close logo

बैंगलोर कार्यशाला के अनुभव व लेखन कला

लंबे समय बाद कक्षा में एक छात्र के तौर पर बैठने का अनुभव हुआ। कक्षा कार्यशाला का रूप लिये हुए थी।  कैसे अच्छा लिखे ? लिखने में सबसे जरूरी व प्रेरणादायक क्या हो सकता है ? हमारे लिखे को पाठक क्यों पढ़े ? कैसे हम अच्छा लेखक बन सकते हैं ? शोध व समीक्षा क्या है ? ऐतिहासिक ग्रंथों का लेखन क्षेत्र में क्या महत्व है ? आप किसी विषय पर पुस्तक कैसे लिख सकते हैं ?…आदि प्रश्न इन तीन दिनों की कार्यशाला के केन्द्र बिंदु रहे।

पहले दिन डॉ जयरामन का “तंत्रयुक्ति” सत्र मेरे जैसे हिन्दी पाठक व लेखक के लिए एकदम नया था। शुरुआत में जरूर यह तंत्र विद्या जैसा कुछ लगा । तंत्रयुक्ति का शोध की दृष्टि से महत्व पर प्रकाश डाला गया। लेकिन बाद में इसका महत्व समझ आया। इस सत्र में वेदों व ऐतिहासिक ग्रंथों के महत्व पर प्रकाश डाला गया। शोध व शोध पद्धति पर लंबी बातचीत चली। इस सत्र की सबसे महत्वपूर्ण बात मुझे यह लगी कि हम भारतीय लेखक अपने लिखे की प्रमाणिकता के लिए पश्चिमी लेखकों के ग्रंथों पर निर्भर क्यों रहते हैं ? जब कि प्रचुर मात्रा में हमारे पास सभी भारतीय भाषाओं में ऐतिहासिक व कालजयी साहित्यिक भंडार है।

अगले दिन डॉ स्वरूप रावल जी का सत्र भी लेखन सीखने की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा। बीच बीच में लेखन व उससे जुड़ी बारीकियों पर चर्चा होना भी रोचक व नया सीखने जैसा रहा। रावल जी ने लेखन के सिद्धांतों पर भी चर्चा की व बच्चों के लिए पुस्तकें लिखना जैसे विषय पर चर्चा की। उनके द्वारा निरंतर छः मिनट लिखने के अभ्यास सत्र में भी बहुत कुछ सीखने को मिला। आपका लेखन पाठक को कैसे प्रभावित कर सकता है ? जैसे प्रश्नों पर चर्चा चली। यहां यह कह सकते है कि लेखन एक कला के साथ ही अभ्यास व कठिन परिश्रम की मांग भी करता है।

दोपहर बाद के डॉ नागरज जी के सत्र ने मुझे बहुत ज्यादा प्रभावित किया। उनका सत्र मुख्यतः शोध पद्धति पर था। लेकिन उन्होंने इस विषय को बेहद सरल करते हुए अपनी बातें रखीं। उन्होंने कला व विज्ञान के लेखन क्षेत्र में महत्व पर लंबी चर्चा की। बीच बीच में सत्र के गंभीर माहौल को हल्का करते हुए अपनी बात रोचक व चुटिले अंदाज़ में भी कहीं। तथ्य व व्याख्या के बीच के महीन अंतर को स्पष्ट किया व लेखन को कैसे तथ्यपरक व प्रमाणिक बनाया जा सकता है। भारतीय इतिहास व शिक्षा में वामपंथियों द्वारा की गई छेड़छाड़ व षड्यंत्रों पर भी बेबाकी से चर्चा की। यह इस सत्र के प्रमुख बिंदु रहे। आज के अंतिम सत्र में सभी ने एक दूसरे का परिचय दिया। सभी को जानना रोचक तो रहा ही पर प्रेरणादायक ज्यादा रहा।

अंतिम दिन का पहला सत्र श्रीमती साईं स्वरूपा जी द्वारा लेखन की बारिकियों पर व उनके लेखक बनने-लिखने के निजी अनुभवों से शुरू हुआ। लेखन व उसका कैसे संपादन करना, उसके महत्व पर चर्चा रही। लेखन भाषा व उसके भाव पर भी चर्चा रही। “लिखना प्रतिदिन का अभ्यास हैं” इस बात पर जोर दिया गया। संपादन के तीन चरणों को विस्तार से बताया गया। अपने लिखे को सबसे पहले स्वयं संपादित करें व सुधार करें। पहले ईमानदार पाठक स्वयं लेखक बने। समय सीमा में लेखन करें, प्रतिदिन तीस मिनट पढ़ें व तीस मिनट लिखे जैसी बहुमूल्य बातों को लेखन के लिए जरूरी सुझाव व तरीक़े के तौर पर बताया। जो लिखा है उसकी प्रमाणिकता व तथ्यों की जांच पर भी चर्चा चली। कुल मिलाकर यह सत्र भी मेरे जैसे नये लेखक व खासकर हिन्दी लेखक के तौर पर महत्वपूर्ण रहा।

अंतिम दिन व अंतिम दो सत्रों में पुस्तक समीक्षा पर डॉ योगिनी जी व आदरणीय शिवकुमार जी ने विस्तृत चर्चा की। पुस्तक समीक्षा का महत्व व उसकी पद्धति पर बिंदुवार बताया। साथ ही सभी आमंत्रित लेखकों को बताया कि कैसे इंडिका अकादमी को हम अपने लेखन के माध्यम से राष्ट्र व राष्ट्रीयता के लिए उपयोगी बना सकते हैं। पुस्तक समीक्षा पर चर्चा व बहुत सी महत्वपूर्ण बिंदुओं को रखना, समीक्षक के तौर पर नया लगा। समीक्षा सत्र व इस पर बातचीत पर अलग से लंबा लिखा जा सकता है ।

साथ ही श्री हरि किरण जी का विदाई भाषण मन को अच्छा लगा। नई शिक्षा नीति, वर्तमान में शिक्षा संस्थानों की स्थिति, शिक्षा में सुधार, लेखन क्षेत्र में नयी संभावनाओं आदि बातें महत्वपूर्ण थी। भारतीय शिक्षा संस्थानों में वामपंथियों की मजबूत पकड़ को कैसे सुनियोजित ढंग से तोड़ना है, इस विषय पर सटीक चित्रांकन के माध्यम से समझाया। इस सत्र में जरूर कुछ प्रश्नों व आपसी चर्चा के कारण थोड़ा उनकी बातों को समझना कठिन हुआ। लेकिन यह विदाई भाषण बेहद प्रेरणादायक रहा।

बैंगलुरू में इंडिका अकादमी के द्वारा आयोजित यह कार्यशाला लेखन व लेखन के क्षेत्र में संभावनाओं पर महत्वपूर्ण रही। आमंत्रित सभी सदस्यों से गुणवत्तापूर्ण यह संवाद व चर्चा लेखन क्षेत्र में भविष्य के नये मार्ग प्रशस्त करेंगा। अकादमी के द्वारा आयोजित यह कार्यशाला सभी मायनों में सुनियोजित व उपयोगी रही। साथ ही समय का उचित प्रबंध व रहने-भोजन का बहुत ही अच्छे से संचालन किया गया। उसके लिए हम सभी आपके विशेष आभारी हैं। पठन-पाठन व लेखन की दृष्टि से यह संवाद व नये लेखकों से जुड़ना भविष्य में उपयोगी रहेगा, ऐसा मुझे प्रबल विश्वास है।

Disclaimer: The opinions expressed in this article belong to the author. Indic Today is neither responsible nor liable for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in the article.