञान की सीमाओं को दर्शाता है। अपनी बात को और भी पुरजोर रखते हुए वो इसमें वामपंथ के हस्तक्षेप के बार में भी कहते हैं। उनका कहना है कि “हिंदी-उर्दू बहनें हैं” जैसे कथन निम्न स्तर लेखकों और शायरों द्वारा फैलाये गए हैं। उनका ये भी मानना है कि तद्भव भाषा का उपयोग करने से हिन्दी के कुछ क्लिष्ट एवं कठिन शब्द विलुप्त होते जाएँगे।
हिंदी दिवस की अवसर पर श्री मनीष श्रीवास्तव और श्री साकेत सूर्येश दोनों हिंदी साहित्य और राजनीति पर भाष्य करने वाले उभरते लेखक की बातचीत सुनिए।
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