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क्रांतिदूत – भाग-5 : “बसंती चोला” (पुस्तक समीक्षा)

यह पुस्तक आपको उस यात्रा पर ले जाने वाली है जो आपको क्रांतिकारियों के गुमनाम जीवन की कथा सुनाएगी।

बसंती चोला क्रांतिदूत शृंखला की पाँचवी पुस्तक है । जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह पुस्तक भगत सिंह पर केन्द्रित है। नाम पढ़ कर जो दृश्य मन में उपजता है वह भगत सिंह के अपने मित्रों के साथ “मेरा रंग दे बसंती चोला” गीत गाते हुए फाँसी के लिए जाने का होता है ।

यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपने वीरों को उनके संघर्ष के चरम के लिए ही जानना चाहते हैं। चन्द्रशेखर आज़ाद ने अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेज़ों से मुठभेड़ से पहले क्या किया? वह किस प्रकार भारतवर्ष की स्वतन्त्रता के लिए प्राणोत्सर्ग करने को तैयार हुए? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर आज भी सभी नहीं जानते। आप देखेंगे कि गणेश शंकर विद्यार्थी जी की पुण्यतिथि या जयंती पर प्रमुख चर्चा उनकी मृत्यु पर होती है पर उससे पूर्व जो जीवन उन्होंने जिया उसकी चर्चा नहीं होती। क्या आम जीवन जीते-जीते एक क्रांतिकारी के क्रान्तिद्वार तक पहुँचने की यह यात्रा महत्वपूर्ण नहीं है?

जब यह पुस्तक प्रारम्भ की तो कल्पना यह थी कि पुस्तक के अंत में लेखक हम पाठकों को उन्हीं भगत सिंह से पुनः मिलवाने वाले हैं जो प्रसन्नचित मन से फाँसी के तख्ते पर बलिदान देने के लिए चढ़ रहे थे। किन्तु यह पुस्तक आपको उस यात्रा पर ले जाने वाली है जो आपको क्रांतिकारियों के गुमनाम जीवन की कथा सुनाएगी।

यह पुस्तक दर्शाती है कि क्रांतिकारी यूं ही नहीं बन जाते।

ऐसा नहीं होता कि एक सुबह आप सोकर उठे और आपने निर्णय ले लिया कि अब जीवन में कुछ बड़ा करना है इसलिए क्रांतिकारी बन जाता हूँ। क्रांतिदूत का जीवन साथी क्रांतिकारियों के विश्वास पर टिका होता है वहाँ क्रांतिकारी संगठन में कोई स्वेच्छा से नहीं आ जा सकता था। सौ में से दो को ही वह सौभाग्य प्राप्त होता था जो संगठन के वरिष्ठजनों का भरोसा जीत पाते थे । भगत सिंह के भरे पूरे परिवार से थे। मदन लाल धींगरा के पिताजी एक सरकारी डॉक्टर थे। भाई परमानंद, भाई लाभ सिंह आदि कई नाम ऐसे हैं जिनको क्रांति की ज्वाला में कूदने की आवश्यकता नहीं थी। उन सभी का जीवन भली भांति चल रहा था। किन्तु ऐसा क्या हुआ कि वो अपने को रोक नहीं सके और क्रांति अग्नि में कूद पड़े?

ऐसी ही अनसुनी कथाओं की गाथा है यह क्रांतिदूत शृंखला, जिसका यह पाँचवा भाग “बसंती चोला” कई मामलों में विशिष्ट है। यहाँ आप जवाहर लाल नेहरु और सचींद्र नाथ सान्याल के बीच हुई उस बातचीत के बारे में जानेंगे जहाँ सान्याल साहब नेहरु जी को विश्वास दिला देते हैं कि सशस्त्र क्रांति क्यूँ आवश्यक है।

पिछले भाग “ग़दर” में आपने भारत की उसी सशस्त्र क्रांति की उत्पत्ति की कथा जानी थी जिसका ताना-बाना 1857 की तर्ज पर बुना गया था।  बसंती चोला में आप पढ़ने वाले हैं कि उस सशस्त्र क्रांति का क्या हुआ? कौन थे वो व्यक्ति जिन्होंने गदर के लिए अपनी जान दे दी?

यह कहानी है अवधबिहारी, भाई बालमुकुन्द और अमीर चाँद  की जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता  के लिए प्राण देने में ज़रा भी हिचक नहीं दिखाई।

यह पुस्तक भगत सिंह के क्रांतिकारी बनने से पूर्व उनकी परिस्थितियों को दर्शाती है । यह भगत सिंह के बनने कि कहानी है । गणेश शंकर विद्यार्थी जी का भगत सिंह के जीवन में एक विशिष्ट स्थान रहा है। लेखन क्षेत्र में भगत सिंह को विकसित करने वाले विद्यार्थी जी के जीवन के पलों को आप इस पुस्तक में जान सकते हैं।

जैसा की कई समीक्षकों ने इस बारे में लिखा है, मेरा भी वही मानना है कि इस श्रुंखला की विशेष उपलब्धि इसकी भाषा और कथा शैली है ।

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