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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनछुए पक्ष भाग-१

भारतीय इतिहास की तरह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी अपने प्राणों की आहूति देने वाले ऐसे अनगिनत महानायक हैं, जिनके विषय में लोगों को कोई जानकारी नहीं है। कुछ नाम तो इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित किए गए हैं, परंतु अधिकांश नाम ऐसे हैं जो इतिहास में कहीं खो गए हैं। हमारे पाठ्यपुष्तक में भी उन्हें कोई स्थान नहीं मिला है, न हीं उनमें से कई लोगों का कोई लिखित साक्ष्य ही उपलब्ध है। हमारे इतिहास में ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें उनका उचित स्थान नहीं मिला है। इन महानायकों में से कुछ नाम तो ऐसे हैं, जिनका त्याग एवं बलिदान राष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम में आगे पड़ने वाले प्रभाव पर बहुत महत्व रखता है एवं ये नाम शायद कई ऐसे नामों से अधिक महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान हैं, जिन्हें हमारे देश के इतिहास में महत्व एवं स्थान दिया गया है। उनकी जीवनशैली एवं सोच भी शायद ऐसी ही रही होगी की उन्होंने निःस्वार्थ भाव से राष्ट्र को अपनी सेवा प्रदान की तथा उन्हें कभी इस बात की चिंता नहीं रही की उनके जाने के बाद उन्हें कैसे याद किया जाएगा। द्रौपदी के स्वयंवर में जिस प्रकार अर्जुन का लक्ष्य घूमती हुई मछली की आँख थी, उसी प्रकार इन अकीर्तित महानायकों का एकमात्र लक्ष्य राष्ट्र की स्वतंत्रता ही थी। अगर हम इन महानायकों के विषय में जानें, तो हमें यह भी ज्ञात होता है की इनके मन में स्वतंत्र भारत का यह स्वप्न बचपन में ही जाग उठा था। सामाजिक परिवेश इसका एक मुख्य कारण था, जिसनें इनके मन में स्वतंत्र भारत का लक्ष्य पूर्ण करने हेतु एक भावना जगाई। इन अकीर्तित महानायकों में से कई ऐसे महानायक हैं जिनका आपनें नाम तक नहीं सुना होगा, और कई ऐसे महानायक हैं जिनका आपने नाम तो सुना होगा, परन्तु उनके बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं होगी। कुछ ऐसे महानायक भी हैं, जिन्हें उनके क्षेत्र एवं राज्य के लोग तो जानते हैं, परंतु सम्पूर्ण भारत नहीं जानता।

भारत के स्वाधीनता संग्राम में झारखंड के अनेकों लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में भाग लिया एवं स्वतंत्रता संग्राम में अपना सहयोग दिया। अनेकों आदिवासियों ने समाज और देश की आन, बान और शान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें मुख्यतः बिरसा मुंडा, दो भाई सिदो मुर्मू, कान्हू मुर्मू , रघुनाथ महतो, तिलका माँझी, नीलाम्बर सिंह, पीताम्बर सिंह, तेलंगा खड़िया इत्यादि का नाम आता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के एक ऐसे हीं अकीर्तित महानायक हैं प्रसिद्ध क्रांतिकारी वीर शहीद बुधु भगत। देशवासियों द्वारा 1857 को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में याद किया जाता है। लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं की बुधु भगत जी ने जनजातियों को बचाने के लिए शुरू किए गए लरका आंदोलन और कोल विद्रोह की अगुआई इससे कई वर्ष पूर्व की थी। जिस प्रकार 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन को अंग्रेज़ों द्वारा सिपाही विद्रोह की संज्ञा दी गई, उसी प्रकार वीर शहीद बुधू भगत के द्वारा किए गए आंदोलन को अंग्रेज़ों ने कोल विद्रोह की संज्ञा दी। परंतु यह कोई विद्रोह नहीं अपितु अंग्रज़ों के अत्याचार के विरुद्ध आदिवासी जनजातियों का अपने ज़मीन, पहाड़, अन्न, जल एवं स्वाभिमान की रक्षा हेतु एक स्वतंत्रता आंदोलन था। बुधु भगत नें अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए 1832 ई. में लरका विद्रोह नामक ऐतिहासिक आन्दोलन का सूत्रपात्र एवं नेतृत्व किया था। बुधु भगत 1857 की क्रांति से पहले 1828 से 1832 तक अंग्रेजों से सीधी लड़ाई लड़ते रहे थे। बुधु भगत के नेतृत्व में हो रहे लरका आंदोलन ने अंग्रेजों को उस वक़्त परेशान कर दिया था। छोटानागपुर को अंग्रेज़ों के दमन से मुक्त करने हेतु बुधु भगत ने यहां के जनजातियों को साथ मिलाकर इस आंदोलन का आरंभ किया था। इस आंदोलन में उरांव जनजाति के साथ मुंडा, हो इत्यादि कई अन्य जनजातियों ने भी हिस्सा लिया था।

वीर बुधु भगत जी का जन्म 17 फरवरी 1792 को झारखंड के रांची जिला के चान्हो प्रखंड के सिलागाई गांव में एक उरांव किसान परिवार के घर में हुआ था। यह गांव कोयल नदी के तट पर स्थित है। बुधु भगत एक कुशल संगठनकर्ता थे। वीर बुधु भगत तीर चलाने में खासे दक्ष थे एवं इनकी क्षमता को देखकर लोगों ने इनमें नेतृत्व को समझा। उनमें अलौकिक शक्ति थी एवं वो एक कुशल योद्धा थे। वे हमेशा अपने साथ एक कुल्हाड़ी रखते थे। बुधु भगत ने उस वक़्त अंग्रेजों के दलालों, जमींदारों एवं साहूकारों के विरुद्ध आदिवासियों की भूमि एवं वन की सुरक्षा के लिए जंग छेड़ी थी। आंदोलन में भारी संख्या में अंग्रेजी सेना को क्षति हुई थी एवं साथ साथ आंदोलनकारियों ने भी अपने प्राणों की आहुति दी। बुधु भगत के नेतृत्व में आदिवासियों ने अंग्रेज़ों से नाकों तले चने चबवा दिए थे। अंग्रेज़ अपने आप को उस वक़्त झारखंड के इस क्षेत्र में बिल्कुल असहाय महसूस कर रहे थे। बुधु भगत की क्षमता एवं सैन्य तथा अन्य कुशलता के आगे उनकी एक नहीं चलती थी।

Feature Image Credit: jagran.com

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