भारतीय ग्रंथों तथा पुराणों में देवी दुर्गा का वर्णन – भाग ४

शुम्भ तथा निशुम्भ से तिरस्कृत देवतागण अपराजिता देवी का स्मरण कर माँ जगदम्बा की शरण में जाते है तथा भगवती विष्णु माया की स्तुति में लीन हो जाते हैं। स्तुति से प्रसन्न हो, देवी पार्वती की कोशिकाओं से कौशिकी प्रकट हो देवगणों को दर्शन देती हैं।

भारतीय ग्रंथों तथा पुराणों में देवी दुर्गा का वर्णन – भाग ३

पिछले अंक में हमने आपको महाकाली की कथा से अवगत कराया था। इस अंक में हम आपको महिषासुरमर्दिनी देवी की कथा, के बारे में बताने वाले हैं।

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भारतीय ग्रंथों तथा पुराणों में देवी दुर्गा का वर्णन – भाग २

पहले अंक में हम चर्चा कर रहे थे देवी महामाया की, जिनका वर्णन चंडी पाठ, रामायण तथा महाभारत जैसी रचनाओं में पौराणिक काल से चला आ रहा है। पहला तथा सबसे प्रभावशाली वर्णन दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ में किया गया है। जिनकी कथा इस बार हम आपके सामने प्रस्तुत करने वाले हैं।

भारतीय ग्रंथों तथा पुराणों में देवी दुर्गा का वर्णन – भाग १

प्राचीन ऋषि जिनके लिए माना जाता है, ध्यान के माध्यम से वह हमारे ब्रह्मांड की प्राकृतिक ऊर्जा को आत्मसात करने में सक्षम थे। वह भी उषा, इला तथा सरस्वती आदि दिव्य मातृ शक्तियों की बात करते हैं। आगे चलकर पुराणों में, जिनमें ब्रह्मांड के निर्माण, विनाश, देवताओं की वंशावली आदि दृष्टांत शामिल हैं, यही दिव्य मातृ शक्ति, अमंगलीय शक्तियों पर मंगलकारी शक्तियों की विजय तथा दुष्टों का विनाश करने वाली एक शक्ति बन गईं।

शिव नारायण प्रेम कथा

जन्माष्टमी के संदर्भ में: योगीश्वर महादेव और योगेश्वर श्रीकृष्ण के बीच के अद्भुत प्रेम पर एक अनोखा उपाख्यान, पद्म पुराण से

श्री कृष्णा से रणछोड़ तक

विकिपीडिया तथा कई वेब समाचार एजेंसियां यह कहती हैं  “श्रीकृष्ण से कंस वध का प्रतिशोध लेने के लिए जरासंध ने कई बार मथुरा पर चढ़ाई की जिसके कारण भगवान श्रीकृष्ण को “मथुरा छोड़ कर भागना पड़ा” फिर वह द्वारिका जा बसे, तभी उनका नाम “रणछोड़” कहलाया।

महाराज पांडु

महाराज पांडु : कथा एक अभिशप्त जीवन की

महाभारत की अनेक कथाओं में से महाराजा पांडु की कथा, जहाँ उनको एक महर्षि द्वारा एक श्राप दिया जाता है, काफी प्रसिद्ध हैं। इस श्राप को महाभारत का एक महत्वपूर्ण केंद्रबिंदु समझा जाता है। इस श्राप के कारण ही महाराजा पांडु की मृत्यु हो जाती है तथा महाभारत कुरु राजकुमारों के बीच संघर्ष में डूब जाता है। तथापि इस प्रकरण में छिपे परिप्रेक्ष्य के बारे जनमानस को भलीभांति ज्ञात नहीं है।

महाभारत – पृष्ठभूमि तथा परिपेक्ष्य

महाभारत में श्री गणेश जी की भूमिका अत्यधिक प्रसिद्ध है। इसके रचयिता श्री व्यास जी एवं लिपिकार श्री गणेश द्वारा की गयी चर्चा महाभारत के सबसे प्रसिद्ध अध्यायों में से…