भारतीय संस्कृति की विविधता हर क्षेत्र-परिक्षेत्र में दृष्टिगत होती है। ऐसे ही भोजपुरी क्षेत्र में देखें तो यहाँ विचार और व्यवहार में पूरी तरह से विविधता देखी जाती है।
तमकुही रोड, सेवरही, कुशीनगर (उ.प्र.) के केशव मोहन पाण्डेय का सर्जनात्मक व्यक्तित्व तथा भाषा, साहित्य और कला के प्रति समर्पण इतना प्रेरक, मनोहारी, वैविध्यपूर्ण और उर्जादायी है। केशव जी हिंदी और भोजपुरी में सर्जना करते हैं। उनकी अभी तक ‘संभवामि युगे युगे’, ‘आनलाइन जिंदगी’, ‘रोज़ बुनता हूं सपने’ (हिंदी), ‘कठकरेज’, ‘जिनगी रोटी ना हऽ, ‘एक मुठी सरसो’, ‘कुछ चिंतन, कुछ सुध’ (भोजपुरी) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वे ‘पंच पल्लव’, ‘पंच पर्णिका’, ‘समवेत’, ‘भोजपुरी साहित्य में महिला रचनाकारन के भूमिका’ (सह), ‘कथा गाँव’ आदि पुस्तकों का संपादन भी कर चुके हैं। वे कविता, गीत, लघुकथा, वर्ण-पिरामिड, हाइकु आदि की दो दर्जन पुस्तकों में सह-लेखन भी किए हैं।
उनकी कविताओं और कहानियों का गुजराती और डोगरी में अनुवाद हो चुका है। उन्होंने डोगरी बाल उपन्यास ‘छुट्टियां’ और हिंदी उपन्यास ‘शिखरों से आगे’ का भोजपुरी में अनुवाद भी किया है। अनेक धारावाहिकों के लिए पटकथा-संवाद लेखन, लगभग पंद्रह नाटकों का लेखन-निर्देशन। विद्यावाचस्पति के अतिरिक्त दो दर्जन से अधिक पुरस्कार व सम्मान।
केशव मोहन पाण्डेय ‘सर्व भाषा ट्रस्ट’ और ‘संवाद’ के समन्वयक तथा ‘सर्वभाषा’ (त्रैमासिक पत्रिका) व ‘सर्वभाषा बुलेटिन’ के प्रधान संपादक हैं। एक अंतरराष्ट्रीय विद्यालय में हिंदी अध्यापन। वर्तमान में नई दिल्ली में निवास।