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स्वातंत्रयोत्तर भारत में नारी सशक्तिकरण के आयाम  भाग- १

भारत सदियों से नारी के सम्मान और सुरक्षा के लिए कटिबद्ध रहा है।  युगों-युगों की बात की जाए तो त्रेता और द्वापर में भी नारी को सम्मानजनक स्थिति प्राप्त थी। कुछ संयोगवश घटने वाली घटनाओं को छोड़ दें तो यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि भारत सदियों से स्त्री पूजक रहा है।

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते , रमन्ते तत्र देवता, यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्त त्रा फला क्रियाः।।

अर्थात जहां स्त्री जाति का आदर सम्मान होता है उनकी आवश्यकताओं अपेक्षाओं की पूर्ति होती है उस स्थान समाज व परिवार पर देवता गण भी प्रसन्न रहते हैं।  जहां ऐसा नहीं होता और उनके प्रति तिरस्कारमय व्यवहार किया जाता है वहां देवकृपा नहीं रहती है और वहां सम्पन्न किए गए  कार्य कभी सफल नहीं होते हैं।  (1)

पाशविक प्रवृत्तियों ने जब जब भारतीय अस्मिता को बिगाड़ने का काम किया तब तब भगवान् ने स्वयम् अवतार लेकर पाशविक वृत्तियों का दमन किया है।  गीता के चौथे अध्याय के सातवें श्लोक में में भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा कि

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत,  अभ्युत्थानम् धर्मस्य तदात्मानम् सृजाम्यहम्। ।

अर्थात जब जब धर्म की हानि होती है तब तब धर्म की स्थापना के लिए मै अवतार लेता हूँ।।  (2)

मानवीय पक्ष में तमाम नारियों ने अपने त्याग व समर्पण का अप्रतिम उदाहरण देते हुए संत के रूप में भारतीय समाज के पुनरुद्धार का काम किया।  यह सही है कि सोलहवीं सदी में अनेक मुगल व विदेशी आक्रांताओ के आगमन से नारी सुरक्षा के सम्मान पर आघात पहुंचा।  और भारतीय नारियां पाशविकता की शिकार हुई।  व्रिटिश कालीन गुलाम भारत में भी नारी की प्रतिष्ठा को धूल धुसरित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई।  विदेशी आकक्रांताओ, आतताईयो व शोषक चाटुकारों की कुदृष्टि से बचने के लिए संभवतः भारत में पर्दा प्रथा का प्रचलन हुआ।

भारतीय स्वाधीनता के बाद सन् 1950 में जब भारतीय लोक ने पूरी तरह से संविधान अंगीकार कर लिया तब राष्ट्र निर्माताओं ने जिस समता एकता व अखंडता का सपना देखा था उसपर सामूहिक रूप से काम भी शुरू किया गया।  पाषाण युग प्राचीन काल व मध्य काल के अनुभवों ने आजादी के सत्तर बर्षो में धीरे-धीरे काफी हद तक सामाजिक व्यवस्था के मूल नारी शक्ति को उत्थान का अवसर दिया।

इस क्रम में भारत की आदर्श नारियों के आदर्श पर चलने का मार्ग भी सुझाया जाने लगा।  प्राचीन काल में नारियों की स्थिति पर गौर करें तो उस समय मैं उनकी स्थिति काफी मजबूत थी।  पुत्रियों को समान अधिकार व सम्मान मिलता था।  मनु ने भी वेटी के लिए सम्पति में चौथे हिस्से की व्यवस्था की थी। मनुस्मृति में कहा गया है कि

“यथैवात्मा तथा पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा।

तस्यामात्मनि तिष्ठन्त्याम् कथमन्यो धनम् हरेत्।।

अर्थात “पुत्र के ही समान कन्या है उसके रहते हुए दूसरा उसके सम्पत्ति के अधिकार को कैसे छीन सकता है।  (मनुस्मृति 9:130),,3।

इसी तरह

“मातुस्तु यौतकम् यत्स्यात्कुमारीभाग एव सः।  दौहित्र एव च हरेदपुत्रस्यिखिलम् धनम्”।।

अर्थात “माता की निजी सम्पत्ति पर केवल उसकी कन्या का ही अधिकार है।  (9:131)। 4।।

उपनिषद काल में पुरूषों के साथ ही साथ स्त्रियों को भी शिक्षा दी जाती थी।  आत्रेयी लवकुश के साथ पढतीं थी।  नारियों को सैन्य शिक्षा भी दी जाती थी।  परन्तु दुर्भाग्य यह था कि द्वापर में स्त्रियों के सम्मान पर मद में चूर राजाओं ने कुदृष्टि डाली।  द्रोपदी इसका ऐतिहासिक उदाहरण है।  उस समय भी नारी के सम्मान को बचाने के लिए सवयम् भगवान् श्रीकृष्ण को मदद करनी पड़ी जो उस काल के महानायक रहे।

यह नकारा नहीं जा सकता है कि मध्य काल में स्त्रियों को गुलाम, दासी और भोग्या बना दिया गया।  शायद ही कोई युद्ध रहा हो जो स्त्रियों के कारण न लड़ा गया हो। माता पार्वती, वेदज्ञ ऋषि गार्गी, मैत्रेयी, कौशल्या, सीता शबरी देवकी यशोदा और अरूंधती को कौन नहीं जानता है।  इनके त्याग बुद्धिमत्ता और स्वाभिमान ने समाज को एक नई दिशा दी।  दुर्गा सप्तशती का एक श्लोक दद्रष्टव्य है-

“या देवी सर्वभुतेषु शक्ति रुपेण संसिथा

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।   (5)

इससे आगे बढें तो मां जीजाबाई अहिल्या देवी और वीरांगना लक्ष्मीबाई के वीरता व शौर्य की गाथा आज भी लोगों की जुबान पर मौजूद हैं। भारतीय नारियों की गौरव गाथा निश्चित रूप से युगों युगों तक भारतीय समाज को मार्ग देती रहेंगी। अठारहवीं शताब्दी भारत में नारियों के लिए काफी विद्रूप लेकर आया। अंग्रेज, डच, पुर्तगाली व फ्रांसिसियो के आगमन पर मुख्य रूप से शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक रूप से शोषण का शिकार होना पड़ा।  नारियों के शोषण ने भारतीय नारी को काफी आक्लांत किया।  अमानवीय यातनाएं और अमानवीय अत्याचार हुए तमाम तरह की यातनाएं भी सहनी पडीं।

भारतीय स्वतंत्रता के बाद नारी सशक्तिकरण के  लिए तमाम प्रयास हुए हैं और हो रहे हैं।  जिसका असर भी दिखाई दे रहा है।  शिक्षा, खेती-किसानी, रक्षा, जल, थल, नभ व आकाश तक नारियां अपने शक्ति का प्रदर्शन कर रही है। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि “स्त्री में जिस तरह बुरा करने की, लोक का नाश करने की शक्ति है उसी प्रकार भला करने, लोकहित साधन करने की शक्ति भी उसमें सोयी पडी है। अगर वह यह विचार छोड़ दें कि वह खुद अबला है और पुरुष के गुडिया होने के ही योग्य हैं तो वह खुद अपना और पुरुष का जन्म सुधार सकती है। और दोनों के लिए ही यह संसार सुखमय बना सकती है। (6)

फिर अहिंसा पर भी जोर देते हैं-

“वह अहिंसा की मूर्ति है। स्त्री से बढकर यह शक्ति किसमे मिलती है?(7)

आजादी के बाद भले ही नारी सशक्तिकरण के प्रयास किए गए किंतु आधुनिक संचार माध्यमों, चलचित्रो, फूहड़ साहित्य और पश्चिम की हवा ने बहुतेरे लोगों को मानसिक बीमार कर दिया।  घरेलू हिंसा हत्या दहेज कन्या भ्रूण हत्या जैसी गंभीर सामाजिक समस्याएँ आए दिन होने लगीं और नारी सुरक्षा के प्रति गंभीर चुनौती के रूप में सामने आयी।

संदर्भ-

1_मनुस्मृति अध्याय 3श्लोक 56

2_श्रीमद्भभग्वद्गीता अध्याय 4,श्लोक

3_मनुस्मृति अध्याय 9,श्लोक 130

4_मनुस्मृति अध्याय 9,श्लोक 131

5_दुर्गा सप्तशती (गीता प्रेस गोरखपुर उत्तर प्रदेश)

6_ गांधी वाणी पृष्ठ 96,पिलग्रिम पब्लिकेशन दिल्ली

7_गांधी वाणी पृष्ठ 97 ““

8_भारत सरकार के गजट के आधार पर (देखें गवर्नमेंट आफ इंडिया गजट)

9 मेरे सपनों का भारत पृष्ठ 194 राजपाल नई दिल्ली

10 मेरे सपनों का भारत पृष्ठ 196

11_रामदरस मिश्र के उपन्यासों में गृह परिवार (प्रकाशक_नया साहित्य केंद्र सोमिया विहार दिल्ली 94

12_वही

13_वही

14_अनाथ लड़की।  “प्रेमचंद।  स्त्री जीवन की कहानियाँ पृष्ठ 47*”भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली 03

Feature Image Credit: sundayguardianlive.com

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