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प्रभास (पुस्तक समीक्षा)

प्राचीन संदर्भों के माध्यम से सामयिक सामाजिक समस्याओं का समाधान

यूँ तो किसी कथा को परिभाषा में बाँधना एक दुरूह कार्य है किन्तु  विद्वानों तथा कथा-लेखकों ने इसकी परिभाषा अपने-अपने ढंग से गढ़ कर इसे हम सभी के सामने पहुँचाया है।

जैसे अज्ञेय कहते हैं –

“कथा जीवन की प्रतिच्छाया है और जीवन स्वयं एक अधूरी कथा है, एक शिक्षा है, जो उम्रभर मिलती है और समाप्त नहीं होती।

तृषार अपने इस कथा संग्रह में कथा की सभी परिभाषओं को हमारे आमने प्रस्तुत करते प्रतीत होते हैं।

लेखक तृषार अपनी इस पुस्तक की प्रस्तावना में जब अपनी पहली कथा “अच्युतानन्तगोविन्द” में यह कहते हैं कि

“पूर्ण पुरुषोत्तम श्री कृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन के प्रसंगों में जो कर्म का सिद्धांत छुपा कर रखा गया है उस विशय में चिंतन करती यह कथा कहीं ना कहीं मुझे जीवन में आ रही कठिनाइयों से लड़ने को प्रोत्साहित करती है।”

आप यह सोचने पर विवश हो जाते  हैं कि यह कथा किसी कर्मयोगी की ही कथा होने वाली है?

“समुद्र तट पर सूर्यास्त देखने के लिए लोगों का हुजूम लगा था…”

कथा का आरम्भ ही इतना आकर्षक है कि पाठक का मन पुस्तक में बस जाता है।

कथा “प्रणय निवेदन” में लेखक पात्र सुधाकर और सुलग्ना के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी की शंकाओं का समाधान सामने लाने सफल प्रयास कर रहे हैं। सोमनाथ मंदिर में के रहस्मयी बाण स्तंभ का पौराणिक और ऐतहासिक महत्त्व भी इसी कथा में बताया गया है।

“मेरे सोमनाथ” वीरगाथा है “हमीरजी गोहिल” की जिन्होंने मंदिर की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। यूं तो यह कथा गुजराती लोक कथाओं में अनेकों प्रकार से कही गयी है कितु यहाँ लेखक का कौशल्य इसमें दिखाई देता है कि वह किसी विवाद में ना पड़कर मात्र वीर गोहिल के शौर्य से वर्तमान पीढ़ी को परिचत कराते हैं।

जो तृषार से परिचित हैं वह उनके संग्रहालयों के प्रति उनके अटूट प्रेम से भी परिचित हैं। लघु कथा “यहाँ क्या हुआ था” के माध्यम से वह पाठकों में मन में संग्रहालयों के प्रति कौतुक पैदा करने में सफल रहे हैं। पुरातत्व के अवशेषों के बीच में बुनी यह कथा पाठकों के मन में संग्रहालयों में रूचि अवश्य जगाएगी।

वर्तमान पीढ़ी का विद्रोही स्वभाव पूरे समाज के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। समाज के सभी पटलों पर इसके बारे में गंभीर चर्चा होती है। “शिक्षित-अशिक्षित” कथा इसी पृष्ठभूमि पर रची गयी है। शांति, आधुनिकता के नाम पर मदहोश होती इस पीढ़ी को होश में लाने का यह अद्भुत प्रयास है। लेखक अनुसार इसी वर्तमान पीढ़ी को उचित दिशा मिले तो उसका उपयोग राष्ट्र निर्माण में किया जाना असंभव नहीं।  अधिकारों की प्राप्ति हेतु कर्तव्यों का निर्वहन कितना आवश्यक है, यह तृषार इस कथा में आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।

तृषार अपनी कथाओं की पृष्ठभूमि के अनुसार भाषा का चयन करते हैं। कहीं वह आपको सरल, स्वाभाविक प्रतीत होगी तो कहीं उनकी भाषा आपको संस्कृतनिष्ठ शब्दों के उपयोग के साथ एक नदी की अविरल जलधारा के समान दृश्यमयी होगी। कहीं-कहीं क्लिष्ट तथा तत्सम शब्दों के प्रयोग होते हुए भी उनका वाक्यविन्यास प्रवाहमयी है। इसका एक उदहारण देखिये-

“सुख और दुख का चक्र इसे ही तो कहते हैं पुत्र।” योगी बोले,

“तुमने श्री कृष्ण का जीवन मात्र एक दृष्टिकोण से देखा है। विस्तृत चित्र देखने पर तुम्हे ज्ञात होगा कि एक ओर द्वापर में श्री कृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था तो त्रेता में सूर्यवंशी श्री राम का जन्म राजप्रसाद में हुआ था। इक्ष्वाकु कुलदीपक श्री राम का बचपन वैभव में बीता तो यह कृष्ण को माता-पिता का विरह सहना पड़ा। लेकिन दूसरी और श्रीकृष्ण को युवावस्था में वैभवी जीवन प्राप्त हुआ तो श्री राम को युवावस्था में माता-पिता का विरह सहते हुए वनवास भोगना पड़ा। सुख और दुख दोनों के भाग्य में था लेकिन दोनों ने पराजय नहीं स्वीकारी। ईश्वरीय अवतार होते हुए भी उन्होंने संघर्ष किया। नैतिक मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया और सामने आने वाली चुनौतियों का प्रसन्नतापूर्वक स्वागत किया।”

 लेखक ने अपनी कथाओं में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार दिया है। किसी प्रसंग को ना तो उन्होंने अत्यंत संक्षिप्त लिखा है तथा ना ही अनावश्यक रूप से विस्तृतता प्रदान की है।

तृषार अपनी वर्णन शक्ति तथा कल्पनाशक्ति से कथानक को अत्यंत रोचक तथा प्रभावशाली बनाने में सफ़ल रहे हैं तथा इस कथासंग्रह में भी भी उन्होंने हम सभी को निराश नहीं किया है।

लेखक का पाठक वर्ग उनकी लघु कथाओं का आगे भी बेसब्री से प्रतीक्षा  करेगा, ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है

मेरी स्वयं की इच्छा यह है कि उनकी आने वाली रचना उनका एक उपन्यास हो जिसमे हमें एक ही कथा का विस्तार से सौंदर्यपान करने का अवसर मिले

लेखक तृषार पिछले अनेक वर्षों से पौराणिक और ऐतिहासिक कथा संदर्भों के पार्श्व में सामयिक और दैनिक जीवन की समस्याओं का समाधान ढूँढने की कोशिश करती कथाएं अनेक मीडिया मंचो पर लिखते आ रहे हैं।

आप अक्सर उनके वृत्तांतों में उनकी अनवरत यात्राओं की झलकियाँ देख सकते हैं। भारतीय मंदिर स्थापत्य और ललित कला से संबद्ध लेखन में उनकी गहरी रूचि हैं। उनकी शब्दावली में तत्सम शब्दों के अतिरिक्त, अंग्रेजी, हिंदवी, गुजराती तथा मराठी का पुट भी होता है। लेखक पेशे से एक फ्रीलांस आइटी कंसलटेंट और डेटाबेस आर्किटेक्ट हैं।

 सतत्तर पृष्ठों की यह पुस्तक अमेज़न  पर उपलब्ध है।

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