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श्रीराम को किसी भी जाति तक सीमित ना करें

जिस भारतीय समाज व संस्कृति में जन्म में राम, मरण में राम, वाह में राम, आह में राम, उत्साह में राम, स्याह में राम बोला जाता है उसी समाज में श्रीराम को किसी एक जाति या वर्ग तक सीमित करने का प्रयास करना, निदंनीय है। राम का चरित्र मानव समाज के लिए प्रेरणादायक है। राम संपूर्ण मानव समाज के लिए आदर्श पुरूष है, ना की सिर्फ़ एक तथाकथित जाति या फिर वर्ण तक ही उनका चरित्र सीमित है। उनके नाम पर कोई एक जाति या वर्ग किसी तरह का दिखावी जुलूस निकाले व उनपर एकाधिकार स्थापित करने की कोशिश करें ! इस तरह के आयोजन राम नाम के चरित्र को छोटा करने का प्रयास ही कहा जाऐगा।

भारत में श्रीराम अत्यन्त पूजनीय हैं और आदर्श पुरुष हैं तथा विश्व के कई देशों में भी श्रीराम आदर्श के रूप में पूजे जाते हैं जैसे नेपाल, थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया आदि । इन्हें पुरुषोत्तम शब्द से भी अलंकृत किया जाता है। रामरघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा “रघुकुल रीति सदा चलि आई प्राण जाई पर बचन न जाई” की थी। रामायण व अन्य प्रमाणिक ग्रंथों के अनुसार राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया, इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं।

प्रभु श्रीराम की गलत छवि प्रस्तुत करने व उन्हें किसी जाति या वर्ग तक सीमित करने का उद्देश्य हिन्दुओं को विभाजित कर राजनीति करना हो सकता है। राम को सिर्फ एक राजा मानना या उन्हें एक काल्पनिक पात्र मानना निश्चित ही यह दर्शाता है कि ऐसे लोगों का कोई खास उद्देश्य है या कि वे पूर्णत: अनभिज्ञ है या कि वे वही बातें मान रहे हैं जो कि गुलामी के काल में उन्हें बताई गई थी।
दरअसल, भगवान राम के संबंध में जो आलोचना करते हैं चाहे वे किसी भी पंथ या विचारधारा के हों, उन्होंने यदि सिर्फ़ वाल्मीकि रामायण व रामचरितमानस ही पढ़ी होती और कश्मीर से कन्याकुमारी तक भ्रमण किया होता, इस दौरान राम के लिए लोकमानस में उनके प्रति आस्था व प्रेम अनुभव किया होता तो निश्‍चित ही उनके मन से यह भ्रम और विरोधाभास निकल जाता कि श्रीराम किसी एक वर्ग या किसी अगड़ी-पीछड़ी जाति तक ही सीमित नहीं है। वह तो भारतीय संस्कृति व लोकमानस के रग रग में विराजमान है। लेकिन फिर भी कुछ नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए रामचरितमानस जैसे महान ग्रंथ के विषय में गलत टिप्पणी करते हैं।

श्रीराम के काल में कोई ऊंचा या नीचा नहीं होता था। भगवान किसी जातिवर्ग के नहीं होते और न ही वे मनुष्य जाति में भेद करते हैं। रामायण काल में जातिगत जो भिन्नता थी वह मनुष्यों के रंग, रूप और आकार को लेकर हो सकती हो। जैसे वानर, ऋक्ष, रक्ष और किरात जातियां मनुष्य से भिन्न थी। केवट, शबरी, जटायु, सुग्रीव और संपाति आदि से राम के संबंध दर्शाते हैं कि उस काल में ऐसी कोई जातिगत भावना नहीं थी, जो आज हमें देखने को मिलती है। हनुमानजी के गुरु मतंग ऋषि आज की जातिगत व्यवस्था अनुसार तो दलित ही कहलाएंगे ? लेकिन वर्तमान में राम के नाम पर जातिगत भेदभाव करना व भारतीय समाज में वैमनस्य फैलाना घोर निंदनीय है। राम के नाम पर राजनीति करना व उन्हें किसी भी जाति से जोड़ना नेताओं व राजनीतिक स्वार्थी तत्वों की आदत बन गई है। जनमानस इसे समझता है।

श्रीराम ने 14 वर्ष वन में रहकर भारतभर में भ्रमण कर भारतीय आदिवासी, जनजाति, पहाड़ी और समुद्री लोगों के बीच सत्य, प्रेम, मर्यादा और सेवा का संदेश फैलाया। यही कारण रहा कि श्रीराम का जब रावण से युद्ध हुआ, तो सभी तरह की वनवासी और आदिवासी जातियों ने श्रीराम का साथ दिया। लेकिन हमारा वर्तमान समाज व राजनीतिज्ञ दिनोंदिन श्रीराम के नाम पर अनर्गल प्रलाप करके भारतीय समाज को बाटने की कोशिश करते रहते हैं और वह यह इसलिए करते हैं कि उनकी अपनी-अपनी राजनीतिक दुकानें चलती रहे..!

श्री राम का दयालु एवं निष्पक्ष व्यक्तित्व सर्व विदित है, साथ ही उनके राम-राज्य की परिकल्पना में भी मानव जीवन के ये भाव आत्मसात है। विभिन्न रामायणों एवं लोक कथाओं में हमें प्रजा के प्रति श्रीराम के सहज-सरल एवं मानवीय मनोभावों के दर्शन होते हैं, जो हमारे आज के संविधान के मूल्यों के सदृश्य हैं। इसलिए ही भारतीय संविधान के भाग-3 के पहले पृष्ठ पर श्रीराम, सीता व लक्ष्मण जी का सुंदर चित्र अंकित है। श्रीराम की इसी महिमा पर गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है;-

राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर॥

श्रीराम ने उस समय जातिगत भेदभाव किये बिना, अपने से अवर जाति के निषादराज से मित्रता की। उन्हें वही सम्मान दिया जो उनके बाकी राज मित्रों को मिला। रंगभेद या नस्ल भेद को अस्वीकार करते हुए रघुनन्दन ने एक भीलनी शबरी माता के झूठे बेर स्वीकारे। एक राजा के रूप में वह अपने अधीन प्रजा को सामान रूप से देखते हुए उनके अधिकारों के संरक्षक थे। रामराज्य में किसी तरह की जातिगत राजनीति नहीं थी और ना ही जातिगत भेदभाव। श्रीराम का चरित्र संपूर्ण मानव कल्याण व पुरूष से पुरुषोत्तम बनने के लिए आदर्श मार्ग है। उनका व्यक्तित्व व कर्म सदैव जाति, वर्ण, रंगभेद, क्षेत्रवाद आदि भेदभावों से बहुत ऊपर है।

संदर्भ

1. https://m-hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-history/india-tribal-and-dalit-118060100092_1.html?amp=1

2. https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE

3. रामचरितमानस, गोस्वामी तुलसीदास

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