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राम से बड़ा राम का नाम, राम सँवारें सबके काम

सबके दाता राम..

राम से बड़ा राम का नाम,

राम सँवारें सबके काम..

राम भारत में सबसे प्रचलित और विश्वसनीय नाम है फिर वो रामचंद्र हो, रामलाल हो, रामदास हो,रामावतार हो,रामकरण हो, रामचंद्रन हो या रामनाथन..रामधन, राम भजन, रामानंद, रामभजो, रामोजी, रामाधीन, रामरती, रामकली, रामेश्वरी..पेमाराम, जयराम, रामाराव, सीताराम, राजाराम..

कोई तो बात होगी दो अक्षरों के इस शब्द में जो हम सभी को बाँधे हुए है!

हो सकता है कुछ लोग मेरी बात से असहमत हों किंतु भारतीय जनजीवन राममय कहा जा सकता है।

हम राम-राम कर उठते हैं और जै राम जी की कर उठ जाते हैं। राम जाने कह कर अपनी हर समस्या का भार राम के कंधों पर डाल देते हैं। योजनाबद्ध जीवन जीने वाले लोग जय श्री राम कह आगे बढ़ते हैं और रामभरोसे जीने वाले तो होते ही राम आसरे हैं।

हरे राम कहें या हे राम राम प्रतिक्षण हमारे मन में रहते हैं। स्वीकृति या अनुभूति की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। कुछ ऐसी संस्कृति है हमारी कि हमें  राम विमुख होने ही नहीं देती। राम कुटी,राम देवरा,रामटेकरी, राम द्वारा, राम मंदिर, रामगंज, रामनगर, रामरसोई, रामगढ़ अर्थात् राम ही राम।

जब सब ओर राम है तो कुछ तो होगा जो हमें राम नाम की लगन लगाता है।

कमल – विमल तो नहीं जपते न हम..!

मर्यादा पुरुषोत्तम राम भारतीय जनमानस की आस्था का शाश्वत प्रतीक है और

लोकमंगल की प्रवृति का परिचायक है।

राम-राज्य को आदर्श मानते हैं उसी की कामना करते हैं।

राम के नाम पर लाखों परिवारों की रोजी-रोटी चलती है और करोड़ों लोग अपनी

जीवन नैया की पतवार भगवान राम के हाथों सौंप निश्चिंत हो जीते हैं कि राम जी पार लगा ही देंगे।

राम नाम के महात्म्य को देखते हुए महात्मा गाँधी ने लोगों को जोड़ने के लिए भी रामधुन का सहारा लिया।

रामभक्ति की स्थिति यह है कि स्त्रियाँ अपने पति को श्री राम कह कर पुकारती हैं। हर पत्नी राम जैसा पति चाहती है तो अभिभावक राम जैसा पुत्र चाहते हैं।

“ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनिया..” किस माँ ने नहीं गाया होगा अपने नन्हें के पैर चलने पर…?

सच्चे रामभक्त व्यर्थ की आपाधापी में विश्वास नहीं करते, न दुख में दुखी होते हैं न सुख में उन्मत्त। “होई हैं वही जो राम रचि राखा” की तर्ज पर किया-धरा सब राम को समर्पित कर संतोष करते हैं।

लोक रंजन में रामलीला का स्थान सर्वोपरि है जो गाँव-गाँव नगर-नगर राम नाम की अलख जगाती है जिसका मंचन अधिकतर दशहरे के आस-पास हुआ करता है। रामलीला के अंतिम दिन यानि दशहरे के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले बनाये और जलाए जाते हैं।

गीता प्रेस गोरखपुर ने “राम चरित मानस” को घर-घर पहुँचाया।

रामकथा और सुंदरकांड का सस्वर गायन-श्रवण तो आप ने भी किया ही होगा।

रामचरितमानस का यथाशक्ति पारायण आज से कुछ वर्षों पहले घर-घर की बात थी जब तक टीवी ने घरों में सेंध नहीं लगाई थी।

टीवी आया तो रामानंद सागर की “रामायण” ने असाधारण राम को एक साधारण रूप में घर-घर पहुँचाया। रामायण प्रसारण के समय पूरे देश में अघोषित निषेधाज्ञा सी लग जाती थी। क्या बच्चे क्या बड़े रविवार सुबह दस बजते ही सबके सब टीवी के सामने बैठ जाया करते। श्रद्धा ऐसी कि लोग बिना नहाए रामायण नहीं देखते थे।

एनिमेशन ने लोगों की रचनात्मकता को पंख लगाए और आधुनिक बच्चों के लिए भगवान राम पहले सुपरहीरो हुए और फिर एक महाकाव्य का चरित्र।

राम के चरित्र और रामायण पर आधारित कई चलचित्र बने और सैकड़ों हजारों भजन लिखे गए।

हम बात कर रहे थे राम के नाम की..

“म्हारा राम रघुनाथ थाने जोड़ु दोन्यूं हाथ.. “

परंपरागत गायक गले में पेटी वाला बाजा उठाए गली-गली राम नाम में रचे-बसे लोकगीत और भजन गाया करते जो आज भी भूले-भटके हमारे कानों में पड़ जाते हैं और इस भव सागर की क्षणिकता का आभास कराते हैं फिर वो

“राम रस भीनी चदरिया झीनी रे झीनी..” हो या

“राम एक आदर्श जगत में, वंदन करूँ हजार..”।

राम कसम हमारी लोकभाषा तो राम शब्द के बिना विपन्न ही हो जाएगी।

राम जी राजी, राम की मर्जी , राम कहानी, राम मिलाई जोड़ी आदि।

दोहरे चरित्र वाले व्यक्ति को हम मुँह में राम बगल में छुरी कह कर संबोधित करते हैं। स्वयं को संबोधित करते हैं हम अपने राम से।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी के शब्दों में ..

“राम तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है

कोई कवि बन जाय,सहज संभाव्य है”

हमारा लोकसाहित्य भी राम जी के जीवन के विभिन्न प्रसंगों से संतृप्त है, राम जी की कहानियाँ लोग चलते फिरते सुनते-सुनाते हैं और उद्धृत करते हैं।

“कण-कण में राम,

घट-घट में राम,

राम सहारे अपने राम..”

राम भारतीय संस्कृति में भक्ति की चरम अवस्था को इंगित करते हैं फिर वे राम मंदिर के रामचंद्र हों या रामापीर। कबीर दास जी कहते हैं..

“राम पिया मोरे..मैं राम की बहुरिया”।

हमारे त्योहार राम से जुड़े हैं। राम का जन्म दिन यानि रामनवमी,रावण वध तो विजयदशमी,अयोध्या आगमन तो दीपावली..रक्षाबंधन तो श्रवण की कहानी..

हमारे जीवन का कोई पक्ष ऐसा नहीं है जो राम से अछूता हो।

तो आप कितना जानते हैं राम को..?

कौन हैं राम?

क्या दशहरे के मेले में रावण की नाभि पर तीर चलाने वाले राम हैं?

या राम लीला के मंडप में शिवधनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने वाले राम हैं?

राम कहीं हैं भी या कोरी कल्पना है?

कोई साक्ष्य है राम के होने का?

ये वे प्रश्न हैं जिनसे हमारा सामना कभी न कभी होता है और हम सर झटक कर इन्हें अनसुना कर देते हैं या मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाते हैं..हमें लगता है कि इस प्रकार के प्रश्न या तो बालसुलभ जिज्ञासा भर हैं और हमें किसी प्रकार का स्पष्टीकरण देने की कोई आवश्यकता नहीं है।

यहीं हम गलत हैं..क्योंकि जिस राम को हम जानते हैं उससे तो आने वाली पीढ़ी का परिचय हुआ ही नहीं..उनका परिचय अपने राम से करवाना हमारा उत्तरदायित्व है।

अपनी आँखें बंद कीजिए और राम का ध्यान कीजिए। देखिए कि कैसा दृश्य

साकार होता हैं दृष्टिपटल पर.. आजानुभुज रघुकुल शिरोमणि कौशल्या नंदन प्रभु श्री राम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ वहाँ विराजमान हैं पवनपुत्र हनुमान।

है न वही छवि..?

कहाँ से आई..?

राम आप के भीतर हैं, खोजिए अपने राम को..आप ही राम हैं, राम ही आप हैं..

कहते हैं राम के नाम में इतनी शक्ति है कि यदि इसे उल्टा भी पढ़ा जाए तो  हमारी मुक्ति निश्चित है..!

राम जी सब की भली करें।

Image credit: picxy

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