यूँ तो आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा मूलत: शुद्ध तत्सम प्रधान खड़ी बोली हिंदी है लेकिन विषय को स्वाभाविक बनाने के लिए उनकी भाषा में उर्दू-फारसी, अंग्रेजी, तद्भव, देशज आदि सभी प्रकार के शब्दों का मिला-जुला रूप आप देख सकते हैं।
इस प्रकार हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की भाषा परिमार्जित खड़ी बोली है किन्तु उन्होंने भाव और विषय के अनुसार भाषा का चयनित प्रयोग किया है। उनकी भाषा को दो प्रकार से विभाजित किया जा सकता है प्राँजल व्यावहारिक भाषा और संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय भाषा। उनकी भाषा में भी आप उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का भी समावेश देख सकते हैं।
भाषा के प्रवाह,उत्थान और विकास के बारे में आज हम चर्चा करने वाले हैं अवतंस जी से जो एक समीक्षक, स्तम्भकार, और कवि हैं। मूलतः पटना निवासी अवतंस की स्नातकोत्तर शिक्षा भारत के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ़ इलिनॉय अर्बाना-शैम्पेन में हुई है। अमेरिका में अवतंस ने कुछ वर्षों तक विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाने का काम भी किया है।
उनके साथ भाग ले रहे हैं आनंद कुमार जी जो एक मार्केटिंग रिसर्च प्रोफेशनल हैं। अपने काम के साथ, वह संस्कृत भाषा में अध्ययन कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने “गीतायन” (हिंदी में) लिखा है, जो फिल्मों, दिन-प्रतिदिन के उदाहरणों और भगवद गीता के बीच समानता पर आधारित एक गैर-काल्पनिक काम है।
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