भारतीय सभ्यता भगवद्गीता की परंपरा से भली-भांति अवगत है। ‘प्रस्थान त्रयी’ के रूप में ब्रह्म-सूत्रों और उपनिषदों के साथ भगवद्गीता का हमारे दर्शनशास्त्र में एक उत्कृष्ट स्थान है। हमारे आचार्यों ने पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिए, विशेष रूप से मोक्ष प्राप्ति के लिए, भगवद्गीता में स्थित विचारों को यथारूप ही रखा है। निःसंदेह, हमारी संस्कृति में भगवद्गीता के ही सबसे बड़ी संख्या में भाष्य हुए हैं। हमारे महान आचार्यों श्री श्री आदि शंकराचार्य, श्री श्री रामानुज, श्री श्री माधव ने भगवद्गीता पर भाष्य लिखे हैं। अभिनवगुप्त, वल्लभाचार्य, मधुसूदन सरस्वती जैसे अन्य प्रमुख दार्शनिकों ने भी इस ग्रंथ पर प्रमुखता से लिखा है। आधुनिक युग में, स्वामी चिन्मयानंद, श्रील प्रभुपाद, श्री अरबिंदो, श्री रमण महर्षि ने ऐसे भाष्य लिखे हैं जो सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं।
प्रत्येक भारतीय भाषा में कई महान व्यक्तित्व हैं, जिनकी टिप्पणियाँ हम सभी का मार्ग प्रशस्त करती रहती हैं। जब हम अपनी कठिन परिस्थितियों में अर्जुन की भांति किंकर्तव्यविमूड़ हो जाते हैं तो श्री कृष्ण योगेश्वर ही भगवद्गीता के माध्यम से हम सभी को ज्ञान के उज्ज्वल प्रकाश से प्रकाशित करते हैं। हमारे आचार्यों ने हमें सदैव उस मार्ग पर प्रवृत्त रखा है जो संबंधित समय के लिए सबसे उपयुक्त तथा सामयिक समस्याओं के लिए सर्वोत्तम हैं।
निसंदेह भगवद्गीता भक्ति, कर्म और ज्ञान मार्ग के बारे में विस्तार से चर्चा करती है जिसके माध्यम से हम मोक्ष की सर्वोच्च वास्तविकता तक पहुंचते हैं। किन्तु इन मार्गों का सार क्या है? वे एक दूसरे से कैसे संबंधित हैं? क्या ये मार्ग अनन्य हैं अथवा एक बिंदु पर उनका मिश्रण हो जाता है? भगवद्गीता पुरुषार्थ, देवता, संन्यास, गृहस्थ के बारे में क्या कहती है? एक व्यक्ति और एक समुदाय अपनी आध्यात्मिक खोज में भगवद्गीता से कैसे प्रेरणा लेते हैं?
हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि भगवद्गीता को युद्ध के मैदान में लौकिक लगाव को भूलकर एक धार्मिक उद्देश्य के लिए कहा गया था। भगवद्गीता में अंतर्निहित धर्म का दृष्टिकोण क्या है? आज आवश्यक कार्यों के लिए हम भगवद्गीता से प्रेरणा कैसे प्राप्त करते हैं? हमारे समय के लिए इसकी प्रासंगिकता और अंतर्दृष्टि क्या है? ऐसे अनेक प्रश्न है जिनके उत्तर अत्यंत प्रभावशाली बन जाते हैं।
जैसा आप सभी को ज्ञात है कि भगवद्गीता दिवस कुछ ही सप्ताह दूर है। इंडिका टुडे एक विशेष प्रतियोगिता के लिए निबंध प्रविष्टियाँ आमंत्रित करता है जिसका शीर्षक है
“भगवद्गीता का आध्यात्मिक महत्व”।
निबंध प्रतियोगिता के मुख्य नियम इस प्रकार होंगे।
निबंध की लंबाई 1000 से 1500 शब्दों के बीच होनी चाहिए।
अंग्रेजी, हिंदी, कन्नड़ और तेलुगु भाषाओं में आप निबंध प्रस्तुत कर सकते हैं।
आपकी प्रविष्टियाँ पहुंचाने की अंतिम तिथि २६-नवंबर, २०२१ है।
- अभ्यर्थियों की मांग पर “भगवद्गीता का आध्यात्मिक महत्व” पर निबंध प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि 2 दिसंबर, 2021 तक बढ़ा दी गई है।
शीर्ष ५ निबंधों को पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।
- प्रथम पुरस्कार
- द्वितीय पुरस्कार
- तृतीय पुरस्कार
- चतुर्थ पुरस्कार
- पंचम पुरस्कार
इसके अतिरिक्त चयनित निबंध भगवद्गीता सप्ताह के दौरान इंडिका टुडे पर प्रकाशित किए जाएंगे।
कृपया अपनी प्रविष्टियां editor@indictoday.com पर भेजें
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