युवा लेखक व स्तंभकार शिवेश प्रताप जी की यह पुस्तक संस्कृत वांग्मय के समृद्धशाली साहित्य से परिचय करवाती है। करीब 37 पाठ में अलग अलग विषयों पर यह संग्रहणीय पुस्तक लिखी गई है। जीवन से जुड़ी कठिनाइयों के लिए संस्कृत साहित्य में उपलब्ध मोतियों को चुन-चुनकर यहां इस पुस्तक में जीवन प्रबंधन के लिए पाठकों के लिए लाया गया है।
इस पुस्तक में अभय, ईश्वर, उद्यम, एकता, कर्म, काल, गुरु महिमा, चरित्र पूजन, ज्ञान, दया, धर्म, प्रेम, परोपकार, संतोष, मन, मित्रता आदि विषयों के गहरे अर्थ संस्कृत साहित्य के माध्यम से समझाये गए हैं। लेखक ने हर पाठ के शुरुआत में सुंदर व सरल व्याख्या की व आगे श्लोकों के माध्यम से उस विषय पर व्यवहारिक प्रकाश डाला है। उदाहरण के लिए एकता का महत्व बताते हुए यहां पारिवारिक एकता का महत्व बताने के लिए एकता पाठ के अंतिम श्लोक को पढ़ा जा सकता है;-
संहतिः श्रेयसी पुंसां स्वकुलैरल्पकैरपि ।
तुषेणापि परित्यक्ता न प्ररोहन्ति तण्डुलाः ।।
इसी तरह से कर्म पर मानस में तुलसीदास जी के माध्यम लेखक ने कर्म का महत्व बताया है, ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहि सो तस फल चाखा।’
इस पुस्तक में लेखक के द्वारा संस्कृत व भारतीय मानस के विशाल साहित्य से उच्च कोटि के मोतियों रूपी श्लोकों को चुन चुनकर इस पुस्तक को जीवन प्रबंध के लिए श्रेष्ठ कार्य किया गया है। कहीं से भी इस पुस्तक को पढ़ा जा सकता है। हर वाक्य व श्लोक मानवीय जीवन व संघर्ष के लिए प्रेरणादायक है। सामान्य पाठक व युवाओं को इस पुस्तक को जरूर पढ़ना चाहिए व वह जब भी जीवन के संघर्षों से घीरे तो यह पुस्तक उसके लिए मददगार हो सकती है। एक संग्रहणीय पुस्तक की रचना लेखक ने की है। संस्कृत साहित्य से इतने श्लोक चुनने व उन्हें अर्थ सहित विभिन्न पाठों में सम्मिलित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसे शिवेश जी ने बहुत कम आयु में पूर्ण किया है। जिससे उनकी लेखकीय क्षमता व जीवन प्रबंधन की स्पष्ट झलक दिखती हैं।
जैसा कि पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर ही पुस्तक के विषय में लिखा है कि ‛जीवन आधारित वैचारिक लेखों व संस्कृत श्लोकों द्वारा सम्यक चिंतन व उत्कृष्ट जीवन जीने की प्रेरणा देती एक बेहतरीन तथा संग्रहणीय पुस्तक’ में को अतिश्योक्ति नहीं है। यह हर युवा के लिए श्रेष्ठ पुस्तक है। आज की युवा पीढ़ी को इस पुस्तक का स्वागत करना चाहिए व पढ़ना चाहिए। आज के विश्वविद्यालयों में इस तरह की पुस्तके अधिक से अधिक मात्रा में होना चाहिए।
इस पुस्तक में लेखक संस्कृत भाषा व साहित्य का भी महत्व बता रहे है और वर्तमान जीवन के लिए उसकी उपयोगिता भी। व्यक्तित्व निर्माण के लिए आजकल कस्बों व शहरों में बड़ी बड़ी कोचिंग चल रही है और उनमें मोटी मोटी फीस ली जाती है। यहां इस पुस्तक में आप पाठ 31 में इस विषय पर गहराई से व सरलता से व्यक्तित्व निर्माण पर पढ़ सकते हैं। लेखक ने बताया है कि हमारे यहां संस्कृत भाषा में इस विषय पर हजारों वर्षों पहले बहुत कुछ लिखा जा चुका है। बस इस समृद्धशाली संस्कृत साहित्य को वर्तमान युवा पीढ़ी के बीच लाना है। किसी पश्चिमी विचारधारा वाले कोचिंग संस्थान की ओर देखने की जरूरत नहीं है।
ऐसे ही रोचक व प्रेरणादायक विचार, लेख, श्लोक आदि से परिपूर्ण यह पुस्तक हर लेखक व जिज्ञासु पाठक को पढ़ना चाहिए। यह पुस्तक उपहार स्वरूप देने के लिए भी महत्वपूर्ण उदाहरण है। बाकी आप जब इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो ओर भी महत्वपूर्ण व प्रेरणादायक बातें यहां पाऐंगे। व्यक्तित्व निर्माण व जीवन प्रबंधन के लिए यह पुस्तक उच्च कोटि के मानकों पर खरा उतरती है।
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