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स्वातंत्रयोत्तर भारत में नारी सशक्तिकरण के आयाम  भाग- २

पिछला भाग

नारी को मजबूत बनाने व सम्मानजनक स्थिति प्रदान करने के लिए कानून भी बने किंतु पुरूष वर्ग को पता नहीं क्या हो गया है कि जघन्य अपराध करने से बाज नहीं आ रहे हैं।  नारी सशक्तिकरण के उपायों पर यदि पुरुष अमल करे तो निश्चित रूप से नारी को सम्मानजनक स्थिति प्राप्त होगी।  भारत सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या को जघन्य अपराध घोषित किया है।

बेटी के जन्म पर कुछ राज्य सरकारों द्वारा आर्थिक सहयोग प्रसूति को आर्थिक सहायता जीवन रक्षक टीकाकरण से निश्चित रूप से नारी सुरक्षा के उपायों को बल मिला है।  भारत की सुकन्या समृद्धि योजना 21वीं सदी के वरदान के रूप में सामने आई है। यहाँ सरकार की दूरदर्शिता परिलक्षित होती है। भारत में नारी सशक्तिकरण के लिए लागू कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं को उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है

  • बेटी बंचाओ वेटी पढाओ 22जून 2015 से शुरू
  • राजीव गांधी योजना (सबला) 1अप्रैल 2011 से लागू
  • इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना 26अक्टूबर 2010से लागू।
  • कस्तूरबा गांधी वालिका विद्यालय योजना 2004 से लागू
  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना
  • स्वाधार घर योजना 2001_02 में शुरू
  • रोजगार + प्रशिक्षण, रोजगार योजना 1986_87 से लागू
  • राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990
  • सती प्रथा निवारण अधिनियम
  • दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 (अधिनियम संख्यांक 28(20)मई 1961
  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005,(26_10_2005)से लागू
  • महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम 2013 (8)

फिर भी भारतीय समाज की वर्तमान सामाजिक व्यवस्थाओं में अभी भी नारियों की स्थिति काफी चिंतनीय है। भेदभाव व पुरुष एकाधिकार भी एक नासूर बना हुआ है।  जिसे स्वस्थ मानसिकता से ही ठीक किया जा सकता है। जिससे कि नारी की शक्ति व प्रतिभा का लाभ सम्पूर्ण धरा को मिल सके। नारियों को शिक्षा का पूरा अधिकार भी मिलना चाहिए। गांधी जी ने कहा कि

“मैंने समय समय पर यह बताया है कि स्त्री में विद्या का अभाव इस बात का कारण नहीं होना चाहिए कि पुरुष स्त्री से मनुष्य समाज के स्वाभाविक अधिकार छीन ले या उसे वे अधिकार न दे।  किंतु इन स्वाभाविक अधिकारों के काम लाने के लिए, उनकी शोभा बढाने के लिए और उनका प्रचार करने के लिए स्त्रियों में विद्या की जरूरत अवश्य है।  साथ ही विद्या के अभाव में लाखों को शुद्ध आत्मज्ञान भी नहीं मिल सकता।”  (9)

 गांधी जी ने नारी सम्मान के लिए ही सह शिक्षा पर जोर दिया।“  (10)

महिलाओं के सामने घर गृहस्थी संभालने के साथ ही साथ भारतीय संस्कृति के परिधि में रहकर समाज में स्वस्थ परंपरा का सृजन भी एक जिम्मेदारी है।  ऐसा नहीं कि पुरुष इससे वंचित हैं किन्तु एक मां के रूप में समाज के वास्तविक स्वरूप को निखारने नारी की महत्वपूर्ण भूमिका है।  इसलिए नारी को उच्च सम्मान व सशक्त बनाने की जिम्मेदारी भी समाज की है।  इस दिशा में चिंतकों व लेखकों का दायित्व अहम् है क्योंकि साहित्य का रस निश्चित रूप से सामाजिक धारा को मोड़ने की ताकत रखता है।  लेकिन अभी जिस स्थिति में साहित्य की भूमिका होनी चाहिए नहीं दिख रही और उनपर भी पाश्चात्य संस्कृति की हवा असर कर गई है।  प्रख्यात उपन्यासकार रामदरस मिश्र ने अच्छा प्रयास किया था और महिला समस्या और समाधान भी प्रस्तुत किया। थकी हुई सुबह नामक उपन्यास में लक्ष्मी का पति सागर उसे छोड़कर चला जाता है।  मिश्र जी ने लक्ष्मी के माध्यम से परित्यक्ता नारी के संकटों का समाधान खोजने का प्रयास किया है।  (11)

इसी तरह “जल टूटता हुआ”में बदमिया अपने पति की मार से तंग होकर मायके चली जाती है।  यहां भी सुंदर समाधान दिया गया है।  (12)

“रात का सफर “की नायिका” ऋतु के परित्यक्त हुए दुख का वास्तविक चित्रण किया गया है। (11)

पुरुषों की लंपट प्रवृत्ति पर “विना दरवाजे के मकान” उपन्यास में रामदरस मिश्र ने कडा चोट किया है। क्योंकि नारी सशक्तिकरण केवल एक या केवल महिला के संभव द्वारा नहीं समाज का भी बल मिलना जरूरी है। इसी उपन्यास में चौधरानी अपने लंपट प्रवृत्ति पति से तंग आकर कहती है कि-

“मेरा मरद महान् कहलाए इससे अधिक गर्व मुझे क्या हो सकता है मै भी सिर ऊंचा उठाकर कह सकूं कि दुनिया भर के मरद कितने निकम्मे है कि वे अपनी औरतों का दरद भी नहीं पोछ पाते, एक मेरे मरद को देखो कि दुनिया भर की औरतों का दरद पोंछता है।  बलवान तो सांड भी होता है।  वह न जाने कहाँ कहाँ घूमता है।  तुम मरद और सांड में फरक नहीं मानते।  तुम तो आदमी की खाल में पढे लिखे सांड हो_एम ए पास सांड।”  13

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने भी अपने तमाम कहानियों के माध्यम से समाज के सामने चित्र प्रस्तुत किया जिससे अंधकार दूर कर नारी की महत्ता को  स्वीकार करते हुए नारी सशक्तिकरण के प्रभावशाली कदम उठाए जाएं। अनाथ लड़की नामक कहानी में मुंशी प्रेमचंद ने एक सेठ पुरुषोत्तम दास द्वारा अनाथ लड़की रोहिणी की शिक्षा से लेकर विवाह तक जिम्मेदारी उठाकर अपनी वेटी के समान सम्मान दिलाना नये सोंच का उत्कृष्ट उदाहरण है।  रोहिणी की शादी की रस्म समाप्त होने के बाद सेठ जी के कहते हैं-

“क्यों अब तो तुम मेरी बेटी हो गई? और गले लगा लिया। “यह मार्मिक दृश्य किसी भी व्यक्ति को प्रभावशाली प्रेरणा दे सकता है।”  (14)

सार रूप में यह कह सकते हैं कि स्वतंत्र भारत में सरकारी तौर पर और गैर सरकारी संगठनों द्वारा नारी सशक्तिकरण के तमाम प्रयास किए गए और किए भी जा रहे हैं जिससे कि नारी एक  सशक्त रूप में सम्मानजनक स्थिति प्राप्त करे और सफलता भी मिली है।  प्रत्येक क्षेत्र में नारी का महत्वपूर्ण योगदान यही साबित करता है लेकिन जरूरी भी है कि ये प्रयास धीमे न पडें।

संदर्भ-

  • मनुस्मृति अध्याय 3श्लोक 56
  • श्रीमद्भभग्वद्गीता अध्याय 4,श्लोक
  • मनुस्मृति अध्याय 9,श्लोक 130
  • मनुस्मृति अध्याय 9,श्लोक 131
  • दुर्गा सप्तशती (गीता प्रेस गोरखपुर उत्तर प्रदेश)
  • गांधी वाणी पृष्ठ 96, (पिलग्रिम पब्लिकेशन दिल्ली)
  • गांधी वाणी पृष्ठ 97
  • भारत सरकार के गजट के आधार पर (देखें गवर्नमेंट आफ इंडिया गजट)
  • मेरे सपनों का भारत पृष्ठ 194 राजपाल नई दिल्ली
  • मेरे सपनों का भारत पृष्ठ 196
  • रामदरस मिश्र के उपन्यासों में गृह परिवार (प्रकाशक_नया साहित्य केंद्र सोमिया विहार दिल्ली)
  • अनाथ लड़की। “प्रेमचंद – स्त्री जीवन की कहानियाँ पृष्ठ 47*”भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली 03

Feature Image Credit: govtjobsyllabus.in

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