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श्रवणामृत का अमृतकाल

लागीं सुनैं श्रवन मन लाई।आदिहु तें सब कथा सुनाई।।

श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कहि सो प्रगट होति किन भाई।।

आज सम्पूर्ण भारत राममय है!

राम भक्त भी और राम द्रोही भी!

सभी कहीं बस राम ही राम, राम से बड़ा राम का नाम!

जिन्हें निमंत्रण मिला है वे तो धन्य हुए ही और जिन्हें आमंत्रण मिला है वे भाव-विह्वल हो सजल नयन हैं  और इन गिने-चुने भाग्यवानों के साथ भारत के करोड़ों आस्थावान हर्षातिरेक से आल्हादित हैं कि अपने आराध्य श्रीराम का मंदिर अपने जीवन में बनते देख पा रहे हैं।

विक्रम संवत् सन् 2080 के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि, तदनुसार दिनांक 22 जनवरी 2024 को भारत-भारती के आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम भक्त वत्सल भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या जी में निर्माणाधीन श्रीमंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। चिरप्रतीक्षित प्रयोजन सिद्ध होगा और अखिल ब्रह्माण्ड, समस्त चराचर जगत इसका  साक्षी होगा।

हो भी क्यों न सब राम के हैं और राम सब के!

स्वाभाविक है कि राम की इस सृष्टि में शुभ-अशुभ, मंगल-अमंगल, अच्छे-बुरे सभी अपनी प्रकृति अनुसार भूमिकाएं निभा रहे हैं। जहाँ रामानुरागी कंकर-पत्थर, आखर-पाखर , स्वर-व्यंजन जोड़ कर अपने किंचित मात्र योगदान में प्रयत्नशील हैं वहीं आसुरी शक्तियाँ भी रामविरोध के चलते राम प्रभाव से निशि-दिन राम नाम का जाप कर रही हैं।

निहित स्वार्थों के चलते तामसिक प्रभाव से ग्रस्त लोगों की रामविमुख राजनीतिक निष्ठाऍं उनकी आस्थाओं पर प्रश्नचिह्न ही लगाती हैं।

जिसका जैसा कर्म, जैसा प्रारब्ध।

समस्त भारत राममय है। अमृत घट छलक रहे हैं, ज्योतिपुंज दमक रहे हैं, पवन तरंगें सुगंधें महका रही है, रामलला घर लौट रहे हैं और जब दसों दिशाऍं मंगल गा रही हैं तो हम क्यों पीछे रहें?

आइए हम भी राम नाम और राम कथा के श्रवणामृत पर शुभ विचार करें।

सदियों से रामकथा का गायन और रामलीलाओं का मंचन किया जाता रहा है। राम लीला में रामकथा को देखना तो आनंददायक है ही किंतु रामभजन-रामचरित को सुनना भी एक रोमांचित कर देने वाला अनुभव है। प्रभु श्री राम के भजन-कवित्त आदि का गायन परम आनंद की अनुभूति प्रदान करता है और इन दिनों पूरा देश इस श्रवणामृत का पान कर रहा है।सभी जगह राम भक्ति के पद गुंजायमान हैं फिर चाहे वो यू-ट्यूब हो, सोशल मीडिया हो या मुख्य धारा के संचार साधन।

प्रभु श्री राम और उनका जीवन चरित्र सदैव से ही साहित्यकारों-गीतकारों के प्रिय विषय रहे हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी कृत श्रीरामचरितमानस की चौपाइयाँ घरों और मंदिरों में हम सभी की प्रिय रही हैं।

अभागा ही होगा जिसने आज तक “श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन” नहीं  सुना होगा। जगती छंद में रचित यह राम स्तुति तुलसीदास जी कृत विनय पत्रिका में संस्कृतमय अवधी भाषा में लिखी गई है। प्रातः काल में लता मंगेशकर के स्वर में इसे सुनना मन के लिए अमृतपान के समान है। इसे सुरेश वाडकर, अनुराधा पौडवाल आदि अन्य गायकों ने भी गाया है किंतु लता जी का स्वर तो जैसे मां सरस्वती का आशीर्वाद ही है। एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी जी ने इस गीत को एक अनूठा आयाम दिया। नयी पीढ़ी के गायकों में वंदे गुरु परंपरा से जुड़ीं सूर्य गायत्री द्वारा गाई गई राम स्तुति भी अत्यधिक आनंददायक है जिसकी संस्तुति प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी की है।

राम के बाल रूप की चर्चा करें तो “ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनिया” बरबस ही याद आ जाता है। सोलहवीं शताब्दी में इसकी रचना भी गोस्वामीजी ने ही की। यह भी लता जी का स्वर में ही मन को अधिक भाती है। परिपक्व गायकी के चाहने वालों को पंडित डी वी पलुस्कर की प्रस्तुति अधिक भाएगी। सर्वाधिक लोकप्रिय राम भजनों में से एक इस भजन का अनुप जलोटा द्वारा गाया गया रूप भी अत्यधिक सुंदर है।

राम श्रवणामृत की बात हो और “रघुपति राघव..” याद न आए हो नहीं सकता। इस गीत के मूल रूप को कविता राम के स्वर में हम सभी ने सुना है। यद्यपि इस धर्मनिरपेक्ष रूप भी प्रचलित है किंतु मूल भजन का शाब्दिक सौंदर्य और दैविक प्रभाव अतुलनीय है।

धन अनेक प्रकार के होते हैं जैसे ज्ञान धन, संतोष धन आदि किंतु राम रतन धन की तो बात ही कुछ और है विशेष तौर पर जब भक्त शिरोमणि मीरा द्वारा लिखा पद हो और लता जी का मधुर स्वर हो।

हम बात कर रहे हैं कृष्ण भक्त मीरा बाई के भजन “पायो जी मैंने राम रतन धन पायो..” श्रवणामृत का सिरमौर नहीं तो मोर तो कहा ही जा सकता है।

राम भजनों की यात्रा अधूरी रहेगी यदि पंडित हरि ओम शरण जी की मनमोहक वाणी में “स्वीकारो मेरे परनाम..” न सुना जाए।

येसूदास जी का स्वर हो और नमामि भक्त वत्सलम कृपालु शील कोमलम् जैसे शब्द तो  आत्मा तृप्त हो ही जाती है। भवसागर के सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को रामभजनामृत ही तृप्त कर सकता है यदि भजन शर्मा बंधुओं द्वारा गाया गया हो।

रामधुन तो अनेकानेक गायकों द्वारा गाई गई है, जगजीत सिंह, हरिहरन, शंकर महादेवन, सोनु निगम की वाणी हम सब को बांध ही लेती है।

हो सकता है कि कुछ लोग कहेंगे कि ये पुराकाल की बातें हैं जब लोग भजन सुना करते थे,अब  चलचित्र उपलब्ध है भजन को देखिए रुपहले-सुनहले पर्दों पर।

परंतु एक बार अपने दोनों नेत्र बंद कीजिए और रामभजनामृत का आनंद लीजिए केवल श्रवणेन्द्रियों से आपके मानस पटल पर भगवान श्री राम की जो छवि उभरेगी वो एक दैविक अनुभूति ही होगी।

समस्त भारत राममय है।

और इस श्रवणामृत में युवा पीढ़ी का योगदान दूध में शहद की भांति है। कविताओं से, गीतों से, भजनों और शायरी (इमाम-ए-हिंद भी कहे जाते हैं भगवान श्री राम) से ह्रदय स्पर्शी प्रस्तुतियों के श्रवणामृत कलश छलक रहा है। यू ट्यूब, फेस बुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर जहाँ देखिए नये-नये स्वर मुखरित हैं।

साइको शायर की आवाज़ में “राम, मुझको भी अयोध्या जाना है” बार-बार सुनने को बाध्य कर देगा। सचेत टंडन का गायन “मंगल भवन अमंगल हारी” युवाओं में लोकप्रिय होता जा रहा है। राहुल वेल्लाल के स्वर में “आत्मा रामा आनंद रमणा” भजन रोम रोम पुलकित कर देता है। स्वाति मिश्रा, स्वस्ति मेहुल और मैथिली ठाकुर जैसे स्वरों के साथ तो पूरा भारत “मेरी झोंपड़ी के भाग खुल जाएंगे, राम आएंगे” गा रहा है।

विधायक जी, अगम अग्रवाल के गाए रामभक्ति के गीत नये अंदाज के हैं, कर्णप्रिय भी और युवा वर्ग में राम भक्ति की नयी अलख का परिचायक हैं।

राममंदिर का निर्माण निःसंदेह एक अनुपम, अद्वितीय अवसर है सनातन धर्म के मतावलंबियों के लिए क्योंकि जब तक राम रहेंगे सनातन धर्म रहेगा और जब तक सनातन धर्म रहेगा राम रहेंगे।

शरणागत वत्सल कौशल्या नंदन राम के अयोध्या धाम में होने जा रहे प्राण-प्रतिष्ठा समारोह ने लोगों को पुनः मधुर स्वर-श्रवणामृत के साथ जोड़ा है।

यही तो है श्रवणामृत का अमृतकाल!

Feature Image Credit: facebook.com

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